विश्लेषण

Kalpanath Rai Birth Anniversary: उम्मीदों के नाथ थे कल्पनाथ

Kalpnath Rai: चाहतें बड़ी बेवफा होती हैं, पूरी होते ही बदल जाया करती हैं. ये लाइनें राजनीतिक जीवन के लिए बड़ी लोकप्रिय हैं. लेकिन, इन लाइनों का अगर बारीक विश्लेषण करें तो इसका निष्कर्ष यह निकलेगा कि हम चाहतें और उम्मीदें उन्हीं से रखते हैं, जिनमें पूरा करने की गुंजाइश हो. मध्यमवर्गीय परिवार का बच्चा उसी वस्तु के लिए हठ करता है जिसे उसे मिलने की उम्मीद होती है. मसलन, वह कपड़े और खिलौनों के लिए जिद तो कर सकता है, लेकिन एयरोप्लेन और शिप पर बैठने की जिद नहीं कर सकता. जब बात नाथ की हो तो मऊ के उस नाथ को कैसे भूला जा सकता है, जिन्होंने मऊ को जिला बनाया. जिनके बदौलत उस समय जिला बने अन्य तीन जिलों से अधिक बजट मऊ को मिला. जैसे राह चलते लोगों को लॉटरी लग जाती है और उनकी पीढ़ियों की किस्मत बदल जाती है, वैसे ही कल्पनाथ राय ने सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों परिवारों और उनकी पीढ़ियों को फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया. उन्होंने न जाति देखी न धर्म, न रंग और न ही रूप देखा. अगर उन्होंने कुछ देखा तो उनके दुख और तकलीफों को.

ठण्डी अपने चरम पर थी और शीतलहर के मौसम में कल्पनाथ राय (Kalpnath Rai) का जन्म 4 जनवरी 1941 को तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य में आजमगढ़ जनपद के सेमरी जमालपुर ग्रामसभा में हुआ था. उस महान विभूति का 6 अगस्त 1999 को दिल का दौरा पड़ने से 58 वर्ष की आयु में राम मनोहर अस्पताल में निधन हो गया. उन्होंने अंग्रेजी और समाजशास्त्र से एमए और एलएलबी किया था, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कुछ समय तक वकील के रूप में भी कार्य किया.

कल्पनाथ राय के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही जाती है कि वह जिस चीज़ की कल्पना कर लेते थे, उसे धरातल पर उतारने के लिए पूरे जी जान से जुट जाते थे.

कल्पनाथ राय (Kalpnath Rai) वैसे तो छात्र राजनीति से ही राजनीतिक तौर पर सक्रिय हो गए थे, 1959 में शिब्ली पीजी कॉलेज, आजमगढ़ से अध्यक्ष एवं 1962 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से महामंत्री निर्वाचित हुए थे, लेकिन कई असफल प्रयासों के बाद 1974 में राज्यसभा के जरिए संसद में दस्तक दे पाए. उस दस्तक की आवाज इतनी जोरदार थी कि वह उनके पूरे जीवन में सुनाई देती रही और वह आजीवन संसद के सदस्य बने रहे, कई बार तो उन्होंने देश के कई मंत्रालयों को भी संभाला.

कल्पनाथ राय 1974-1980, 1980-1986, 1986-1989 तक राज्यसभा एवं 1989-1991, 1991-1996, 1996-1998, 1998-1999 तक लोकसभा के सदस्य रहे. वह 1982-83 में केंद्रीय उप मंत्री, संसदीय कार्य एवं उद्योग, 1982-84 में केंद्रीय राज्य मंत्री, संसदीय कार्य, 1988-89 में केंद्रीय राज्य मंत्री, ऊर्जा, 1991-92 में केंद्रीय राज्य मंत्री, ऊर्जा एवं गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत (स्वतंत्र प्रभार), 1992-93 में केंद्रीय राज्य मंत्री, ऊर्जा (स्वतंत्र प्रभार), 1993-94 में केंद्रीय खाद्य राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहे एवं संसदीय कार्यकाल के दरम्यान वह कई महत्वपूर्ण समितियों और उपसमितियों के भी सदस्य रहे.

