केदारनाथ में हेलीकॉप्टर के पंखों ने एक युवा का सिर धड़ से अलग कर दिया। ये हृदय विदारक दुर्घटना बीते रविवार हुई। इस हेलीकॉप्टर हादसे ने एक बार फ़िर से भारत सरकार के नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) और कुछ निजी एयर चार्टर कम्पनियों की साँठगाँठ के चलते हो रही लापरवाही को उजागर किया है। यदि निरीक्षण यात्रा पर हादसा हो जाता है तो हवाई सेवा प्रदान करने वाली निजी कंपनी का सवालों के घेरे में आना निश्चित ही है। क्या केदारनाथ में निजी चार्टर सेवा देने वाली कम्पनी मुनाफ़े के लालच में नियमों की अनदेखी कर रही थी? पिछले वर्ष हुई दुर्घटना के बावजूद, इस कंपनी को उड़ान भरने की इजाज़त देने से पहले क्या डीजीसीए ने सब कुछ सुनिश्चित कर लिया था?
इस दुर्घटना में उत्तराखंड सिविल एविएशन के फाइनेंशियल कंट्रोलर अमित सैनी की हेलीकॉप्टर के पंखे की चपेट में आने से मृत्यु हो गई। हमेशा की तरह मामले की जाँच डीजीसीए द्वारा किए जाने के आदेश भी दे दिए गये। परंतु जो भी तथ्य सामने आ रहे हैं उनसे तो ऐसा लगता है कि कुछ बुनियादी मानदंड की अनदेखी हुई है। केदारनाथ यात्रा से एक दिन पहले किए जाने वाले निरीक्षण की केवल औपचारिकता ही निभाई जा रही थी। यदि ऐसा नहीं थी तो क्या कारण था की अमित सैनी को हेलीकॉप्टर के पीछे से जाने दिया गया? जब हेलीकॉप्टर के रोटर व इंजन चालू थे तो निजी विमान कंपनी के द्वारा अनुभवी ग्राउंड स्टाफ़ को तैनात क्यों नहीं किया गया था? यदि अनुभवी स्टाफ़ की तैनाती होती तो किसी को भी हेलीकॉप्टर के पीछे से जाने नहीं दिया जाता।
जैसा कि हमेशा होता है, हर विमान यात्रा से पहले यात्रियों को आपात स्थित के बारे में समझाया जाता है। शायद यहाँ ऐसा नहीं हुआ। डीजीसीए के ‘एयर सेफ़्टी’ विभाग के अधिकारियों ने भी क्या निरीक्षण के नाम पर केवल औपचारिकता ही निभाई थी? ऐसे में क्या केवल पायलट को ही दोषी ठहरा कर ही जाँच पूरी कर दी जाएगी? डीजीसीए के जो अधिकारी ऐसी निजी कंपनियों का निरीक्षण करते हैं उनकी क्या ज़िम्मेदारी है?
