16 सितंबर, 2022 वह दिन है, जब ईरान में 22 साल की महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी. उसे पुलिस ने न्यायिक हिरासत में केवल इसलिए लिया गया था क्योंकि उसने हिजाब पहनने से इनकार कर दिया था. ये केवल एक उदाहरण हैं क्योंकि यह वाकया ईरान में महिलाओं और लड़कियों की हकीकत दर्शाती है. पिछले एक दशक में ईरान में बने कानून महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार, मौलिक अधिकारों का दमन और स्वतंत्रता एक बड़ा मुद्दा बन गए हैं.
कुछ खास राजनेताओं को भूल भी जाएं तो यह आम ईरानी लोगों के लिए एक बड़ा संघर्ष हैं. खासकर ईरानी महिलाओं के लिए यह खतरनाक साबित हुए हैं. यह ऐसा है जैसे ईरान को पहलवी शासन के साथ एक जहरीला रिश्ता बनाकर छोड़ दिया गया है और लगभग तुरंत ही अयातुल्ला खामेनेई के साथ दूसरे शासन में प्रवेश कर गया है. गौरतलब है कि ईरान को 14 दिसंबर 2022 को संयुक्त राष्ट्र आयोग (सीएसडब्ल्यू) से हटा दिया गया था. इसकी वजह भी महसा अमीनी मौत के लेकर हुए प्रदर्शन थे. ईरान सरकार की गैर-अनुपालन और प्रचलित सुधारों पर काम करने की नकारात्मक नितियां और अनिच्छुक प्रकृति समेत महिलाओं के अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर उदासीनता ईरान की धार्मिक कट्टरता को दिखाती है. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि क्या हम इस स्थिति को सुधारना चाहते हैं तो हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाने की जरूरत है. इनमें सीएसडब्ल्यू जैसे फोरम और सलाहकार निकायों की आवश्यकता होगी.
राजनीतिक अधिकारों और स्वास्थ्य देखभाल पर चर्चा करने के लिए, पूर्वाग्रहों पर ध्यान देना अनिवार्य हो जाता है. इस्लामी गणतंत्र ईरान की इस्लामी दंड संहिता में महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह स्थापित है. ये ठीक वैसा ही है जैसे अपने यहां आईपीसी है. सबसे पहले दस्तावेज़ ढेर सारे अस्पष्ट और अपरिभाषित शब्दों का उपयोग करता है. जैसे ‘परिपक्व’, ‘अपरिपक्व’, ‘बूढ़ा’ और ‘इच्छा और इरादा है’, जो अधिकारों को कानून अपनेपक्ष में रखने और उसमें हेरफेर करने की गुंजाइशों के अधिकार देता है. आईपीसी का अनुच्छेद 76 महिलाओँ को घरेलू हिंसा के मामलों की रिपोर्ट दर्ज करने तक से कतराने पर मजबूर करता है. इसकी वजह यह है कि कानून में उन्हें कोई समर्थन ही नहीं मिलता है और यहां तक कि उनकी गवाही तक कोर्ट में अमान्य हो जाती है.
इसके अलावा आईपीसी का अनुच्छेद 150 स्पष्ट रूप से मृत महिला को अपने वंश और उसके बच्चों/उत्तराधिकारियों की संख्या के आधार पर न्याय पाने का अधिकार से वंचित कर देता है. आईपीसी का अनुच्छेद 300 सरकार की इस धारणा को दर्शाता है कि जितना एक आदमी अधिकार पाता है, महिला उसका आधा अधिकार ही प्राप्त कर सकती है. एक महिला ही इसकी हकदार है. अनुच्छेद 513, 514 और 640 मूलतः स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी का हनन करते हैं. इसके तहत राजनीति मामले में अपने अभिव्यक्ति नहीं प्रकट की जा सकती है. ऐसा करने पर सजा के प्रावधान भी हैं. अनुच्छेद 638 यह भी इंगित करता है कि सार्वजनिक रूप से किसी भी धार्मिक नियम का उल्लंघन करने पर महिलाओं को 74 कोड़े मारे जाएंगे.
2021 में संयुक्त राष्ट्र महिला आयोग ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर कुल सीटों का केवल 5.6% संसद का संचालन महिलाओं द्वारा किया जाता है. आयोग ने इस पर निराशा जताई थी. इसका प्रमुख कारण यह है कि महिलाएं भी विरोध करने से लेकर अपनी बात रखने में सक्षम नहीं है. हम इसका उदाहरण देख सकते हैं कि महसा अमीनी के मामले में महिलाओं के विरोध प्रदर्शन को कुचलने के लिए हिंसा का उपयोग करना शुरू कर दिया. यह सीधे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों का हनन था. इसके अलावा ईरान महिलाओं को जरूरी स्वास्थ्य सुविधाएं देने में भी असफल साबित हुआ था. बता दें कि स्वास्थ्य में केवल शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक स्थिति भी अहम होती हैं, जिसमें ईरान फेल हो गया था. संयुक्त राष्ट्र महिला रिपोर्ट के अनुसार, ईरान में महिलाओं के लिए स्वास्थ्य देखभाल में माताओं और नवजात शिशुओं की देखभाल, माताओं को नकद लाभ और परेशानी मुक्त इलाज शामिल हैं.
