Rajasthan Politics: राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले एक मोर्चे पर कांग्रेस के खेमे में राहत नजर आ रही है. लंबे समय से सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच जो खींचतान चल रही थी और जिस तरह दोनों नेता एक-दूसरे पर हमलावर रहे थे, वह कड़वाहट अब नरमी में तब्दील होती नजर आई है. आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ये कांग्रेस के लिए राहत की खबर हो सकती है लेकिन सत्ताधारी दल के लिए चुनौतियां केवल इतनी ही नहीं थीं. राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार आगामी चुनावों में जीत दर्ज कर तीस सालों से चली आ रही परपंरा तोड़ना चाहेगी, लेकिन उसकी जीत की राह में कई चुनौतियां हैं.
अशोक गहलोत और सचिन पायलट अपने गिले-शिकवे भुलाकर साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं. सचिन पायलट का कहना है कि कांग्रेस पार्टी आलाकमान के नेतृत्व में मिलकर चुनाव लड़ेगी. यानी, सीएम पद को लेकर रार पर फिलहाल तो विराम लगता नजर आ रहा है. राजस्थान को लेकर आए कई सर्वे ये संकेत दे रहे हैं कि विधानसभा चुनावों में भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है. इस कांटे की टक्कर के पीछे कुछ वे मुद्दे हैं जो अशोक गहलोत की सरकार के लिए हाल-फिलहाल परेशानी का सबब रहे हैं.
अशोक गहलोत की सरकार पर हिंदू विरोधी होने के आरोप लगते रहे हैं. भाजपा अक्सर गहलोत सरकार पर ये आरोप लगाती रही है. पिछले साल उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की दिन-दहाड़े हत्या कर दी गई थी. पैगंबर मोहम्मद को लेकर बीजेपी पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा की गई आपत्तिजनक बयानबाजी के समर्थन में एक सोशल मीडिया पोस्ट के बाद कन्हैयालाल की हत्या कर दी गई थी. कन्हैयालाल की हत्या के बाद उदयपुर में कई दिनों तक इंटरनेट बंद रहा था. इस मामले पर राज्य की पुलिस पर भी सवाल उठे थे. वहीं परिवर्तन यात्रा के दौरान भी बीजेपी ने गहलोत सरकार पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाया था. हालांकि कांग्रेस इस दौरान ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की राह पर चलती नजर आई है.
मणिपुर में हिंसा के दौरान महिलाओं से दरिंदगी के वायरल वीडियो को कांग्रेस ने मुद्दा बनाया था लेकिन उसी वक्त राजेंद्र गुढ़ा ने राजस्थान में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामले पर अपनी ही सरकार को घेरना शुरू कर दिया था, जिसके बाद कांग्रेस के लिए असहज स्थिति हो गई थी. वहीं इस मुद्दे को बीजेपी ने भी हाथों-हाथ लपक लिया था. इसके बाद गुढ़ा एक लाल डायरी लेकर विधानसभा पहुंच गए थे. उनका दावा था कि इस डायरी में अशोक गहलोत के खिलाफ आरोपों की पूरी लिस्ट है. गुढ़ा का आरोप था कि कांग्रेस ने जिन विधायकों को खरीदा था, उसका पूरा हिसाब-किताब इसमें मौजूद है. पीएम मोदी भी इस लाल डायरी के बहाने कांग्रेस और गहलोत को घेर चुके हैं. ऐसे में यह मुद्दा विधानसभा चुनावों में गहलोत सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है.
गहलोत और पायलट के बीच खींचतान भले ही कम हो गई हो लेकिन दोनों खेमों के समर्थकों के बीच दूरियां क्या कम हुई हैं? सचिन पायलट समर्थकों को देखकर कम से कम अभी तो यही नहीं लगता है. पिछले साल कांग्रेस में मचे सियासी संकट के बीच कुछ विधायकों ने ऐन मौके पर पायलट का साथ छोड़ दिया था. अब इन नेताओं और विधायकों को पायलट समर्थकों का आक्रोश झेलना पड़ रहा है. पिछले दिनों सवाई माधोपुर विधायक और सीएम के सलाहकार दानिश अबरार को भी पायलट के समर्थकों का विरोध झेलना पड़ा था. ऐसे में माना जा रहा है कि पायलट के सुर भले ही नरम पड़े हों लेकिन उनके समर्थकों के तेवर अभी भी तीखे हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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