Meerut News: खेल जगत के लिए उत्तर प्रदेश से बड़ी खबर सामने आ रही है. लखनऊ में शनिवार को प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित एक समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेरठ की उड़न परी के नाम से फेमस पारुल चौधरी को डीएसपी पद का नियुक्ति पत्र सौंपने के साथ ही 4.5 करोड़ का चेक भी सौंपा.
बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ से करीब 30 किलोमीटर दूर इकलौता गांव की रहने वाली एथलीट पारुल चौधरी का बचपन का सपना उस वक्त पूरा हो गया जब उनको अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया. एथलीट पारुल चौधरी का बचपन का सपना पूरा हो गया. बता दें कि, उन्हें ऐशियन गेम्स में गोल्ड मेडल के लिए 3 करोड़ और सिल्वर मेडल के लिए 1.5 करोड़ रुपए योगी सरकार की ओर से दिए गए हैं.
मालूम हो कि, एशियाई खेलों में 5000 मीटर महिलाओं की रेस में पारुल चौधरी ने गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिया था. सबसे ताज्जुब की बात ये है कि इस रेल में लगातार पीछे चल रहीं पारुल चौधरी ने आखिरी के 10 सेकेंड में इतनी तेज दौड़ी थीं कि, सभी खिलाड़ियों को पीछे छोड़ते हुए गोल्ड जीतने में कामयाब हो गई थीं. उनकी यह रणनीति इतनी कामयाब आई कि, उन्होंने भारत के लिए इस पल को ऐतिहासिक बना दिया. तो वहीं 3000 मीटर स्टीपल चेज़ में सिल्वर मेडल जीतकर पारुल चौधरी ने सभी को गौरवान्वित किया था.
एशियन गेम्स में एक साथ दो मेडल जीतने वाली अर्जुन अवार्डी पारुल चौधरी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि, जब उन्हें सिल्वर मेडल मिल गया था. उसके बाद दूसरे दिन ही उन्हें गोल्ड के लिए खेलना था. पारुल ने बताया कि, जब वह आखिरी लम्हों में दौड़ रही थी तब उन्हें याद आया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि जो भी उत्तर प्रदेश का खिलाड़ी गोल्ड लाएगा उसे डीएसपी पद पर नियुक्ति किया जाएगा.
बस उनकी इसी बात को याद करने के बाद वह इतनी तेज दौड़ी कि गोल्ड जीत लिया और आज वह डीएसपी बन गई हैं. इसके लिए उन्होंने सीएम को धन्यवाद दिया और कहा कि उनके बचपन का सपना पूरा हो गया.
एथलीट पारुल चौधरी के पिता कृष्ण पाल सिंह ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए मीडिया से कहा कि, बेटी का बचपन का सपना नियुक्ति पत्र मिलने के बाद पूरा हो गया है. वह कहते हैं कि पारुल बचपन से ही पुलिस विभाग में भर्ती होकर गरीबों को न्याय दिलाने के लिए काम करना चाहती थी. वह बोले कि, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनकी बेटी पारुल चौधरी को डीएसपी पत्र का नियुक्ति पत्र सौंपा है, इससे पूरा परिवार खुश हो गया है.
पारुल चौधरी के पिता आगे बताते हैं कि उनकी बेटी ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है. जब पारुल ने खेल की शुरुआत की तो वह गांव में ही टूटी-फूटी सड़कों पर रनिंग का अभ्यास करती थी, जिससे उसको बहुत चोटें भी आती थीं. इसके बाद कोच गौरव त्यागी ने सलाह दी और फिर वह कैलाश प्रकाश स्टेडियम में अभ्यास करने लगी. पारुल सुबह 4 से 5 बजे के बीच में ही उठ जाती थी. चाहे कोई भी मौसम हो वह कभी भी रनिंग को लेकर समझौता नहीं करती थी.
वह प्रतिदिन गांव से कई किलोमीटर तक पैदल सफर करते हुए अपने पिता के साथ स्टेडियम पहुंचती थी और घंटों अभ्यास करने के बाद घर जाती थी. पिता कहते हैं कि उसकी इसी कड़ी मेहनत के कारण आज लोग उसे मेरठ की “उड़न परी” के नाम से जानते हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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