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Siyasi Kissa: जब पहले ही लोकसभा चुनाव में संविधान निर्माता बाबा साहब आंबेडकर को हार का सामना करना पड़ा था

आजादी के बाद और 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव से पूर्व देश में पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया था, जिसमें डॉ. भीमराव आंबेडकर केंद्रीय कानून मंत्री थे.

संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर.

15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली शख्सियतों में एक थे. उन्होंने हमारे संविधान को मूर्त रूप दिया. आज का भारत इसी संविधान के द्वारा शासित होता है. संविधान में देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों को परिभाषित किया गया और उनकी सुरक्षा के उपायों का भी प्रावधान किया गया है.

आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को देश ने भारतीय संविधान को अपनाया था. इसके बाद देश में ऐसी सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ था, जिसका चयन जनता के द्वारा होना था. 1951 में इसकी शुरुआत पहले आम चुनाव यानी लोकसभा चुनाव का आयोजन किया गया. हालांकि ये चुनाव संविधान निर्माता आंबेडकर के लिए सुखद नहीं रहे, क्योंकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

देश की पहली अंतरिम सरकार में कानून मंत्री थे

पहला लोकसभा चुनाव अक्‍टूबर 1951 से फरवरी 1952 तक हुआ था. हिमाचल प्रदेश में मौसमी परिस्थितियों के कारण अक्टूबर 1951 में ही चुनाव करा लिए गए थे और देश के अन्य हिस्सों में 1952 में मतदान कराए गए थे. ये दौर कांग्रेस नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू का था. आजादी के बाद और 1951-52 के लोकसभा चुनाव से पहले देश में पंडित नेहरू के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया था.


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नेहरू ने विभिन्न समुदायों से चुने गए 15 सदस्यों के साथ पहला केंद्रीय मंत्रिमंडल बनाया था. इस सरकार में डॉ. आंबेडकर को केंद्रीय कानून मंत्री बनाया गया था. हालांकि इस सरकार में कानून मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल अधिक समय तक नहीं चल सका था.

बताया जाता है नेहरू से नीतिगत मतभेदों के कारण उन्होंने 27 सितंबर 1951 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. रिकॉर्ड के अनुसार डॉ. आंबेडकर का इस्तीफा 11 अक्टूबर 1951 को स्वीकार कर लिया गया था. ऐसे कई मुद्दे थे जिन्हें लेकर उनमें मतभेद उभरे थे, जिसमें से एक हिंदू कोड बिल भी था. ऐसा कहा जाता है कि आंबेडकर ‘निचली और पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए बहुत कम प्रयास करने के लिए’ भी कांग्रेस से नाराज थे.

कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल

उस समय कांग्रेस का प्रभुत्व अपने चरम पर था, लेकिन कई अन्य राजनीतिक ताकतें भी पहले लोकसभा चुनाव से पूर्व ही अपना दबदबा कायम करने लगी थीं. इसके मद्देनजर श्यामा प्रसाद मुखर्जी (नेहरू के अधीन उद्योग मंत्री) ने अलग होकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जिसे भाजपा का पैरेंट संगठन कहा जाता है और जो हिंदू दक्षिणपंथ का प्रतिनिधित्व करता था. आंबेडकर ने शेड्यूल्ड केस्ट्स फेडरेशन (SCF) का गठन किया था. उन्होंने इससे पहले 1936 में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (ILP) का भी गठन किया था.

मुंबई नॉर्थ सेंट्रल सीट से लड़ा था चुनाव

अपनी पार्टी शेड्यूल्ड केस्ट्स फेडरेशन के तहत डॉ. आंबेडकर ने 1952 में पहला लोकसभा चुनाव मुंबई नॉर्थ सेंट्रल सीट से लड़ा था. अशोक मेहता के नेतृत्व वाली सोशलिस्ट पार्टी ने उनका समर्थन किया था. यह 2 सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र था, जहां सामान्य और अनुसूचित जाति/जनजाति से एक-एक उम्मीदवार एक ही सीट से चुनाव लड़ते थे. यह प्रथा 1961 तक देश में जारी रही थी.

