Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के तारीखों के एलान के साथ – साथ चुनाव लड़ने के इच्छुक नेताओं के संघर्षों का बखान भी उनके समर्थक करने लगे हैं. जिस नेता ने जनता के लिए धरातल पर काम किया है उस नेता के समर्थक उन बातों को आम जनमानस को याद दिला रहे हैं और जिन नेताओं ने जनता के लिए कोई काम नही किया है उनके समर्थक जनता को जाति और धर्म याद दिला रहे हैं.
घोसी लोकसभा क्षेत्र से सबसे पहले एनडीए की सहयोगी सुभासपा ने अरविन्द राजभर को प्रत्याशी घोषित किया उसके बाद इण्डिया एलायंस की सहयोगी समाजवादी पार्टी ने राजीव राय को घोसी लोकसभा से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है, वहीं बहुजन समाज पार्टी ने अपने पत्ते को अभी तक नही खोला है.
अगर सुभासपा के प्रत्याशी अरविन्द राजभर की बात की जाए तो अरविन्द 2017 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के प्रत्याशी के तौर पर बलिया के बांसडीह से विधानसभा का चुनाव लड़े थे लेकिन किस्मत ने साथ नही दिया और अरविन्द राजभर विधायक बनने से चूक गये. चुनाव हारने के बावजूद सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने अपने पुत्र अरविन्द राजभर को यूपी सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा दिलवा दिया. लेकिन कुछ ही समय बाद ओपी राजभर भाजपा से नाराज रहने लगे और उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ दिया, साथ छोड़ा तो छोड़ा लेकिन ओपी राजभर ने तो सारी हदें भी छोड़ दी थीं. ओपी राजभर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर तमाम ऐसी बयान बाजियां की जिसे सियासत को करीब से देखने सुनने वाले लोग अच्छा नही मानते हैं.
उसके बाद ओपी राजभर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चले गये और अपने पुत्र को वाराणसी के शिवपुर विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनवा दिया लेकिन इस बार भी अरविन्द विधायक नही बन पाए और ना ही समाजवादी पार्टी सरकार में आई ताकि कोई अन्य विकल्प बन पाता. कुछ महीनों पहले ही ओपी राजभर का फिर से हृदय परिवर्तन हो गया और वह फिर भाजपा के साथ आ गये और जिनको उन्होंने पानी पी – पी कर कोसा था उन्हें फिर से महान बताने लगे. यूपी सरकार के मंत्रीमण्डल विस्तार में ओपी राजभर को महत्वपूर्ण विभाग भी मिल गये उसके बाद ओपी राजभर ने अपने बड़े पुत्र अरविन्द को सांसद बनाने के लिए घोसी से बिगुल फूँक दिया है.
वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव एवं प्रवक्ता राजीव राय घोसी की सियासत में 2012 से सक्रिय हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को मिली जीत का श्रेय राजीव राय को भी जाता है क्योंकि राजीव राय को अखिलेश यादव की कोर टीम का हिस्सा माना जाता है.
2014 के लोकसभा चुनाव में राजीव राय कुछ खासा कमाल नही दिखा पाए और चुनाव हार गये लेकिन चुनाव हारने के बावजूद राजीव राय पिछले एक दशक से घोसी में सक्रिय हैं और लोगों के भरोसे को जीतने के लिए काम करते हुए देखे जाते हैं. यहां तक के 2019 के लोकसभा चुनाव में जब राजीव राय को प्रत्याशी नही बनाया गया तो कई तरह की सियासी अटकलें लगीं लेकिन राजीव राय मजबूती से अखिलेश यादव के साथ खड़े दिखे.
घोसी लोकसभा क्षेत्र की चुनावी तस्वीर तो बसपा के प्रत्याशी के घोषित होने के बाद ही साफ होगी लेकिन राजीव राय के प्रत्याशी घोषित होने के बाद से घोसी लोकसभा का सियासी समीकरण बदलते हुए दिख रहा है.
घोसी लोकसभा के स्थानीय लोगों का कहना है कि राजीव राय ने मदद मांगने पर मदद किया है ना कि बहाना बनाया है जबकि सुभासपा प्रत्याशी का घोसी लोकसभा से कोई वास्ता ही नही रहा है. वहीं उनके पिता ओमप्रकाश राजभर के सियासी बयानबाजी का नुकसान भी घोसी लोकसभा के चुनाव में हो सकता है क्योंकि उनके कई बयानों पर पब्लिक में जबरदस्त रिएक्शन है.
यूपी सरकार के मंत्री दारा चौहान के इस्तीफा देने के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी दारा चौहान को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. ओपी राजभर जनसभाओ में चुनाव को एक तरफ़ा बताते रहेलेकिन परिणाम चौंकाने वाला आया था. भाजपा प्रत्याशी को भाजपा के बेस वोटर चौहान, निषाद, राजभर और क्षत्रिय बाहुल्य क्षेत्रों के बूथो पर हार का सामना करना पड़ा था. जिसकी वजह आमजन की नाराजगी बताई गई. अब इस बार फिर मुकाबला दिलचस्प दिख रहा है.
2024 के लोकसभा चुनाव में घोसी लोकसभा अपनी अलग पहचान कायम रखने में सफल रहती है या सत्ता के साथ अपनी हिस्सेदारी बढ़ाती है, यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा. वैसे आज़ादी के बाद से घोसी लोकसभा क्षेत्र से 13 बार भूमिहार, 2 बार चौहान(लोनिया), 2 बार राजभर और एक बार क्षत्रिय जाति के सांसद निर्वाचित हुए हैं. 4 जून को परिणाम तय करेगा कि 14 वीं बार भूमिहार सांसद बनेगा या राजभर जाति का हैट्रिक लगेगा या फिर इन दोनों की सियासी लड़ाई में कोई और मैदान मार ले जाएगा.
घोसी संसदीय सीट पर जातिगत समीकरण पर नजर डालें तो सबसे अधिक दलित बिरादरी के मतदाता हैं. घोसी लोकसभा में तकरीबन 4 लाख 30 हजार दलित मतदाता हैं, 3 लाख 45 हजार मुस्लिम,1 लाख 82 हजार चौहान (लोनिया), 1 लाख 73 हजार राजभर,1 लाख 62 हजार यादव, 1 लाख 59 हजार भूमिहार, 1 लाख 15 हजार क्षत्रिय, 87 हजार बनिया, 78 हजार ब्राह्मण, 47 हजार मल्लाह, 42 हजार कुर्मी/ मल्ल, 27 हजार कुम्हार/खरवार, 23 हजार गोंड, 7800 कायस्थ, 3400 सिंधी एवं अन्य मतदाता हैं जो लोकतंत्र के पर्व पर आम जनता के लिए देश की सबसे बड़ी पंचायत में बैठने वाला प्रतिनिधि चुनेंगे.
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