आए दिन यह देखा जाता है कि जब भी कोई विमान हादसा होता है या किसी एयरलाइन के कर्मचारी द्वारा कोई गलती होती है तो डीजीसीए उसकी जाँच कर कुछ दोषियों को सज़ा देती है। परंतु ऐसे कई मामले सामने आते हैं जहां बड़ी से बड़ी गलती करने वाले को डीजीसीए द्वारा केवल औपचारिकता करके कम सज़ा दी जाती है। फिर वो चाहे एक कोई नामी कमर्शियल एयरलाइन हो, किसी प्रदेश का नागरिक उड्डयन विभाग हो या कोई निजी चार्टर हवाई सेवा वाली कम्पनी। यदि डीजीसीए के अधिकारियों ने मन बना लिया है तो बड़ी से बड़ी गलती को भी नज़रंदाज़ कर दिया जाता है। कभी-कभी डीजीसीए के अधिकारी अपनी गलती छिपाने के लिए भी बेक़सूर को दोषी ठहरा कर उसे सज़ा दे देते हैं या मौसम की गलती बता देते हैं।
वहीं दूसरी ओर जब भी किसी ख़ास वजह से किसी बड़ी गलती वाले दोषी को सज़ा से बचाना होता है तब भी डीजीसीए के भ्रष्ट अधिकारी पीछे नहीं रहते। फिर वो चाहे ‘आर्यन एविएशन’ हो या कोई अन्य निजी एयरलाइन डीजीसीए के भ्रष्ट अधिकारी दोषी को बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। आपको ऐसे कई उदाहरण मिल जाएँगे जहां अन्य निजी चार्टर कम्पनी के पाइलट या अन्य कर्मचारी सभी नियम और क़ानून की धज्जियाँ उड़ा कर अपने लिए कम से कम सज़ा तय करवा लेते हैं। चूँकि यह निजी चार्टर सेवा प्रदान करने वाली कंपनियाँ देश के बड़े-बड़े नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों को अपनी सेवा प्रदान करती रहती है इसलिए वो अपने प्रभाव का दुरुपयोग करके अपने ख़िलाफ़ हर तरह की कार्यवाही को अपने ढंग से तोड़ मरोड़ कर खानापूर्ति करवा लेती हैं। जबकि इससे कम संगीन ग़लतियों पर डीजीसीए के अधिकारी एयरलाइन के कर्मचारियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दे देते हैं। ऐसे दोहरे मापदंड क्यों?
इसलिए यदि किसी भी पायलट या निजी विमान सेवा कंपनी के स्टाफ़ की गलती पर पर्दा डाल कर उसे ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से उड़ान भरने की अनुमति दे दी जाती है तो केदारनाथ जैसे हादसे भविष्य में दोहराए जाएँगे। यदि उस हादसे में आम जानता की जान जाएगी तो जाँच की औपचारिकता ज़रूर की जाएगी परंतु सच सामने आएगा या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं।
ग़ौरतलब है कि डीजीसीए के ऐसे ही कृत्यों के ख़िलाफ़ जब भी कोई शिकायती पत्र लिखा गया, जिसमें नागरिक उड्डयन मंत्री का ध्यान इन मुद्दों पर आकर्षित किया गया तो डीजीसीए व नागरिक उड्डयन मंत्रालय के कुछ चुनिंदा अधिकारी जाँच न होने के लिए सभी हथकंडों का इस्तेमाल करते हैं। यदि उनके हथकंडे काम में नहीं आते तो दोषियों को दंड देने की औपचारिकता के चलते बहुत कम सज़ा दे दी जाती है। मंत्रालय के अधिकारियों पर गाज तब भी नहीं गिरती।
ऐसी लापरवाहियों के चलते ही ऐसे हादसों में भी बढ़ोतरी हुई है। हादसे चाहे निजी एयरलाइन के कर्मचारियों द्वारा हो, निजी चार्टर कंपनी द्वारा हो, किसी ट्रेनिंग सेंटर में हो या फिर किसी राज्य सरकार के नागर विमानन विभाग द्वारा हो, यदि वो मामले तूल पकड़ते हैं तो ही दोषियों को कड़ी सज़ा मिलती है। वरना ऐसी घटनाओं को आमतौर पर छिपा दिया जाता है।
वीवीआईपी व जनता की सुरक्षा की दृष्टि से समय की माँग है कि नागर विमानन मंत्रालय के सतर्कता विभाग को कमर कस लेनी चाहिए और डीजीसीए में लंबित पड़ी पुरानी शिकायतों की जाँच कर यह देखना चाहिए कि किस अधिकारी से क्या चूक हुई। ऐसे कारणों की जाँच भी होनी चाहिए कि तय नियमों के तहत डीजीसीए के अधिकारियों ने दोषियों को नियमों के तहत तय सज़ा क्यों नहीं दी और एक ही तरह की गलती के लिए दोहरे मापदंड क्यों अपनाए?
लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं
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