हालांकि यह कांग्रेस और नेहरू लहर का दौर था. बताया जाता ​है आजादी के बाद लोगों में पार्टी के प्रति कृतज्ञता का भाव था, इसकी वजह से कांग्रेस ने इन चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया था. पार्टी की ओर से जिन्होंने भी चुनाव लड़ा था, उन सबने जीत हासिल की थी.


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डॉ. आंबेडकर को इन चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस के नारायण सदोबा काजरोल्कर ने उन्हें तकरीबन 15,000 वोटों से मात दी थी. काजरोल्कर, डॉ. आंबेडकर के पीए के तौर पर काम कर चुके थे. कम्युनिस्ट पार्टी के नेता एसए डांगे जैसे दिग्गजों ने भी यहां से चुनाव लड़ा था.

पंडित नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने जबरदस्त जीत हासिल करते हुए 489 लोकसभा सीटों में से 364 सीटें अपने नाम की थी. इसके अलावा विधानसभाओं में 3,280 सीटों में से 2,247 सीटें पार्टी के खाते में गई थी.

चुनाव परिणामों पर आंबेडकर ने उठाए थे सवाल

चुनावों में मिली हार के बाद आंबेडकर ने परिणाम पर सवाल उठाए थे. यह हार उनके लिए पीड़ादायक रही थी, क्योंकि महाराष्ट्र उनकी कर्मभूमि था. समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट में 5 जनवरी 1952 को उनके हवाले से कहा गया है, ‘बॉम्बे की जनता के भारी समर्थन को इतनी बुरी तरह से कैसे झुठलाया जा सकता था, यह वास्तव में चुनाव आयुक्त की जांच का विषय है.’

डॉ. आंबेडकर और अशोक मेहता ने चुनाव परिणाम को रद्द करने और इसे अमान्य घोषित करने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त के समक्ष एक संयुक्त चुनाव याचिका दायर की थी. अन्य बातों के अलावा उन्होंने यह दावा भी किया था कि ‘कुल 74,333 मत-पत्रों को खारिज कर दिया गया था और उनकी गिनती नहीं की गई थी’.

1952 के भंडारा उपचुनाव भी नहीं जीत सके थे

इसके बाद आंबेडकर ने साल 1954 में महाराष्ट्र के भंडारा निर्वाचन क्षेत्र से उपचुनाव लड़ा था. हालांकि वह दोबारा कांग्रेस से लगभग 8,500 वोटों से हार गए. इस अभियान के दौरान आंबेडकर ने नेहरू नेतृत्व पर निशाना साधा था और विशेष रूप से उनकी विदेश नीति की आलोचना की थी. ​कुछ विद्वान बताते हैं कि चुनाव से पता चला कि डॉ. आंबेडकर की पार्टी शेड्यूल्ड केस्ट्स फेडरेशन महाराष्ट्र तक ही सीमित रही और उनके अपने महार समुदाय के अलावा अन्य मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर सकी. इसके बाद साल 1957 में देश में दूसरे लोकसभा चुनाव हुए हालांकि उससे पहले 6 दिसंबर 1956 को डॉ. आंबेडकर का निधन हो गया था.

नेहरू पर आरोप

ऐसे आरोप हैं कि पंडित नेहरू ने आंबेडकर के प्रभाव को दबाने का प्रसास करते हुए उन्हें साइडलाइन कर दिया था. ऐसा इसलिए ताकि वह मुख्यधारा की राजनीति में न आ सकें. भाजपा आरोप लगाती है कि पहले लोकसभा चुनाव में आंबेडकर का रास्‍ता रोकने के लिए नेहरू ने उनके पर्सनल असिस्‍टेंट काजरोल्कर को चुनाव मैदान में खड़ा कर दिया था. उनकी हार सुनिश्चित करने के लिए खुद नेहरू ने उनके खिलाफ कैंपेनिंग की थी. भंडारा में भी आंबेडकर को हराने का आरोप नेहरू पर लगाया जाता है.

-भारत एक्सप्रेस

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