विश्लेषण

नेपाल विमान हादसा: दोष किसका?

नेपाल के नागर विमानन के लिए 2023 की शुरुआत अच्छी नहीं हुई. पिछले 23 सालों में नेपाल की एयर स्पेस में 17 विमान हादसे हो चुके हैं जिनमें 300 से ज्यादा लोगों ने जान गवाई है. ऐसे हादसों के लिए क्या केवल मौसम और पहाड़ी इलाका ही जिम्मेदार होता? क्या विमान की आयु, पायलट का अनुभव और विमान के रखरखाव जिम्मेदार नहीं होते? क्या मुनाफे के लालच से जन्मा भ्रष्टाचार ऐसे हादसों को दोषी नहीं होता?

गत 15 जनवरी को नेपाल के पोखरा में हुए दर्दनाक विमान हादसे से दुनिया भर में सदमे का माहौल है. सोशल मीडिया पर विमान हादसे से ठीक पहले के वीडियो को देख कर हर कोई स्तब्ध है. सभी के मन में यह सवाल उठ रहा है कि कुछ देर पहले ही उसमें सवार जो यात्री उड़ान का आनन्द ले रहे थे, वे कुछ ही पल में आग की लपटों में समा गये. दुनिया भर में इस दर्दनाक हादसे के पीछे के कारणों को लेकर चर्चा चल रही है. पहले मौसम को ज़िम्मेदार बताया गया, फिर तकनीकी खराबी को. लेकिन असल कारण तो ‘ब्लैक बॉक्स’ की जॉंच से ही पता चलेगा.

पहाड़ी इलाकों में होने वाले विमान हादसों में प्रायः मौसम को जिम्मेदार ठहराया जाता है. लेकिन नेपाल में येती एयरलाइंस के एटीआर विमान हादसे के समय मौसम साफ था. उड़ान के समय अनुकूल मौसम का मतलब होता है कि उस समय विजिबिलिटी कैसी है. बदल हैं या नहीं, बिजली कड़क रही है या नहीं. यही कारण होते हैं जो विमान में विक्षोम या टरबुलेंस पैदा करते हैं. यदि विमान में कोई तकनीकी खराबी नहीं हो और पायलट अनुभवी हो तो छोटी-मोटी टरबुलेंस को आसानी से पार किया जा सकता है.

इस विमान हादसे के वीडियो को देख ऑस्ट्रेलिया के विमानन विशेषज्ञ जेऑफ थॉमस ने इसे तकनीकी खराबी और पायलट के नियंत्रण खो जाने के मिश्रण को ही कारण माना है. जिस तरह से क्रैश से ठीक पहले विमान हवा में अनियंत्रित हो रहा था, उससे ये बात साफ है कि विमान में कोई न कोई तकनीकी खराबी जरूर थी. असली कारण तो विमान के ब्लैक बॉक्स की विस्तृत जाँच के बाद ही सामने आएगा.

हादसे के बाद नेपाल सरकार ने आनन-फानन में पहाड़ी इलाकों में सभी उड़ानों से पहले तकनीकी जाँच अनिवार्य कर दी है. यहाँ सवाल उठता है कि क्या अब से पहले ऐसी जाँच नहीं हो रही थी? अगर नहीं तो क्यों? अगर जाँच हो रही थी तो क्या तकनीकी खराबी के बावजूद विमान को उड़ान भरने दिया गया? यदि ऐसा हुआ तो इसके पीछे कौन जिम्मेदार है? क्या इस विमान और उसमें लगे उपकरणों का समय-समय पर उचित रख-रखाव हो रहा था? क्या येती एयरलाइंस द्वारा विमान के रख-रखाव को गंभीरता से लिया जा रहा था. क्या नेपाल के नागर विमानन प्राधिकरण द्वारा विमान के रख-रखाव की जाँच हुई थी? क्या प्राधिकरण द्वारा किसी मामूली खराबी को अनदेखा किया गया था, जो आगे चल कर तकनीकी गड़बड़ का कारण बनी?

नेपाल सरकार इस हादसे की जाँच 5 सदस्यीय कमेटी द्वारा करवा रहा है. जाँच को पूरा करने के लिए इस कमेटी को 45 दिनों का समय दिया गया है. दुर्घटनाग्रस्त एटीआर विमान बनाने वाली कंपनी की एक टीम भी काठमांडू पहुँच चुकी है, जो इस जाँच कमेटी का सहयोग करेगी. जाँच के बाद ही सही कारणों का पता चलेगा.

पहाड़ी इलाकों में उड़ान भरने के लिए पायलट को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है. यदि नेपाल सरकार पहाड़ी इलाकों में उड़ान भरने वाले पायलटों को सही प्रशिक्षण देने में असमर्थ है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मदद माँगनी चाहिए. इंटरनेशनल फाउंडेशन ऑफ एविएशन, एयरोस्पेस और ड्रोन के अध्यक्ष सनत कौल के अनुसार, दुनिया भर में ऐसी कई संस्थाएँ हैं जो ऐसा प्रशिक्षण प्रदान करती हैं. चूँकि नेपाल में ऐसे हादसों का इतिहास रहा है इसलिए नेपाल सरकार को ऐसी संस्थाओं की मदद से इन हादसों की जाँच के सही कारणों का पता लगाना चाहिए.

विमान दुर्घटना के कारणों में एक ऐसा कारण भी होता है जिसकी चर्चा बहुत कम होती है. ‘पायलट की थकान’ के बारे में बहुत कम बात की जाती है. नागर विमानन में ऐसे कानून हैं जो पायलट को एक निश्चित विश्राम की बात करते हैं. जिससे कि पायलट थकी हुई अवस्था में विमान कभी न उड़ाए. दुर्घटना का यह कारण यदि सामने आता है तो स्पष्ट है कि एयरलाइन और नागर विमानन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों के बीच एक गुप्त समझौता है. इस समझौते के चलते विमान में यात्रा कर रहे भोले-भाले यात्री अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. फिर वो गुप्त समझौता नामी एयरलाइन के साथ हो या निजी चार्टर सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों के साथ हो. दोनों ही स्थितियों में विमान में सवार यात्री ही बलि का बकरा बनते हैं.

भारत को ही लें तो हमारे यहाँ जिस कदर हवाई यात्राओं में बढ़ोतरी हुई है, उससे मुनाफा कमाने का लालच भी बढ़ा है। ऐसे में एयरलाइन कंपनियां और निजी चार्टर सेवा कहीं न कहीं समझौता जरूर करती है. नेपाल के इस हादसे से भारत के नागर विमानन मंत्रालय को भी सतर्क हो जाना चाहिए. भारत के नागर विमानन मंत्रालय और उसके अधीन नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) में व्याप्त भ्रष्टाचार के बारे में इस कॉलम में पहले भी कई बार लिखा जा चुका है. परंतु इस मंत्रालय के भ्रष्ट अधिकारी दोषी एयरलाइन या निजी चार्टर सेवा प्रदान करने वाली कंपनी को मामूली सजा देकर केवल औपचारिकता निभाते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सरकार की कमान संभलते ही कहा था “न खाऊँगा न खाने दूँगा”. परंतु क्या उनके इस कथन का नागर विमानन मंत्रालय में सही से पालन हो रहा है? इसकी जाँच यदि समय-समय पर होती रहे तो हमारे यहाँ नेपाल जैसे हादसों को होने से पहले टाला जा सकता है.

*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं.

रजनीश कपूर, वरिष्ठ पत्रकार

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