क्या निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39 बी के तहत समुदाय के भौतिक साधन माना जा सकता है, जो राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतो का हिस्सा हो? इन मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. संविधान पीठ ने 5 दिनों तक इस मसले पर सुनवाई की, जिस दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील और केंद्र सरकार, महाराष्ट्र सरकार की ओर से दलीलें रखी गई.
नौ सदस्यीय संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावे न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति बी नागरत्ना, न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति आगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल है. पीओए ने महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण अधिनियम के अध्य्याय 8 (a) का विरोध किया है.
म्हाडा अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 39 (b) के अनुसरण में अधिनियमित किया गया था, जो राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतो का हिस्सा है और सरकार के लिए स्वामित्व और नियंत्रण हासिल करने की दिशा में एक ऐसी नीति बनाना अनिवार्य बनाता है, जिसके तहत यह सुनिश्चित हो कि समुदाय के भौतिक संसाधनों का वितरण सार्वजनिक कल्याण के लिए सर्वोत्तम तरीके से संभव हो सके.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्य सरकार की ओर से दलील देते हुए कहा कि म्हाडा प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 31 सी के जरिये संरक्षित के इरादे से 1971 के 25वें संशोधन अधिनियम द्वारा डाला गया था. मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी निजी संपत्ति समुदाय का भौतिक संसाधन नही है और प्रत्येक निजी संपत्ति समुदाय का भौतिक संसाधन है. ये दो अलग दृष्टिकोण है.
संविधान पीठ ने कहा निजीकरण और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए इसकी समकालीन व्याख्या किये जाने की आवश्यकता है. पीठ ने कहा कि आज भी निजी संपत्ति की रक्षा करते हैं, हम अभी भी व्यवसाय जारी रखने के अधिकार की रक्षा करते है. हम अभी भी इसे राष्ट्रीय एजेंडे के हिस्से के रूप में चाहते है. मैं इसे सरकार का एजेंडा नही कहता.
पीठ ने कहा कि सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, 1990 से ही निजी क्षेत्र द्वारा निवेश को प्रोत्साहित करने की नीति रही है. मुंबई के प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन सहित 16 याचिकाकर्ता महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट ऑथोरिटी अधिनियम के अध्य्याय 8 (a) का विरोध कर रहे है. प्रावधान राज्य प्राधिकारियों को ऐसे भवनों और उस भूमि अधिग्रहण करने का अधिकार देते है, जिससे शुल्क लिया जाता है, यदि उसके निवासियों में से 70 प्रतिशत निवासी उसके पुननिर्माण का अनुरोध करते है.
मुख्य याचिका पीओए द्वारा 1992 में दायर की गई थी और 20 फरवरी 2002 को नौ सदस्यीय संविधान पीठ को भेजे जाने से पहले इसे तीन बार पांच और सात न्यायधीशों वाली संविधान पीठ के पास भेजा गया.
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