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सुभासपा के कोटे में गई घोसी लोकसभा, क्या हैं सियासी समीकरण

Parliamentary Election 2024: सियासत में हर एक सियासी कदम बहुत नपा तुला रखा जाता है और जैसे – जैसे मतदान का दिन नजदीक आता है वैसे – वैसे सियासी मयार चढ़ता और उतरता है. देश में हो रहे आम चुनाव में घोसी लोकसभा क्षेत्र की सीट एनडीए गठबंधन के घटक दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के खाते में गई है. सुभासपा ने 70 घोसी लोकसभा क्षेत्र से यूपी सरकार में मंत्री एवं सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के पुत्र और सुभासपा के राष्ट्रीय महासचिव अरविन्द राजभर को प्रत्याशी बनाया है.

अरविन्द राजभर योगी सरकार 1.0 में कुछ समय के लिए दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री भी रहे और 2022 के विधानसभा चुनाव में वाराणसी के शिवपुर विधानसभा सीट पर लड़े थे, लेकिन तत्कालीन भाजपा प्रत्याशी अनिल राजभर से हार का सामना करना पड़ा था.

वैसे तो ख़बर लिखे जाने तक यानी मार्च 2024 तक एनडीए गठबंधन में कुल 39 घटक दल हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के सियासत में भारतीय जनता पार्टी ने बस राष्ट्रीय लोकदल, निषाद पार्टी, सुभासपा और अपना दल सोनेलाल को हिस्सेदारी दी है.

आज़ादी के बाद बस एक बार जीती है भाजपा

घोसी लोकसभा क्षेत्र का अपना सियासी इतिहास रहा है. कभी घोसी को उत्तर भारत का केरल यानी कम्युनिस्टो का गढ़ कहा जाता था लेकिन बदलते वक्त के साथ घोसी के भी सियासी हालात बदल गये. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में घोसी लोकसभा सीट काफी मायने रखती है. इस सीट पर कभी कांग्रेस-लेफ्ट का कब्जा रहता था, यहां से छह बार कांग्रेस तो पांच बार लेफ्ट ने जीत दर्ज की है. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर कमल खिलाया था. फिर 2019 में बसपा को वहां जीत मिली थी, अब इस बार फिर मुकाबला दिलचस्प दिख रहा है.

घोसी लोकसभा पर रहा है भूमिहार सांसदो का दबदबा

घोसी लोकसभा क्षेत्र से सर्वाधिक 13 बार भूमिहार, 2 बार चौहान(लोनिया), 2 बार राजभर और एक बार क्षत्रिय जाति के सांसद निर्वाचित हुए हैं. घोसी लोकसभा क्षेत्र के वर्तमान सांसद अतुल कुमार सिंह भी भूमिहार जाति से ही ताल्लुकात रखते हैं.

घोसी लोकसभा का जातीय समीकरण

घोसी सीट के समीकरण की बात करें तो यहां पर 20 लाख 55 हजार वोटर्स हैं, यहां भी 10 लाख पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या भी 9 लाख से ज्यादा है. घोसी लोकसभा क्षेत्र में दलित, मुस्लिम, भूमिहार, राजपूत, चौहान(लोनिया), राजभर, यादव, कुर्मी, मल्लाह, ब्राह्मण और प्रजापति वोटरों की भी निर्णायक भूमिका देखने को मिल जाती है.

दलित और मुस्लिम निर्णायक

घोसी संसदीय सीट पर जातिगत समीकरण पर नजर डालें तो सबसे ज्यादा वोटर्स दलित बिरादरी से आते हैं. यहां तकरीबन 4 लाख 30 हजार दलित मतदाता हैं, तो इसके बाद मुस्लिम वोटर्स हैं जिनकी संख्या तकरीबन 3 लाख 45 हजार है. चौहान (लोनिया) 1 लाख 82 हजार, राजभर 1 लाख 73 हजार और यादव 1 लाख 62 हजार, भूमिहार 1 लाख 59 हजार, राजपूत 1 लाख 15 हजार, बनिया 87 हजार, ब्राह्मण 78 हजार, मल्लाह 47 हजार, कुर्मी/ मल्ल 42 हजार, कुम्हार/खरवार 27 हजार, गोंड 23 हजार, कायस्थ 7800, सिंधी 3400 एवं अन्य मतदाता हैं जो यहां के चुनावी जंग पर अपना फैसला सुनाएंगे.

घोसी उपचुनाव में बिगड़ा था सियासी समीकरण

यूपी सरकार के मंत्री दारा सिंह चौहान के इस्तीफा देने के बाद हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी दारा सिंह चौहान को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. ओमप्रकाश राजभर आम जनसभाओ में बोलते हुए देखे जाते थे कि चुनाव एक तरफ़ा है लेकिन परिणाम चौंकाने वाला था. दारा चौहान को भाजपा के बेस वोटर चौहान, निषाद, राजभर और क्षत्रिय बाहुल्य क्षेत्रों के बूथो पर हार का सामना करना पड़ा था. जिसके बाद दारा सिंह चौहान को एमएलसी बनाकर मंत्री बनाया गया.

क्या रहा है वोटिंग पैटर्न

घोसी लोकसभा का वोटिंग पैटर्न अगर 1984 और 2014 के लोकसभा चुनाव को छोड़ दिया जाए तो लहर के विपरीत रहा है. 1984 में इंदिरा गांधी के मृत्यु के बाद कम्युनिस्ट पार्टी से यह सीट कांग्रेस के पाले में आ गई थी. वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में यह सीट बसपा से भाजपा के पाले में आ गई थी. ऐसे में एनडीए गठबंधन को घोसी की सीट को अपने पाले में कर पाना आसान नही होगा.

Divyendu Rai

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