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Muslim Rashtriya Manch: राष्ट्रवादी मुस्लिम संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने हमास, हिजबुल्लाह, लश्कर, अलकायदा, बोकोहराम, हिजबुल, ISIS और PFI जैसे संगठनों और उनके द्वारा फैलाए गए हिंसा और आतंकवाद के मकड़जाल की कड़ी निंदा की है। साथ ही हमास की पैरोकार.. देश की मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भी मंच ने कटघरे में खड़ा किया है। मंच का सीधे तौर पर मानना है कि ऐसी कोई लड़ाई, असहमति या विवाद नहीं जो वार्ता के जरिए हल नहीं की जा सकती हो। परंतु चिंतनीय एवं निंदनीय यह है कि हमास की खौफनाक आतंकी घटना ने इंसानियत को तार तार करते हुए दरिंदगी की इंतहा कर दी है जिसकी जितनी भी आलोचना की जाए कम है।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मीडिया प्रभारी शाहिद सईद ने बताया कि नई दिल्ली के झंडेवालान में स्थित कार्यालय कलाम भवन में गुरुवार को एमआरएम की एक आपात बैठक हुई जिसमें सभी राष्ट्रीय संयोजक, प्रांत व क्षेत्रीय संयोजक, सह संयोजक एवं विभिन्न प्रकोष्ठों के प्रभारियों समेत लगभग 60 लोगों ने शिरकत की। बैठक का स्वरूप ऑफ़ लाइन एवं ऑन लाइन दोनों रखा गया था ताकि निकटवर्ती इलाकों को छोड़ कर बाकी लोग ऑन लाइन बैठक में शिरकत कर सकें। बैठक में एक सिरे से हमास के हरकतों की कड़ी आलोचना की गई। मंच का मानना है कि हमास द्वारा की गई मौजूदा गतिविधि जंग नहीं, नरसंहार और वीभत्सता के नंगे नाच की श्रेणी में आती है, जिसे कोई भी सभ्य समाज, समुदाय या देश कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता है।
येरुशलम विवादित क्षेत्रों के केंद्र में है, जिसको लेकर दोनों देशों के बीच शुरू से ही ठनी हुई है। इजरायली यहूदी और फिलिस्तीनी अरब, दोनों की पहचान, संस्कृति और इतिहास येरुशलम से जुड़ी हुई है। दोनों ही इस पर अपना दावा करते हैं। यहां की अल-अक्सा मस्जिद, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित कर रखा है, दोनों के लिए बेहद अहम और पवित्र है। इस पवित्र स्थल को यहूदी ‘टेंपल माउंट’ बताते हैं, जबकि मुसलमानों के लिए ये ‘अल-हराम अल शरीफ’ है। यहां मौजूद ‘डोम ऑफ द रॉक’ को यहूदी धर्म में सबसे पवित्र धर्म स्थल कहा गया है, लेकिन इससे पैगंबर मोहम्मद का जुड़ाव होने के कारण मुसलमान भी इसे उतना ही अपना मानते हैं। यहां मुस्लिम नमाज पढ़ सकते हैं लेकिन गैर-मुस्लिमों को यहां केवल एंट्री मिलती है लेकिन इबादत करने पर पाबंदी लगी है। पिछले दिनों यहूदी फसल उत्सव ‘सुक्कोट’ के दौरान यहूदियों और इजरायली कार्यकर्ताओं ने यहां का दौरा किया था तो हमास ने इसकी निंदा की थी। हमास का आरोप था कि यहूदियों ने यथास्थिति समझौते का उल्लंघन कर यहां प्रार्थना की। इन दोनों के अलावा ईसाई धर्म के लोग अलग इस स्थान पर अपना दावा ठोकते हैं। अब इतनी बड़ी आबादी के मानने वाले धर्मों की अलग अलग महत्वकांक्षाएं हैं जिसके कारण समस्याएं रहती हैं जिसका उपाय जरूरी है अन्यथा मासूमों के हत्याओं की आशंका बनी रहेगी।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का मानना है कि झगड़े के जो भी कारण रहें, इसका हल बात-चीत और शांतिपूर्ण तरीके से निकाला जाना चाहिए। हिंसा, अत्याचार, आतंकवाद सिर्फ बरबादी और तबाही दे सकते हैं, समस्या का समाधान नहीं। मंच ने हमास के आतंकी हमले के दौरान इजरायली नागरिकों, औरतों और बच्चों के साथ की गई क्रूरता की कड़ी भर्त्सना की। मंच का कहना है कि इजरायल और फिलिस्तीन का मामला हो या रूस और यूक्रेन का, झगड़ों का हल जंग से नहीं बल्कि शांति और सौहार्द पूर्ण वातावरण में बात-चीत के जरिए निकाला जाना चाहिए। हमास के आतंकी हमले के कारण इजरायल की सड़कों पर लाशें, खून और मातम पसरा था। जो बचे थे उनकी दर्दनाक चीख हमास के अमानवीय चेहरे की गाथा सुना रही थी। ऐसे में मंच का मानना है कि खून खराबे… मासूमों, असहाय, बेबस और मजलूमों पर अत्याचार करने के बनिस्बत वार्ता के चाहे कितने ही “दौर” और “दरवाजे” क्यों न खोलने पड़ें वह बेहतर है। हमास जैसे आतंकी संगठन जिसे चंद लोग रहनुमा मानते हैं उनकी भी मंच घोर निंदा करता है, और इसे आतंकी संगठन की श्रेणी में रखता है।