विश्लेषण

क्या देश में One Nation-One Election जरूरी हो गया है?

One Nation-One Election: बार-बार इलेक्शन मोड में रहने की वजह से देश की विकास की रफ्तार को ब्रेक न लगे तो क्या ऐसे में अब वन नेशन-वन इलेक्शन जरूरी हो गया है या फिर अभी भी इस मुद्दे पर मंथन होना बाकी है और अगर ऐसा हुआ तो राजनीतिक दल कितने तैयार हैं, क्या पड़ेगा वोटर्स पर असर?

क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन

पूरे देश में संसद के निचले सदन यानी लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक ही दिन या फिर एक निश्चित समय सीमा में कराए जाएं. इसके साथ ही स्थानीय निकायों यानी नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत और ग्राम पंचायतों के चुनाव भी हों.

पीएम मोदी का मंत्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल 15 अगस्त को स्वाधीनता दिवस समारोह के दौरान लाल किले से अपने संबोधन में कहा था कि देश में बार-बार चुनाव से विकास में बाधा आती है. उन्होंने कहा था कि वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए देश को आगे आना होगा. उन्होंने देश के सभी राजनीतिक दलों से आग्रह किया था कि देश की प्रगति के लिए इस दिशा में आगे बढ़े. यहां तक कि इसी साल हुए लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने इसे अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी प्रमुखता से शामिल भी किया था.

रामनाथ कोविंद कमेटी की रिपोर्ट

2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी, समिति ने 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया था, इनमें से 32 ने एक देश, एक चुनाव का समर्थन किया था, जबकि 15 पार्टियां इसके विरोध में थीं और 15 ऐसी पार्टियां थीं, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया था, कमेटी ने 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी. हालांकि जो रिपोर्ट सार्वजनिक की गई है, वह 321 पन्नों की है और इसके लिए 191 दिनों तक विशेषज्ञों ने गहन मंथन किया गया.

एक देश-एक चुनाव के फायदे


एक समय पर चुनाव होने पर केंद्र के राजकोष की बचत.
बार-बार होने वाले चुनाव का खर्च घटेगा.
बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास कार्यों में होती है देरी.
काले धन पर लगेगी लगाम.
एक ही बार चुनावी ड्यूटी लगने से सरकारी कार्यों में बार-बार व्यवधान नहीं होगा.
एक बार में चुनाव निपट जाने पर केंद्र और राज्य सरकारें कामकाज पर ज्यादा फोकस कर सकेंगी.
जनप्रतिनिधि चुनने का एकमात्र मौका मिलने की वजह से वोटर्स की संख्या में इजाफा हो सकता है.

एक देश-एक चुनाव की चुनौती


– संविधान और कानून में बदलाव जरूरी.
– इसके बाद विधानसभाओं से पास कराना होगा.
– लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा भंग होने की स्थिति में चुनाव का क्रम क्या होगा.
– एक साथ अधिक संसाधन की जरूरत पड़ेगी.
– एक साथ चुनाव के लिए ज्यादा प्रशासनिक अफसरों की जरूरत पड़ेगी.
– अधिक सुरक्षा बल, ज्यादा मुस्तैदी की जरूरत पड़ेगी.
– ज्यादा EVM और VVPAT मशीन की जरूरत.

रिपोर्ट में क्या कहा गया

रिपोर्ट में सभी राज्यों के विधानसभाओं के कार्यकाल को 2029 तक कराने का सुझाव दिया था, जिससे लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकें, रिपोर्ट में ये भी सुझाव दिया गया था कि पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं. दूसरे चरण में सौ दिनों के भीतर ही स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जा सकते हैं. इसके लिए चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के लिए एक वोटर लिस्ट तैयार की जा सकती है.


ये भी पढ़ें: शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है One Nation, One Election बिल, JPC को भेजने की तैयारी


आजादी के बाद हुए हैं एक साथ चुनाव

साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ ही चुनाव कराए गए. इसके बाद कुछ राज्यों का पुनर्गठन हुआ और कुछ नए राज्य बने, जिसकी वजह से अलग-अलग समय पर चुनाव होने लगे.

सभी दल एकमत नहीं

बहरहाल, वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर कुछ राजनीतिक दलों का मानना है कि ऐसे चुनाव से राष्ट्रीय दलों को फायदा होगा, लेकिन क्षेत्रीय दलों को नुकसान होगा. उनके अनुसार, राष्ट्रीय मुद्दों के सामने राज्य स्तर के मुद्दे दब जाएंगे. छोटी पार्टियों का अस्तित्व खतरे पड़ जाएगा. कुछ दलों का यह भी मानना है कि राज्य स्तर के मुद्दे दबने से राज्यों का विकास प्रभावित होगा.

इन देशों में है वन नेशन-वन इलेक्शन

अमेरिका में हर चार साल में एक निश्चित तारीख को ही राष्ट्रपति, कांग्रेस और सीनेट के चुनाव कराए जाते हैं. भारत की ही तरह फ्रांस में संसद का निचला सदन यानी नेशनल असेंबली है. वहां नेशनल असेंबली के साथ ही संघीय सरकार के प्रमुख, राष्ट्रपति के साथ ही राज्यों के प्रमुख और प्रतिनिधियों का चुनाव हर पांच साल में एक साथ कराया जाता है. स्वीडन की संसद और स्थानीय सरकार के चुनाव हर चार साल में एक साथ होते हैं.

(लेखक दो दशक से टीवी पत्रकारिता में सक्रिय हैं)

अभिषेक कुमार गुप्ता

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