उपरोक्त सभी मुद्दे केवल शरिया कानून के कारण नहीं, बल्कि इसके सख्ती लागू होने के कारण भी हैं. ईरान का संविधान महिलाओं के लिए समान अधिकार देता है. हालांकि इन मॉरल पुलिस से लेकर ईरानी कानून इन सारे अधिकारों को दबा देता है. नतीजा ये महिलाओँ के लिए स्थितियां नकारात्मक हो जाती हैं. इस शासन के ख़िलाफ़ विरोध जल्द ही उग्र और तूफानी हो गया, जिससे उसे समर्थन मिलने लगा. इसके तहत ‘वन मिलियन सिग्नेचर’ अभियान के माध्यम से नागरिकों की मदद के लिए एक याचिका दायर की गई. जिसमें निष्पक्ष चुनावों से लेकर विधायी प्रशासन की मांग की गई. ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड को 537 से अधिकर ईरानी नागरिकों की मौत के जिम्मेदार थे, जो कि हिसंक प्रदर्शन के बहाने से ले प्रदर्शनकारियों पर हमला बोल रहे थे. विरोध प्रदर्शन शुरु होने के बाद ही ईरानी नागरिकों के लिए वहां की सरकार ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी. इसका मूल कारण विरोध प्रदर्शन को फैलने से रोकना था.
इन मुद्दों पर तुरंत ही कार्रवाई करना आवश्यक है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की भी मदद ली जाए. इसके लिए हमें सबसे पहले हमें ‘महिला अधिकारों की सुरक्षा के लिए ईरानी नियामक समिति’ के गठन की कोशिश करनी चाहिए. इसमें संयुक्त राष्ट्र के चार्टर को भी याद रखा जाए जिससे अनुच्छेद 2(4) और (7) का उल्लंघन न हो और ईरान की क्षेत्रीय संप्रभुता संरक्षित रहे. यह समिति महिलाओं की देखभाल के प्रमुख उद्देश्य के साथ व्यापक और प्रगतिशील दृष्टिकोण संकल्प 1325 (2000) में परिभाषित अधिकारों में शामिल होगी. साथ ही महिलाओं के लिए अनुकूल माहौल बनाएं आधुनिक दृष्टिकोण के साथ गश्त-ए-इरशाद की मॉरल पुलिस को खत्म किया जाए. जहां समिति को निम्नलिखित कार्यों को पूरा करने के लिए एक वार्षिक नामित फंड भी दिया जाए. साथ ही एक हॉटलाइन भी बने. इसमें महिला सशक्तिकरण के लिए हेल्प डेस्क बनाए जाएं, जो कि महिलाओँ द्वारा ही संचालित हो, और महिलाओं के स्वास्थ्य-शिक्षा के मामलों पर काम करें.
ये हॉटलाइनें महिलाओं की सहायता करेंगी और उन्हें कानूनी परामर्श प्रदान करेंगी. महिलाओं को मनोवैज्ञानिक परामर्श लेना चाहिए जो उन्हें मानसिक संकट से निपटने में मदद करता है. महिला स्वास्थ्य एवं शिक्षा क्षेत्र में सुधार किया जाए. इसमें 14 वर्ष से कम उम्र की सभी लड़कियों को रियायती लागत पर शिक्षा का प्रावधान शामिल होना चाहिए. माताओं और उनके नवजात शिशुओं के लिए सरकार से संबद्ध अस्पतालों द्वारा पर्याप्त सहायता का प्रावधान होना ही चाहिए. इसके अलावा महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ाना और उनकी भागीदारी को बढ़ावा देने का उद्देश्य होना चाहिए. महिलाओं को वैज्ञानिक, कृषि, सांस्कृतिक, स्वास्थ्य संबंधी और ऐसे अन्य क्षेत्रों में भी अवसर मिलने चाहिए. इसके अलावा मौजूदा बुनियादी ढांचे और खुफिया नेटवर्क में सुधार बहुत महत्वपूर्ण है.
अंतरराष्ट्रीय मंच के साथ ऐसा नेटवर्क स्थापित किया जाए, जिससे मानवतस्करी से लेकर पर लगाम लगाई जा सके. यौन उत्पीड़न पर लगाम लगाना भी इसमें एक अहम बिंदु होगा. इसके अलावा तस्करी के नेटवर्कों की जांच से लेकर उन्हें ध्वस्त करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए. तीसरा, सीएसडब्ल्यू को आर्थिक और सुरक्षा परिषद को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी. सामाजिक परिषद ईरान में चुनाव का अनुरोध कर रही है। ईरान में उच्च पदों के लिए होने वाले चुनावों में संयुक्त राष्ट्र की निगरानी हो. जिससे चुनावों में भ्रष्टाचार पर लगाम लग सके. ऐसे में चुनाव तब होते हैं. जब मुल्क में भ्रष्टाचार के सबूत पुख्ता पाए जाते हैं और एक मिलियन सिग्नेचर अभियान इसका मजबूत आधार बन गया. जो कि ईरान में विधायी सुधारों का अह्वाहन करता है.
निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि हमें मनुष्यों के बीच संसाधनों का समान वितरण प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए. हमें हर महिला को उसके अधिकारों के बारे में बताना चाहिए और अधिकारों की रक्षा करने के प्रयास करने चाहिए. हम प्रत्येक महिला को स्वयं का सर्वोत्तम संभव संस्करण बनने के लिए प्रोत्साहित करने में विश्वास करते हैं. इसके लिए गर्भपात को अपराध की श्रेणी से बाहर करने सहित हमारे हालिया विधायी सुधारों से और अधिक स्पष्ट होगा. इसके अलावा हमें प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल तक बेहतर पहुंच प्रदान करना, बच्चियों की भ्रूण हत्या के लिए सख्त कानून प्रावधान करने से लेकर राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं के लिए बेहतर स्थितियां प्रदान करनी होगी, जो कि उनकी स्थिति को सामाजिक तौर पर मजबूत करेंगी.
-भारत एक्सप्रेस
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