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पतंजलि और अन्य कंपनियों के भ्रामक विज्ञापनों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए लागू की शर्तें

पतंजलि और अन्य कंपनियों के भ्रामक विज्ञापनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त आदेश जारी किया है। विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए शर्तें लागू की है। कोर्ट ने कहा है कि किसी विज्ञापन को मीडिया में प्रसारित या प्रकाशित करने से पहले विज्ञापनदाता को एक सेल्फ डिक्लेरेशन देना होगा। सेल्फ डिक्लेरेशन के बिना कोई भी विज्ञापन प्रकाशित और प्रसारित नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा चैनलों को प्रसारण सेवा पर सेल्फ डिक्लेरेशन प्रसारित करनी होगी। कोर्ट ने स्वास्थ्य मंत्रालय से FSSAI की ओर से प्राप्त शिकायतों पर की गई कार्रवाई का डेटा मांगा है।

पतंजलि के ये उत्पाद न हों बाजार में उपलब्ध

कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि पतंजलि के जिन उत्पादों के संबंध में लाइसेंस निलंबित कर दिया गया है, वे बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं रहने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा अगर लाइसेंस निलंबित है, तो उत्पाद नहीं बेचा जाना चाहिए, हमें नोटिस देना होगा. साथ कोर्ट ने अगली सुनवाई में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की व्यक्तिगत पेशी से छूट देने की मौखिक मांग को खारिज कर दिया है. जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि हमने सिर्फ 7 मई के लिए पेशी से छूट दी थी, कृपया आगे छूट के लिए अनुरोध न करें।

अगली सुनवाई 14 मई को

कोर्ट ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोकन को नोटिस जारी कर 14 मई तक जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट 14 मई को इस मामले में अगली सुनवाई करेगा। केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने हलफनामा दाखिल कर कहा है कि 2018 से लेकर अबतक 36040 शिकायतें दर्ज हुई है। अब तक 354 भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। देशभर से मिली शिकायतों में राजस्थान में सबसे ज्यादा 206 भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ लाइसेंसिंग ऑथिरिटी ने कार्रवाई की है, जबकि मामला दर्ज होने के मामले में तमिलनाडु में सबसे ज्यादा 4230 मामले दर्ज किए गए हैं।

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मामला सिर्फ एक संस्था तक सीमित नही रखा जाएगा…

पिछले दिनों पतंजलि भ्रामक विज्ञापन से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मामला सिर्फ एक संस्था तक सीमित नही रखा जाएगा। इतना ही नही कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि भ्रामक विज्ञापन के जरिए उत्पाद बेचकर लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाली कंपनियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की? कोर्ट ने कोर्ट ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने पूछा था कि एलोपैथी डॉक्टर खास ब्रांड की महंगी दवाइयां अपने पर्चे में क्यों लिखते है? सुप्रीम कोर्ट ने एमसीआई से पूछा था कि क्या जानबूझकर महंगी दवा लिखने वाले डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने का क्या नियम है? केंद्रीय मंत्रालयों और अधिकारियों को झूठे अभियानों में शामिल फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।

गोपाल कृष्ण

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