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पिंगली वेंकैया: तिरंगे के रचयिता को ही राष्ट्रध्वज नसीब न हुआ!

के. विक्रम राव


देश 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाने को तैयार है. इस अवसर पर हम आपको एक ऐसी शख्सियत के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने हमारे राष्ट्रीय ध्वज ​तिरंगे के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. जिन्हें नाज है हिंद पर वे सभी जान लें, राष्ट्रध्वज के रूपरेखाकार पिंगली वेंकैया एक तेलुगूभाषी निर्धन स्कूल मास्टर थे. वे कंगाली में जन्मे तथा अभाव में पले. 2 अगस्त 1876 को उनका जन्म आंध्र प्रदेश के मछलीपत्तनम में हुआ था. इस विप्र के शवदाह में पर्याप्त ईधन नहीं मिला. उनका अधूरा ख्वाब था कि तिरंगे में लपेटकर उनकी लाश ले जाई जाए.

वेंकैया ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे. वह मेधावी छात्र थे. लाहौर के वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी के शिक्षक रहे. कैंब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक डिग्री ली. मगर भारत लौटकर आए तो निजी रेलवे कंपनी में नौकरी पाई. लखनऊ में भी एक शासकीय नौकरी की. उनके रोजगार में विविधता रही.

सैनिक के रूप में दक्षिण अफ्रीका गए

भूविज्ञान तथा कृषि क्षेत्र में निष्णात रहे. खदानों के जानकार रहे. फिर आई उनके जीवन की विलक्षण बेला. ब्रिटिश सेना का दक्षिण अफ्रीका में बोयर युद्ध हुआ. भारतीय लोग भी वहीं गए. सर्वाधिक महत्वपूर्ण सैनिक थे मोहनदास कर्मचंद्र गांधी. वे चिकित्सक (स्वयंसेवक) की भूमिका में थे. तभी वेंकैया भी ब्रिटिश सैनिक के रोल में गए. गांधीजी से भेंट हुई, परिचय हुआ. फिर भारत में राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन में दोनों में प्रगाढ़ता बढ़ी.

तभी का किस्सा है. चालुक्यों की गौरवमयी राजधानी रही काकीनाडा (गोदावरी तटीय) की घटना है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन (26 दिसंबर 1923) हुआ. यह चालुक्यों के सम्राट पुलकेशिन से जुड़ा था. यहीं वेंकैया ने कांग्रेस में शरीक होकर राष्ट्रीय ध्वज के प्रारूप पर चर्चा की थी.

राष्ट्रध्वज की आवश्यकता पर बल

यह अधिवेशन दो घटनाओं के लिए ऐतिहासिक था. यहीं मौलाना मोहम्मद अली ने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वंदे मातरम गाने पर ऐतराज किया था. वॉक आउट किया था. तभी से यह राष्ट्रगान अधूरा हो गया. इसी अधिवेशन में राष्ट्रीय कांग्रेस ने तय किया कि स्वतंत्रता के बाद भारत का भाषा के आधार पर पुनर्गठन किया जाएगा.

काकीनाडा अधिवेशन में ही वेंकैया ने राष्ट्रध्वज की आवश्यकता पर बल दिया था. उनका यह विचार गांधीजी को बहुत पसंद आया. गांधीजी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने का सुझाव दिया.

अंग्रेजी झंडों का प्रयोग बंद

पिंगली वेंकैया ने पांच सालों तक 30 विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर शोध किया और अंत में तिरंगे के लिए सोचा. विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पिंगली वेंकैया महात्मा गांधी से मिले थे और उन्हें अपने द्वारा डिजाइन लाल और हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया. तब तक ब्रिटिश सरकार का यूनियन जैक ध्वज ही कांग्रेस सम्मेलनों में फहराया जाता था. मगर बाद में तिरंगा फहरने लगा.

देश में कांग्रेस पार्टी के सारे अधिवेशनों में दो रंगों वाले अंग्रेजी झंडों का प्रयोग बंद हो गया, लेकिन उस समय इस झंडे को कांग्रेस की ओर से आधिकारिक तौर पर स्वीकृति नहीं मिली थी. इस बीच जालंधर के हंसराज ने झंडे में चक्र चिह्न बनाने का सुझाव दिया. इस चक्र को प्रगति और आम आदमी के प्रतीक के रूप में माना गया.

ध्वज गीत की भी रचना की गई

बाद में गांधीजी के सुझाव पर पिंगली वेंकैया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया. 1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया. फिर राष्ट्रीय ध्वज में इस तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली.

राष्ट्रध्वज वेंकैया द्वारा निरूपित हो जाने से गीत का प्रस्ताव आया, इसी की पंक्ति थी जो हम लोग गुलाम भारत (1945—46) में स्कूलों में गाते थे. ध्वज गीत की रचना श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ ने की थी. पद वाले इस मूल गीत से बाद में कांग्रेस ने तीन पद (पद संख्या 1, 6 व 7) को संशोधित करके ‘ध्वज गीत’ के रूप में मान्यता दी.

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

यह गीत अनेक नौजवानों और नवयुवतियों के लिए देश पर मर मिटने का प्रेरणास्रोत भी बना, ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा. सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला. वीरों को हरषाने वाला, मातृभूमि का तन-मन सारा.’

जब 9 अगस्त 1942 में गवालिया टैंक मैदान मुंबई (अगस्त क्रांति मैदान) में सारे नेताओं के कैद हो जाने पर क्रांतिकारी अरुणा आसफ अली ने यह ध्वज फहराया था. वे भी गुनगुना रही थीं, ‘इसकी शान न जाने पाए. चाहे जाने भले ही जाए.’

-भारत एक्सप्रेस

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