आज देश में जहां देखो आपको ज़्यादातर लोग कुछ नया करने कि होड़ में लगे रहते हैं। इस नये को आज के दौर में स्टार्ट-अप का नाम दिया जाने लगा है। अधिकतर युवा अपनी पढ़ाई पूरी कर के जीवन व्यापन के लिए अपने स्टार्ट-अप को शुरू करने के लिए वित्तीय सहायता देने वालों को खोजते हैं और अपना सपना सच करने की दिशा में चल देते हैं। परंतु असम की राजधानी गुवाहाटी के रेलवे स्टेशन पर एक ऐसी शुरुआत हुई है जिसे देश के सभी हिस्सों तक पहुँचाना चाहिए। इस शुरुआत के लिए पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे बधाई की पात्र है।
जब भी आप रेल यात्रा करते है तो गाड़ी के स्टेशन पर रुकते ही आपको एक अलग अन्दाज़ से ‘चाय-चाय, चाय-चाय’ की आवाज़ सुनाई देती है। रेल यात्रा की थकान को मिटाने का सबसे सस्ता तरीक़ा इसी आवाज़ से मिलता है। परंतु आज हम रेलवे स्टेशन पर मिलने वाली चाय के बारे में जो अच्छी पहल हुई है उसके बारे में बात करेंगे। रेल यात्रा के दौरान आपने अक्सर रेल के डिब्बों में किन्नर समाज के लोग यात्रियों से पैसे माँगते हुए देखा होगा। कई बार यात्रियों की इनसे झड़प भी हो जाती है। अधिकतर लोगों का किन्नरों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रहता है और वे इनसे मुँह मोड़ लेते हैं। परंतु मुँह मोड़ने से इनकी समस्या का हल नहीं होता। पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे ने इसी दिशा में पहल करते हुए देश का पहला ‘ट्रांस टी स्टाल’ खोला है। इस टी स्टाल को किन्नर समाज के लोगों द्वारा चलाया जाएगा और अब वे ट्रेनों में पैसा माँगने पर मजबूर नहीं होंगे।
शास्त्रों के अनुसार किन्नर वह जाति है, जिसने देवताओं, यक्षों, गन्धर्वों के साथ स्थान पाया है। भारतीय हिन्दू संस्कृति में प्राचीन काल से ही किन्नरों का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो किन्नरों के बिना भारतीय संस्कृति अधूरी है। भारत में तुर्कों, अफगानों व मुगलों के समय में भी किन्नर शाही हरम में निवास करते थे। परंतु जैसे-जैसे समय बदला, किन्नर जाति पर विभिन्न तरह के हमले होते गये। जो किन्नर जाति किसी समय भारतीय संस्कृति का मुख्य हिस्सा थी, वह बिखरने लगी और उसके हालात बद से बदतर होने लगे। किन्नरों बदहाली का सबसे बड़ा कारण भारतीय समाज के वे ठेकेदार हैं, जो एक ओर इसकी रक्षा न कर सके और दूसरी ओर इनको न्याय भी न दिलवा सके। इसके साथ ही इनकी बढ़ती आबादी ने भी इनको भीख माँगने जैसे काम करने पर मजबूर कर दिया।
देखा जाए तो किन्नर आपको दुनिया के हर मुल्क में मिलेंगे पर इनका जो हाल हमारे देश में है वो और कहीं नहीं। इसके लिए नकारात्मक सोच ही ज़िम्मेदार है जो इनको सही दर्जा नहीं देती। विदेशों में किन्नर समाज के लोग अपनी जीविका के लिए अपने मन का काम करते हैं और सम्मान के साथ जीते हैं। विदेशों में आपको कोई किन्नर सड़क पर या सार्वजनिक स्थानों पर भीख माँगता दिखाई नहीं देगा। हमारे देश में भी जैसे-जैसे समय बदला राजनीति के बाद विभिन्न व्यवसायों में ट्रांसजेंडर समाज के लोगों ने भी अपनी जगह बनानी शुरू कर दी है।
परंतु अभी भी इस समाज का अधिकतर हिस्सा उत्पीड़न का शिकार है। गुवाहाटी के रेलवे स्टेशन से शुरू होने वाली इस पहल का स्वागत करते हुए ट्रांसजेंडर रानी काफ़ी खुश हैं। रानी के अनुसार उनके समाज के लोग, अनपढ़ होने के कारण व परिवार से बहिष्कार के कारण बसों और ट्रेनों में भीख माँगने के लिये मजबूर थे, पर अब ऐसा नहीं। इस पहल का स्वागत करते हुए रानी का कहना है कि सरकार को किन्नर समाज के विकास के लिए ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे किन्नरों को अपनी जीविका चलाने में मदद मिले। रानी के अनुसार यदि कोई मेहनत मज़दूरी करके अपना ख़र्च उठाए तो उसे अपमानित नहीं होना पड़ेगा। आज रानी के टी स्टाल से लोग बेझिझक चाय व अन्य सामान ख़रीदते हैं। इससे रानी और उनके समाज को गर्व महसूस होता है।
मशहूर लेखिका चित्रा मुद्गल के उपन्यास के एक उदाहरण में स्पष्टतः किन्नरों के प्रति चेतन होने का आह्नान किया गया है- ‘जरूरत है सोच बदलने की। संवेदनशील बनाने की। सोच बदलेगी, तभी जब अभिभावक अपने लिंग-दोषी बच्चों को कलंक न मान किन्नरों के हवाले नहीं करेंगे। उन्हें घूरे में भी नहीं फेंकेंगे। ट्रांसजेंडर के खांचे में नहीं ढकेलेंगे। यह पहचान जब उन्हें किन्नरों के रूप में जीने नहीं दे रही समाज में तो सरकारी मान्यता मिल जाने के बाद जीने देगी?’
जिस तरह जेलों में बंद क़ैदियों को सुधारने की दृष्टि से जेलों में लघु उद्योग स्थापित किए जाते हैं और फिर उनके द्वारा निर्मित सामान को बाज़ारों बेचा जाता है उसी तरह किन्नर समाज के लिए भी ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है। इस दिशा में किन्नरों को जागृत करने के लिए सरकार के साथ-साथ ग़ैर सरकार संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए। किन्नर भी सामान्य मानव की तरह ही होते हैं। उनके विकास के लिए सर्वप्रथम समाज को अपनी मानसिकता में कुछ परिवर्तन करना होगा। शासन की सक्रिय भूमिका के साथ किन्नरों का विकास हो सकता है। इससे भी आवश्यक है कि किन्नर समुदाय में चेतना का संचरण। यदि वे स्वयं चेतन हो जाएंगे तो बहुत सी समस्याओं का हल वे स्वयं चेतन हो जाएंगे तो बहुत सी समस्याओं का हल वे स्वयं भी खोज सकते हैं। इसलिए गुवाहाटी से शुरू हुई इस पहल को और आगे बढ़ाना चाहिए।
*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं।
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