Bharat Express

Siyasi Kissa: जब एक चुनावी रैली के दौरान देश के पूर्व प्रधानमंत्री की कर दी गई थी नृशंस हत्या

ये वो समय था, जब 10वीं लोकसभा के लिए देश में चुनाव हो रहे थे. ये राजनीतिक अस्थिरता का दौर था और अर्थव्यवस्था भी गहरे संकट से गुजर रही थी.

21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में बम विस्फोट से ठीक पहले महिलाओं से मुलाकात के दौरान राजीव गांधी.

देश के सियासी इतिहास की बात करें तो इसमें गांधी परिवार (Gandhi Family) का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इस परिवार से कई सदस्य प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए और इनमें से कुछ को इसकी कीमत अपनी जान देकर भी चुकानी पड़ी.

आज 21 मई को हम आपको राजनीति के उस दौर की झलक देने जा रहे हैं, जब एक घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. ऐसी देश के राजनीतिक इतिहास में ऐसी नृशंस घटना पहले कभी नहीं हुई थीं. 1991 में आज ही तारीख में एक चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की हत्या कर दी गई थी. गांधी परिवार में देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव दूसरे सदस्य और देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे, जिनकी जान ले ली गई. आज उनकी 33वीं पुण्यतिथि है.

21 मई 1991 का दिन

21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनाव प्रचार दौरान लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी लिट्टे (LTTE) कैडरों द्वारा राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी. धनु नाम की एक आत्मघाती हमलावर (Suicide Bomber) ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था.

इस हमले में राजीव गांधी के अलावा 15 से 16 लोगों की जान चली गई थी. हत्या के बाद तमिलनाडु सरकार के अनुरोध पर जांच CBI की विशेष जांच टीम (SIT) को सौंप दी गई थी. इंदिरा गांधी की हत्या के लगभग साढ़े छह साल बाद यह दर्दनाक घटना हुई थी. ये वो समय था, जब देश में लोकसभा चुनाव हो रहे थे. ये राजनीतिक अस्थिरता का दौर था और अर्थव्यवस्था भी गहरे संकट से गुजर रही थी.


ये भी पढ़ें: क्या एक पार्टी के दौरान इंदिरा गांधी पर उनके बेटे संजय गांधी ने हाथ उठाया था?


हत्या की संभावित वजह

देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उस समय श्रीलंका में भारतीय शांति सेना (IPKF) के साथ हस्तक्षेप किया था. आउटलुक की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1991 के चुनावों में प्रधानमंत्री के रूप में राजीव की वापसी की संभावना, साथ ही उनके द्वारा IPKF की पुन: तैनाती की संभावना ने श्रीलंका में लिट्टे को चिंतित कर दिया था.

न्यूज 18 की एक रिपोर्ट के अनुसार, राजीव द्वारा शांति सेना को श्रीलंका भेजने के बाद लिट्टे उनके खिलाफ हो गया था. थिंक टैंक Gateway House के अनुसार, भारतीय सेना को शुरू में श्रीलंका के अधिकारियों की सहायता करने के लक्ष्य के साथ भेजा गया था, लेकिन समय के साथ उनका मिशन उग्रवाद-विरोधी और अंतत: लिट्टे के साथ युद्ध में बदल गया.

यहां तक कि 1990 में शांति सेना मिशन के समापन से भी लिट्टे संतुष्ट नहीं हुआ, जो राजीव को भारत में अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता था. 1991 की इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, लिट्टे प्रमुख वी. प्रभाकरन ने इस संबंध में नवंबर 1990 में (हत्या को लेकर) निर्णय लिया था.

90 Days: The True Story of the Hunt for Rajiv Gandhi’s Assassins के लेखक अनिरुद्ध मित्रा ने लिखा है, ‘राष्ट्रीय मोर्चा सरकार (वीपी सिंह की) गिरने से पहले ही लिट्टे ने राजीव गांधी को दोबारा सत्ता हासिल करने से रोकने का मन बना लिया था, भले ही इसके लिए अंतिम निवारक (उनकी हत्या) की आवश्यकता हो.’

मित्रा बताते हैं कि यह मानते हुए कि प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी पर हमला लगभग असंभव होगा, उन्होंने ऑपरेशन को आगे बढ़ाने का फैसला किया, क्योंकि उस समय वह सत्ता में नहीं थे, उनकी सुरक्षा स्थिति एक विपक्षी नेता की थी और चुनाव प्रचार उन्हें और आसान लक्ष्य बना रहा था.

Suicide Bomber धनु

मीडिया में आईं कुछ खबरों के अनुसार, उनकी हत्या करने वाली धनु और अन्य लिट्टे सदस्यों ने इससे पहले दो बार हत्या की प्रैक्टिस की थी. सबसे पहले वे दिवंगत AIADMK नेता जयललिता की रैली में गए और दूसरे दौर में वीपी सिंह की एक रैली में इसकी प्रैक्टिस की थी. धनु 21 मई से पहले वीपी सिंह के पैर छूने में कामयाब रही थी.