कम उम्र में माता-पिता का निधन होने के बाद से ही कल्पनाथ राय के संघर्षों की दास्तां शुरू हो गई, उन्होंने उम्र के हर एक पड़ाव पर संघर्ष किया. अपने संघर्षों और त्याग के बदौलत उन्होंने जिस विकास रूपी कल्पवृक्ष को सींचा इसका सानी आज भी कोई नहीं है.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तीन किलोमीटर के दायरे में तीन ओवरब्रिज नहीं रहे होंगे उस वक्त कल्पनाथ राय ने मऊ में तीन किलोमीटर के ही दायरे में ही तीन-तीन ओवरब्रिजों का निर्माण अपने प्रयासों से कराया था, चाहे कलेक्ट्रेट परिसर हो या फिर चाहे पॉलिटेक्निक, आईटीआई, जिला कारागार, कृषि अनुसंधान केन्द्र, दूरदर्शन केन्द्र, केन्द्रीय विद्यालय, कल्पवाटिका, मऊ रेलवे स्टेशन, दर्जनों दूरसंचार केन्द्र, आधा दर्जन विद्युत उपकेंद्र, विकास भवन इन सबका निर्माण उन्होंने ही कराया था.

1992 में उन्होंने मऊ जनपद के एक गांव सरायशादी को सोलर विलेज बना दिया था, वहां बिजली से चलने वाले सारे उपकरण सौर ऊर्जा से चलते थे. उसी समय उन्होंने मऊ जनपद में एक डबल डेकर बस चलवाई जो सौर ऊर्जा से चलती थी. मऊ से मधुबन तक बनी रोड का मानक उन्होंने खुद गाड़ी के अन्दर कप में चाय भरके रखकर चेक किया था कि कहीं कोई गड्ढा तो नहीं ना रह गया और उसी सड़क को देखने के लिए लोग अगल-बगल के जनपदों से आते थे.

उनका सपना मऊ में सिंगापुर के तर्ज़ पर विकास करना था, लेकिन मात्र 58 वर्ष की अल्पायु में उनका निधन होना उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश के लिए बेहद दुखदायक क्षण था, क्योंकि उन्होंने ऊर्जा एवं वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में कई ऐतिहासिक कार्य किए जिससे पूरा देश लाभान्वित हुआ.

90 के दशक के शुरुआती सालों में कल्पनाथ राय में लखनऊ में उत्तर प्रदेश में जनाधार खो रही कांग्रेस पार्टी का एक कार्यक्रम कराया था, जिसमें उस समय तक़रीबन 5 लाख के आसपास लोग इकट्ठा हुए थे, लखनऊ आने वाले सभी रास्ते बीसियों किलोमीटर तक जाम से घिर गए थे. अगले दिन के अखबारों में ख़बर निकली कि ‘कल्पनाथ राय हो सकते हैं सूबे के अगले मुख्यमंत्री’.

वह भारतीय राजनीति के ऐसे शूरमा थे जिन्होंने सीधे तीन-तीन प्रधानमंत्रियों का खुला विरोध किया, लेकिन एक प्रधानमंत्री से विरोध का स्तर इतना अधिक बढ़ गया कि जिसकी चलते उनको बहुत सी मुसीबतों का सामना भी करना पड़ा. 1996 के लोकसभा चुनाव को उन्होंने जेल में रहते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीतकर मिसाल क़ायम की थी.

अगर कल्पनाथ राय की कल्पना ने उनके निधन के बाद भी साकार रूप ले लिया होता तो आज उत्तर प्रदेश कृषि प्रधान राज्य होने के साथ-साथ उद्योग प्रधान राज्य होता.

दिव्येन्दु राय ( संपादकीय सलाहकार - डिजिटल )

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