कांग्रेस ने अडाणी समूह से जुड़े मामले को “मित्रवादी पूंजीवाद” की मिसाल करार देते हुए मंगलवार को कहा कि अगर इस मामले पर सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है तो उसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की मांग स्वीकार करनी चाहिए. पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान के संदर्भ में यह टिप्पणी की. शाह ने कहा है कि अडाणी समूह के मामले में छिपाने के लिए कुछ नहीं है. रमेश ने यह भी कहा कि उन्होंने इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर और सेबी प्रमुख को पत्र लिखा है. उनका कहना था कि कांग्रेस जेपीसी की मांग से पीछे नहीं हटेगी.
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “अगर छिपाने के लिए कुछ नहीं है तो जेपीसी की मांग से क्यों भाग रहे हैं? सरकार के लोग संसद में जेपीसी का जिक्र तक नहीं करने देते.” रमेश ने कहा, “अगर छिपाने के लिए कुछ नहीं है तो जेपीसी की मांग स्वीकार करिये. जेपीसी को एक समयसीमा दे दीजिए. अडाणी की जांच कराइये.” उनका कहना था, “कहते हैं कि जांच हिंडनबर्ग की कराएंगे. जांच तो अडाणी की होनी चाहिए, प्रधानमंत्री से उनके रिश्ते की जांच करिये.” रमेश ने कहा, “कांग्रेस हमेशा निजी निवेश के पक्ष में रही है. हम हमेशा उद्यमशीलता के पक्ष में हैं. यही आर्थिक तरक्की का रास्ता है. ” उनका कहना है, “हम अंध निजीकरण के खिलाफ हैं. निजी निवेश को प्रोत्साहन देना जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सरकारी उपक्रमों को बेचा जाए.”
रमेश ने कहा, “हम उदारीकरण के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उदारीकरण नियम के अनुसार और पारदर्शिता के साथ होना चाहिए.” उन्होंने कहा, “हमारी लड़ाई प्रधानमंत्री से निजी निवेश को लेकर नहीं है, सरकारी उपक्रमों को बेचने को लेकर है, मित्रवादी पूंजीवाद को लेकर है.” उन्होंने कहा कि अडाणी का मामला “मित्रवादी पूंजीवाद” की एक मिसाल है. कांग्रेस महासचिव के अनुसार, “हम बजट सत्र के अगले चरण में बार-बार जेपीसी की मांग करते रहेंगे और इस पर विपक्षी पार्टियां एकजुट हैं.” उन्होंने कहा कि 17 फरवरी को कांग्रेस के नेता देश के अलग-अलग शहरों में संवाददाता सम्मेलन करेंगे.
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