ये भी पढ़ें: जब ‘मोदी’ ने ‘गब्बर’ का खात्मा किया था और नेहरू के जन्मदिन पर ये खबर उन्हें गिफ्ट में दी गई!


21 मई 1993 को राजीव रात 10 बजे के बाद श्रीपेरंबदूर में रैली स्थल पर पहुंचे थे. वहां पुरुष और महिला के लिए अलग-अलग गैलरी बनी थी. राजीव पहले पुरुष गैलरी में गए और फिर महिला गैलरी में. इस दौरान अनुसुइया डेज़ी नामक एक पुलिसकर्मी ने धनु को उन तक पहुंचने से रोकने की कोशिश की थी, लेकिन राजीव ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया.

इसके बाद धनु को मौका मिल गया, जिसके लिए उसने तैयारी की थी. वह चंदन की माला और एक घातक आत्मघाती जैकेट से लैस थी. धनु राजीव के करीब आ गई और पहले उन्हें माला पहना दी, फिर पैर छूने के लिए नीचे झुक गई. इस दौरान उसने अपने जैकेट से जुड़े स्विच को दबा दिया और एक भयानक धमाके साथ वह रैली स्थल, मातम के मैदान में तब्दील हो गया.

आरोपियों को सजा

टाडा अदालत ने 1998 में 41 आरोपियों में से 26 को मौत की सजा सुनाई थी, जिनमें 12 लोग शामिल थे, जो विस्फोट में या मामले की जांच के दौरान मारे गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने मई 1999 में उनमें से 19 को रिहा कर दिया, जबकि मुरुगन, संथन, एजी पेरारिवलन और नलिनी श्रीहरन की मौत की सजा को बरकरार रखा और रॉबर्ट पायस, आरपी रविचंद्रन और जयकुमार की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. राजीव की हत्या के बाद के हफ्तों और महीनों में इन सातों अभियुक्तों को पकड़ा गया था.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, एक दशक से अधिक समय और कई अपीलों के बाद संथन, मुरुगन और पेरारिवलन की फांसी सितंबर 2011 के लिए तय की गई. हालांकि, 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने तीनों की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया.

नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन दशकों से अधिक समय से आजीवन कारावास की सजा काट रहे 6 दोषियों को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया. छह दोषी नलिनी, रविचंद्रन, जयकुमार, संथन, मुरुगन और रॉबर्ट पायस थे. सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 को पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था, जिसने 30 साल से अधिक जेल की सजा पूरी कर ली थी.

रिहा होने के बाद फरवरी 2024 में बीमारी के बाद संथन की चेन्नई में मौत हो गई. वह 55 वर्ष का था. उसे उसके घर श्रीलंका वापस भेजने का निर्णय भी आ चुका था.  इस तरह से यह उस दुखद प्रकरण का अंत था, जो 1980 के दशक में श्रीलंका के आंतरिक संघर्ष में भारत की विनाशकारी भागीदारी के साथ शुरू हुआ था.

1991 में तीन चरणों में हुए थे मतदान

1991 में 10वीं लोकसभा के लिए तीन चरणों में 20 मई, 12 जून और 15 जून को मतदान हुए थे. 21 मई को राजीव गांधी की हत्या के बाद चुनाव कुछ दिन के लिए टाल दिए गए थे, जो 12 और 15 जून को हुए. वहीं, पंजाब में देरी के साथ फरवरी 1992 में वोट डाले गए.

दरअसल, पंजाब उन दिनों सिख अलगाववादियों से जूझ रहा था, चुनाव के दौरान ही यहां एक ऐसी दर्दनाक घटना हो गई थी कि चुनाव देरी से कराने के लिए मजबूर होना पड़ा. 15 जून 1991 को लुधियाना में दो ट्रेनों को रोककर उसमें यात्रा कर रहे 76 से 126 लोगों की अलगाववादियों ने हत्या कर दी गई थी. पंजाब में 22 जून 1991 को चुनाव होने वाले थे, लेकिन इस घटना के बाद चुनावों को टाल दिया गया था.

हालांकि 1984 के विपरीत राजीव की हत्या से कांग्रेस के लिए सहानुभूति वोटों का सैलाब नहीं आया, लेकिन अल्पमत सरकार के मुखिया पीवी नरसिम्हा राव के साथ उनकी पार्टी सत्ता में लौट आई. राजीव गांधी ने मरणोपरांत उत्तर प्रदेश में अपनी सीट जीत ली थी.

1991 में जिन 521 सीटों पर चुनाव हुए थे, उनमें से कांग्रेस ने 232 सीटें जीती थीं. भाजपा ने 468 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उसे 120 सीटों पर जीत मिली थी. इसके अलावा जनता दल ने 59, सीपीआई (एम) ने 35 और सीपीआई ने 14 सीटों पर विजय हासिल की थी. राजीव ने अमेठी में 1.12 लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की. उनकी हत्या से एक दिन पहले ही यहां वोट डाले गए थे. इसके बाद हुए उपचुनाव में राजीव के करीबी कैप्टन सतीश शर्मा ने यहां से जीत दर्ज की थी.

-भारत एक्सप्रेस

Bharat Express Live

Also Read