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का मानना है कि कुरान शरीफ समेत दुनिया के हर धार्मिक ग्रंथ में अमन, अपनापन, प्यार और शांति की बात कही गई है, खून खराबे और हत्याओं को कहीं भी जायज नहीं ठहराया गया है। परंतु यह बड़ा ही दुखद है कि इस्लाम और मुसलमानों के नाम पर जितने भी जेहादी संगठन बने हैं उन सभी ने इस्लाम का नाम खराब करने का काम किया है। मंच का मानना है कि इस्लाम अमन, शांति और खुशहाली का पैगाम देता है, बम, बारूद और गोलियों का नहीं। मुस्लिम देशों से एमआरएम की अपील है कि हमास के बुजदिली और बर्बरता की चौतरफा निंदा और विरोध हो। मंच का मानना है चंद हजार आतंकियों के संगठन हमास ने लाखों शांतिपूर्ण फिलिस्तीनियों के जीवन को कतलो- गारत के अंधेरे कुएं की तरफ झोंक दिया है। ऐसे में फिलिस्तीन की अवाम को खुद हमास का पुरजोर विरोध करते हुए इस आतंकी तंजीम के खात्मे की कसम खानी चाहिए। क्योंकि बदले की कार्यवायी में जुल्म के शिकार हमेशा मासूम और निर्दोष लोग होते हैं। इस बीच, कुरान को मानने और अमल करने वाले देश सऊदी अरब, यूएई और बहरीन जैसे देशों ने भी हमास की आलोचना की है।
इजरायल और हमास के बीच जंग में भले ही फॉस्फोरस बम चल रहे हों लेकिन भारत में इसे लेकर सियासत बंटती नजर आरही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने हमास की आलोचना करते हुए इजरायल का पक्ष लिया है तो वहीं कांग्रेस अब फिलिस्तीनी नागरिकों के अधिकारों की बात कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा कि भारत आतंकवाद के हर रूप की निंदा करता है और इस मुश्किल घड़ी में भारत के लोग इजरायल के साथ मजबूती से खड़े हैं। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच भी हमास की निंदा करता है और संकट के समय पूरी तरह इजरायली अवाम के साथ है।
मंच का कहना है कि हमास की आतंकी गरिविधियों की मुस्लिम देशों समेत दुनिया के सभी मुल्कों को विरोध करना चाहिए। कांग्रेस नेतृत्व की भी मंच ने कड़ी आलोचना की। मंच का मानना है कि आतंक की प्रकाष्ठा के बावजूद हमास की आलोचना करने की बजाए कांग्रेस उसका बचाव करने में लगी है, जो अमानवीय, चिंतनीय एवं निंदनीय है। मंच का मानना है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को ऐसी शर्मनाक हरकतों से बाज आना चाहिए। मंच का कहना है कि कांग्रेस की इसी बीमारू मानसिकता और ढुल मुल रवैया के कारण कश्मीर में आतंकवाद को शह मिली तथा एक शांतिपूर्ण स्थान जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता था वो बम के धमाकों, गोलियों की गूंज और हुड़दंगी पत्थरबाजों के कारण अशांत, असुरक्षित और आमजनों का जन जीवन अस्त व्यस्त होकर रह गया था। पंजाब में खालिस्तानी समर्थक और भिंडरावाला को खड़ा करने में कांग्रेस का ही हाथ था जिससे स्पष्ट होता है कि कांग्रेस का चाल, चरित्र एवं चेहरा दागदार और हाथ खून से सने हैं। कांग्रेस की ही कमजोरी के कारण देश को 2008 मुंबई हमले का दंश झेलना पड़ा था। 1989 में भागलपुर दंगे में भी कांग्रेसियों के नापाक चेहरे हर तरफ उजागर हुए थे। मंच का मानना है कि आजादी के बाद से अब तक देश में हुए 34 हजार दंगों में से 99.99 फीसदी दंगों की मास्टरमाइंड कांग्रेस ही है क्योंकि कांग्रेस और तथाकथित अन्य सेकुलर दलों की सरकार में यह सारे दंगे हुए हैं।
बैठक में मोहम्मद अफजाल, गिरीश जुयाल, शाहिद अख्तर, ताहिर हुसैन, विराग पाचपोर अबु बकर नकवी, एस के मुद्दीन, रज़ा हुसैन रिजवी, मजीद तालिकोटि, तुषरकांत, इरफान अली पीरजादा, हाजी मोहम्मद साबरीन, इमरान चौधरी, मोहम्मद इस्लाम, खुर्शीद रजाका, फैज खान, शालिनी अली, रेशमा हुसैन, सैयद मोहम्मद इरफान, ठाकुर राजा रईस, महताब आलम रिजवी, फारूक खान, अज़ीम उल हक, इमरान हसन, इरतेजा करीम, अनिल गर्ग, केशव पटेल, मोहम्मद हसन नूरी, अल्तमश खान बिहारी, अकील खान, आसेफा अली, जाहिर हुसैन, आमिर खान, अब्दुल रउफ, आसिफ अली, चांदनी बानो, मीर नजीर, बदरुद्दीन खान समेत अनेक कार्यकर्ताओं ने शिरकत की।
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