जब भी कभी कोई विमान हादसा होता है या होते-होते टल जाता है तो भारत का नागर विमानन महानिदेशालय यानी डीजीसीए ऐसी घटना की जाँच करता है। ऐसे मामलों में जाँच पूरी होने तक डीजीसीए उस विमान के पायलट व क्रू को ‘ग्राउंड’ कर देता है यानी उड़ान भरने पर रोक लगा देता है। सवाल है कि क्या डीजीसीए का सिर्फ़ इतना ही फ़र्ज़ है? सवाल ये भी है कि क्या ऐसी दुर्घटनाओं के बाद की जाने वाली ऐसी जाँच में केवल एयरलाइन के स्टाफ़ की ही गलती क्यों सामने आती है? क्या डीजीसीए के अधिकारियों को हवाई जहाज़ की नियमित जाँच और रख-रखाव की पड़ताल नहीं करनी चाहिए, जो उनका फ़र्ज़ है? यदि डीजीसीए द्वारा ऐसे निरीक्षण समय-समय पर होते रहें तो ऐसे हादसे टाले जा सकते हैं।
आज हम देश की एक नामी एयरलाइन इंडिगो के बारे में बात करेंगे। निजी क्षेत्र की यह एयरलाइन पिछले महीने काफ़ी सुर्ख़ियों में रही। कारण था इसके विमानों में लैंडिंग के समय होने वाली टेलस्ट्राइक। जब भी कभी विमान का पिछला हिस्सा जमीन से टकरा जाता है उसे टेलस्ट्राइक कहते हैं। अक्सर एयरलाइन कंपनियाँ ऐसी घटनाओं को रिपोर्ट नहीं करतीं। ग़ौरतलब है कि टेलस्ट्राइक की घटना जानलेवा होने के साथ-साथ विमान में हवा के दबाव को स्थिर रखने वाले ढाँचे को भी नुक़सान पहुँचा सकती है। टेलस्ट्राइक विमान के टेकऑफ़ या लैंडिंग के समय होती है। जब भी कभी किसी भी विमान के साथ ऐसा हादसा होता है तो उसे मरम्मत करने के लिए ग्राउंड कर दिया जाता है। भारत के नागरिक उड्डयन इतिहास में टेलस्ट्राइक की घटनाएँ काफ़ी कम हैं।
इंडिगो के विमानों ने बीते एक साल में केवल चार घटनाओं को ही रिपोर्ट किया। जबकि सूत्रों के अनुसार यह संख्या इससे दोगुनी है। जैसे ही इंडिगो द्वारा चार घटनाओं की पुष्टि हुई तो डीजीसीए हरकत में आया। यहाँ सवाल उठता है कि क्या डीजीसीए द्वारा की जाने वाली इस अनदेखी के लिये केवल इंडिगो ही ज़िम्मेदार है? क्या डीजीसीए ने इंडिगो के विमानों का नियमित ऑडिट किया था? ऐसी घटनाओं के बाद ही डीजीसीए को क्यों ऑडिट करने की सूझी? यदि डीजीसीए के अधिकारी एयरलाइन की न सुनकर, क़ानून के हिसाब से हर एयरलाइन का नियमित व विस्तृत ऑडिट करते रहें तो डीजीसीए पर उँगलियाँ नहीं उठेंगी। पर पता नहीं किस लालच या दबाव में ये जाँच नहीं होती।
अब प्रश्न ये है कि टेलस्ट्राइक की घटनाएँ क्यों होती हैं? विमान को लैंड करते समय, यात्रियों को ज़ोर का झटका न लगे इसलिए अक्सर पायलट विमान को नीचे उतारते समय विमान के पिछले हिस्से को थोड़ा झुका लेते हैं और अगले हिस्से को उठा लेते हैं। ऐसे में विमान की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ होती है। यदि विमान लैंड होते समय ज़ोर से झटका लगाता है तो उसे ‘हार्ड लैंडिंग’ कहा जाता है। विमान में लगे यंत्रों में तयशुदा मापदंडों से अधिक लगने वाले झटके से ‘हार्ड लैंडिंग’ की रिपोर्ट स्वतः ही विमान के सिस्टम में दर्ज हो जाती है। जिसका ख़ामियाजा पायलट को भुगतना पड़ता है। इसलिए एयरलाइन अपने पायलटों को ‘हार्ड लैंडिंग’ से हमेशा बचने की हिदायत देतीं हैं। जबकि 2010 के मैंगलोर हादसे के बाद से ही डीजीसीए ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि एयरलाइन कंपनियाँ पायलटों को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने के लिए दबाव न डालें। यदि ज़रूरी हो तो ‘हार्ड लैंडिंग’ की इजाज़त भी दें।
एविएशन के जानकारों के अनुसार टेलस्ट्राइक हो या विमान के इंजन में होने वाली कोई ख़राबी, इसका कारण नियमित रख-रखाव का न होना, विमान के स्पेयर पार्ट की गुणवत्ता और पायलट की उचित ट्रेनिंग का न होना है। इसके साथ ही डीजीसीए के अधिकारियों द्वारा ऐसी कमियों को अनदेखा करना भी एक प्रमुख कारण है। यदि डीजीसीए के अधिकारी एयरलाइन के दबाव या अन्य लालच के चलते इस बात पर ज़ोर न दें कि यात्रियों की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा और शायद ऐसी घटनाएँ न हों।
कोविड महामारी के बाद नागरिक उड्डयन क्षेत्र धीरे-धीरे अपने पैरों पर फिर से खड़ा होने का प्रयास कर रहा है। एयरलाइन कंपनियों का मुनाफ़ा भी अब धीरे-धीरे ऊँचाई छूने का प्रयास कर रहा है। ऐसे में एयरलाइन कंपनियों को विमानों के रख-रखाव में और पायलटों के प्रशिक्षण में किसी भी तरह का समझौता नहीं करना चाहिए।
विमान के इंजीनियर हों, पायलट हों या अन्य कर्मचारी, उनसे क्षमता से अधिक काम न लिया जाए कि वो थकी अवस्था में भी काम करने को मजबूर न हों। पैसा बचाने व ज्यादा मुनाफ़ा कमाने की मंशा से एयरलाइन को यात्रियों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।
एक अनुमान के तहत आनेवाले दो दशकों में भारत का नागर विमानन ट्रैफ़िक 5 गुना बढ़ने की संभावना है। यदि इस क्षेत्र में हमें एक अच्छी पहचान बनानी है तो डीजीसीए के अधिकारियों को अपने स्वार्थों को दरकिनार करते हुए यात्रियों की सुरक्षा और एयरलाइन कम्पनी के विमानों की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी होगी। डीजीसीए के ‘एयर सेफ़्टी डिपार्टमेंट’, ‘फ्लाइट स्टेण्डर्ड्स डिपार्टमेंट’, ‘एयरक्राफ्ट इंजीनियरिंग’ व ‘एयरवर्थिनेस डिपार्टमेंट’ जैसे विभागों को विमानों की जाँच के हर पहलू को कड़ाई से लागू करने को गम्भीरता से लेना होगा। ऐसा करने से एक ओर हवाई यात्रा करने वाले यात्री अपने को सुरक्षित महसूस करेंगे। वहीं दूसरी ओर एयरलाइन कम्पनियों को भी इस बात का ख़ौफ़ बना रहेगा कि छोटी सी भूल के चलते उनके ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही भी हो सकती है।
*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं
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