Electoral Bond Case: इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये राजनीतिक पार्टियों को कॉरपोरेट और अधिकारियों के बीच कथित लेनदेन की एसआईटी से जांच की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस मांग को लेकर याचिकाकर्ता हाई कोर्ट जा सकता है. याचिकाकर्ताओं के पास विकल्प मौजूद है. हमारे लिए मौजूदा स्थिति में कानून के तहत इन याचिकाओं को स्वीकार करना उचित नहीं.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि मामलों में सिर्फ राजनीतिक दल ही नहीं बल्कि प्रमुख जांच एजेंसियां भी शामिल हैं. भूषण ने कहा कि यह देश के इतिहास के सबसे बुरे वित्तीय घोटालों में से एक है. जिन कम्पनियों ने बॉन्ड लिए उसके बाद उन्हें काम मिला, इससे स्पष्ट है कि उसके एवज में किया गया. सीजेआई ने कहा कि हमने बॉन्ड स्कीम को रद्द कर दिया था और जानकारी साझा करने को कहा था. अब इस मामले में एसआईटी जांच की मांग क्यों? सीजेआई ने कहा कि यह मामला एसआईटी जांच का नहीं है. ऐसे किसी भी मामले में एसआईटी जांच के आदेश नहीं दे सकते हैं.
वहीं भूषण ने कहा कि यहां पर कुछ प्रीमियर जांच एजेंसी, राज्य सरकारें और बड़े बिजनेस मैन शामिल हैं, इसलिए इसकी एसआईटी से जांच होनी चाहिए. जिसमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज को शामिल किया जाए. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने यह फैसला दिया है. कोर्ट दो गैर सरकारी संगठनों कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है.
इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये राजनीतिक पार्टियों को उद्योग जगत से मिले चंदे की एसआईटी जांच कराने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने इस साल फरवरी में अपने एक फैसले में चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड जारी करने वाले बैंक एसबीआई पर चुनावी बॉन्ड जारी करने को लेकर तुरंत रोक लगा दी थी. चुनावी बॉन्ड योजना के तहत राजनीतिक दलों को गुमनाम तरीके से चंदा देने का प्रावधान था.
याचिकाओं में उन शेल कम्पनियों और घाटे में चल रही कंपनियों के वित्तपोषण के स्रोत की जांच एसआईटी से कराने की मांग की गई है, जिन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों को दान दिया है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 15 फरवरी को भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गई चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था. 2 जनवरी 2018 को सरकार द्वारा अधिसूचित चुनावी बॉन्ड योजना को राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था.
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अप्रैल में एनजीओ की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मार्च में जारी चुनावी बॉन्ड डेटा से पता चलता है कि इनमें से अधिकांश कॉरपोरेट द्वारा राजनीतिक दलों को या तो वित्तीय लाभ के लिए या केंद्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग सहित केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से बचने के लिए क्विड प्रो क्वो के रूप में दिए गए थे.
-भारत एक्सप्रेस
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