Child Marriage: देश में बढ़ते बाल विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है. कोर्ट ने देश में बाल विवाह की रोकथाम पर कानून के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए कई दिशानिर्देश जारी किया है. कोर्ट ने कहा कि लोगों इसके नफा और नुकसान के बारे में बताना होगा. कोर्ट ने कहा फैसले की कॉपी गृह मंत्रालय सहित अन्य विभागों को भेजा जाए. कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 सभी पर्सनल लॉ पर प्रभावी होगा. कोर्ट ने माना है कि बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां है. बाल विवाह आए जीवनसाथी चुनने का विकल्प छिन जाता है.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने यह फैसला सुनाया है. कोर्ट ने सभी पक्षों की जिरह के बाद 10 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि बाल विवाह में शामिल लोगों पर केस करने से ही इस समस्या का समाधान नहीं होगा. यह याचिका सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलेंटरी एक्शन ने साल 2017 में दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को पूरी तरह से राज्य सरकारें लागू नहीं कर रही है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जागरूकता अभियान और प्रशिक्षण जैसे विशिष्ट कार्यक्रमों पर सवाल उठाते हुए कहा था कि ये कार्यक्रम और व्याख्यान वास्तव में जमीनी स्तर पर चीजों को नहीं बदलते हैं. कोर्ट ने कहा था कि यह एक सामाजिक मुद्दा है. सरकार इस पर क्या कर रही है. सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कहा गया था कि बाल विवाह के मामलों में कमी आई है.
असम को छोड़कर पूर्वोत्तर राज्यों में ऐसी घटना देखने को नहीं मिली है. जबकि, दादर नगर हवेली, मिजोरम और नागालैंड समेत पांच राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बाल विवाह का कोई मामला सामने नहीं आया है. केंद्र सरकार ने दावा किया था कि देश बाल विवाह के मामलों में काफी कमी आई है. हालांकि, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को बाल निषेध अधिनियम को क्रियान्वित करने के लिए उठाए गए कदमों के विवरण देने को कहा था. बता दें कि भारत में बाल विवाह पर रोक है.
भारतीय कानून के निषेध अधिनियम 2006 के मुताबिक शादी के लिए एक लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल होनी चाहिए. अगर इससे कम उम्र में लड़के और लड़की की शादी कराई जाती है तो यह जुर्म है और कानून में इसको लेकर सजा तय किया गया है. बाल विवाह रोकने के लिए भारत में आजादी से पहले से ही कानून है. असम में बाल विवाह को सामाजिक अपराध मानते हुए मुख्यमंत्री बिस्व सरमा ने कड़ा फैसला लिया है. प्रदेश में बाल विवाह का आरोप में लगातार गिरफ्तारियां चल रही है। इस गिरफ्तारी में किसी भी वर्ग को बख्शा नही जा रहा है. बाल विवाह कराने वाले पुजारी से लेकर काजी तक के खिलाफ केस दर्ज किए जा रहे हैं.
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