अपने क्रान्तिकारी विचारों के लिये हमेशा चर्चा में रहने वाली सिने तारिका स्वरा भास्कर ने फहाद से शादी करके भक्तों और अभक्तों को बयानबाजी के लिये नया मसाला दे दिया है. जहाँ भक्त अपनी भड़ास निकालने के लिये सोशल मीडिया पर निहायत नीचे दर्जे की फब्तियां कस रहे है वहीं अभक्त स्वरा को इस साहसी कदम के लिये बधाई दे रहे है. पहले भक्तों की बात कर लें. हिन्दू, मुसलमान के बीच शादी कोई नयी या अनहोनी बात नहीं है.
लव जिहाद का तूफान मचाने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भाजपा के नेताओं के परिवारों में भी ऐसी बहुत शादियां हुई हैं. भाजपा के महासचिव रामलाल की भतीजी श्रिया गुप्ता की शादी हाल ही में लखनऊ में कांग्रेस नेता के बेटे फेजान करीम से हुई तो देश और प्रदेश के भाजपा व संघ के बड़े-बड़े नेता बधाई देने पहुँचे. प्रखर हिन्दूवादी नेता व भाजपा के सांसद डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी की बेटी सुहासिनी ने विदेश सचिव के बेटे नदीम हेदर से निकाह किया और वे सुखी जीवन जी रहे हैं.
1957 में जन्में भाजपा के केन्द्रीय मंत्री व उपाध्यक्ष रहे मुख्तार अब्बास नकवी ने हिन्दू महिला सीमा से शादी की और आजतक सुखी जीवन जी रहे है. इसी तरह भाजपा के ही नेता सैयद शाहनवाज हुसैन ने हिन्दू महिला रेनू से शादी की और आजतक सुखी वैवाहिक जीवन जी रहे है. वर्तमान में केन्द्रीय मंत्री स्मृति मल्हरोत्रा अपनी सखी के पारसी पति से शादी करके स्मृति ईरानी बन गईं. बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की पत्नी जेसिस जॉर्ज ईसाई हैं. अटल जी की कैबिनेट में मंत्री रहे सिकन्दर बख्त की पत्नी राज शर्मा थीं.
ये कुछ उदाहरण काफी है ये बताने के लिये कि शादी दो इंसानों के बीच का मामला होता है. जो एक धर्म के भी हो सकते है और अलग-अलग धर्म के भी. इसलिए जो भक्त समुदाय स्वरा भास्कर को दहेज में फ्रिज ले जाने की सलाह देकर व्यंग कर रहा है उसे अपनी बुद्वि शुद्व कर लेनी चाहिये. अपनी पार्टनर श्रद्धा की हत्या करके उसके टुकड़े फ्रिज में रखने वाले अपराधी आफताब पूनावाला के इस जघन्य कृत्य पर देश में पिछले बरस मीडिया में खुब बवाल मचा. इसे मुसलमानों की लवजिहाद बताकर हिन्दू लड़कियों को मुसलमान लड़कों से दूर रहने की खूब सलाह दी गई.
भक्तों का मानना है कि हर मुसलमान शौहर अपनी हिन्दू बीवी से ऐसा ही सलूक करता है. जबकि श्रद्धा की हत्या के बाद से भी दर्जनों मामले ऐसे सामने आ चुके है जब हिन्दू लड़के ने हिन्दू पत्नी की जघन्य हत्यायें की हैं. आश्चर्य है कि इसे न तो लव जिहाद कहा गया और न ही इस पर मीडिया उछला. पिछले हफ्ते ही साहिल गहलोत ने अपनी प्रेमिका निक्की यादव को काटकर फ्रिज में छुपा दिया. इसे भी कोई लव जिहाद नहीं कह रहा. साफ जाहिर है कि भक्तों के दिमाग में ही कचरा भरा है जो किसी अपराध को अपराध की तरह नही बल्कि लव जिहाद की तरह ही देखते है.
यह सही है कि भारतीय समाज अपनी परम्पराओं और धार्मिक अस्थाओं से बहुत गहरा जुड़ा है. इसलिए दो धर्मों के बीच के विवाह को समाज द्वारा जल्दी आम स्वीकृति नहीं मिलती. दूसरी तरफ ऐसा विवाह करने वाले युगल उगलियों पर गिने जा सकते है. स्वतंत्र और प्रगतिशील विचारों वाले ही ऐसा जोखिम उठाते है. रोचक बात ये है कि भाजपा व सघं के सबसे बड़े नेता सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत कहते है कि हिन्दूओं और मुसलमानों का डी.एन.ए. एक ही है तो फिर स्वरा और फहाद की शादी पर संघ परिवार में इतनी बेचेनी क्यों? डॉ. भागवत तो यहां तक कहते है कि ‘‘मुसलमानों के बिना नहीं बचेगा हिन्दुत्व.’’ जब सरसंघचालक के ये विचार है तो स्वरा भास्कर ने क्या गलत कर दिया जो कि संघ परिवार इतना उत्तेजित हो रहा है.
अभक्त स्वरा और फहाद की शादी से इसलिये खुश है कि इस समाचार ने भक्तों का दिल जला दिया है. बात ये भी नहीं है। स्वरा ने भक्तों का दिल जलाने के लिये फहाद से शादी नहीं की. बल्कि उसे फहाद का व्यक्तित्व आकर्षक लगा पर उसने ये कदम उठा लिया. महत्पूर्ण बात ये है कि इस शादी के लिये स्वरा ने अपना धर्म परिवर्तन नही किया. दोनों ने मजिस्ट्रेट के सामने शादी का पंजीकरण अपने परिवारों की उपस्थिति में करवाया. इसलिये मुल्ला इस शादी को शरियत के कानून से वैध नहीं माना है. उनका कहना है कि जब तक शादी करने वाले अल्लाह को समर्पित नहीं होते तब तक ये शादी उन्हें कबूल नही. पर स्वरा और फहाद इस नियम को नहीं मानते. इसलिये उन्होंने भारत के कानून के अर्न्तगत वैध विवाह किया है. आशा की जानी चाहिये कि समविचारों वाले ये दोनों युवा सुखी वैवाहिक जीवन जीयेंगे और अपने विचारों के अनुसार समाज की भलाई के लिये काम करेंगे.
भारतीय समाज और संविधान की यही विशेषता है कि वो हर बालिग नागरिक को उसकी इच्छा के अनुसार जीवन जीने की छूट देता है. स्वरा और फहाद ने इसी छूट का लाभ उठाकर अपने वैवाहिक जीवन का फैसला लिया है तो इस पर इतना विवाद क्यों? अगर ये शादी इतनी ही गलत है तो संघ और भाजपा के बड़े नेताओं की अन्तरधर्मीय शादियों पर संघ ने ऐसा बवाल क्यों नही मचाया था? जाहिर है कि पिछले आठ वर्षों से संघ और भाजपा हर मुद्दे पर इसी तरह दो मुखोटे लगाये नजर आते हैं. इसीलिये आज देश में गम्भीर मुद्दों को छोड़कर सारी ऊर्जा ऐसे ही निरर्थक विषयों को उछालने पर बर्वाद हो रही है. जिससे समाज में वैमन्स्य पैदा हो रहा है. जिसे स्वरा और फहाद ने कम करने की दिशा में ये कदम उठाया है. जिस के लिये हम उन्हें शुभकामनायें देते है.
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