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जब धोतियों की रस्सी बनाकर जेल की 17 फीट ऊंची दीवार लांघ जयप्रकाश नारायण ने अंग्रेजों को दिखाया था ठेंगा

जेल की 17 फीट ऊंची दीवार लांघने के बाद बीहड़ जंगल में घंटों लगातार पैदल चलते हुए उनके पैरों में छाले पड़ गए थे. जोरदार भूख लगी थी. ऊपर से कड़ाके की सर्दी थी. तब वे छह लोग जंगल में एक जगह आग जलाकर सुस्ताने बैठे थे, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि फौज की दो कंपनियां उनकी तलाश में जुटी हैं. अंग्रेज सरकार ने उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए सूचना देने वाले को 10 हजार रुपये का इनाम देने की घोषणा कर दी थी. यह कहानी जिन क्रांतिकारियों की है, उसके सबसे बड़े नायक का नाम भारत रत्न लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Loknayak Jayaprakash Narayan) है.

संपूर्ण क्रांति के प्रणेता

देश आज उनकी 122वीं जयंती मना रहा है. संपूर्ण क्रांति के प्रणेता और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन (Indian Freedom Movement) के अग्रणी नेता जेपी (JP) यानी लोकनायक जयप्रकाश नारायण के क्रांतिकारी जीवन का सबसे रोमांचक सिरा झारखंड (Jharkhand) के हजारीबाग स्थित ऐतिहासिक जेल से जुड़ता है. उस वक्त झारखंड राज्य अस्तित्व में नहीं था और यह जेल बिहार (Bihar) राज्य में आती थी.

इस जेल को अब लोकनायक जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारागार के रूप में जाता है. वह 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) का दौर था. उसी दौरान जयप्रकाश नारायण और उनके पांच क्रांतिकारी साथी झारखंड के हजारीबाग स्थित ऐतिहासिक जेल की ऊंची दीवार लांघकर भाग निकले थे. कहा जाता है कि अंग्रेजों ने जेपी को गिरफ्तार कर पहले मुंबई की आर्थर जेल में रखा था, फिर दिल्ली की कैंप जेल में रखा और बाद में हजारीबाग जेल शिफ्ट कर दिया था.

जेल से भागने की योजना

जेपी को हजारीबाग सेंट्रल जेल (Hajaribagh Central Jail) में कई अन्य प्रमुख क्रांतिकारियों के साथ बंदी बनाकर रखा गया था. उन्होंने अपने साथियों जोगेंद्र शुक्ल, सूरज नारायण सिंह, शालिग्राम सिंह, गुलाब चंद गुप्ता और रामानंद मिश्रा के साथ मिलकर जेल से भागने की योजना बनाई. लेकिन, जेल के भीतर सभी विद्रोहियों पर सख्त पहरा लगा था.

ऐसे में जेपी और उनके साथियों ने इसके लिए 9 अक्टूबर 1942 का दिन चुना गया. इसी दिन दीपावली का त्योहार था. जेल के कई बंदियों को इस योजना का साझीदार बनाया गया. उन्होंने जेल में दीपावली मनाने के लिए सैकड़ों छोटी-छोटी बत्तियां जलाईं. पूरे जेल में उत्सव जैसा माहौल था. उस दिन हिंदू वार्डनों को दीपावली मनाने के लिए ड्यूटी से छुट्टी दे दी गई थी. बंदियों ने बाकी सिपाहियों को नाच-गान में उलझा रखा था.


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56 धोतियों की बनाई रस्सी

इधर, जेपी सहित उनके पांच साथी जेल की उत्तरी दीवार के पास पहुंच गए. दीवार के पास एक खाने की मेज रखी गई थी और जोगेंदर शुक्ला उस पर घुटनों के बल बैठे थे. गुलाब चंद गुप्ता उनकी पीठ पर खड़े हुए. उनके कंधों पर सूरज नारायण सिंह चढ़े, जिनकी कमर में कई धोतियों को मिलाकर बनाई गई रस्सी बंधी हुई थी. कहा जाता है कि ये रस्सी 56 धोतियों से बनाई गई थी.

सूरज नारायण सिंह दीवार के ऊपरी हिस्से पर पहुंच गए. इसके बाद जेपी सहित बाकी लोग एक-एक कर धोतियों वाली रस्सी के जरिये ऊपर चढ़े और उसी के सहारे जेल की दीवार लांघकर दूसरी तरफ उतर गए.

जेपी और उनके साथियों के जेल से भागने की घटना की जानकारी जेल प्रशासन और ब्रिटिश हुकूमत को पूरे 9 घंटे बाद हुई थी. उस समय तक वे बीहड़ जंगली रास्ते से होते हुए काफी दूर निकल चुके थे. दीवार से दूसरी तरफ कूदने के दौरान जेपी का पांव चोटिल हो गया था और लगातार खून निकल रहा था.

जेल से भागकर बनारस पहुंचे

उनके साथी उन्हें कंधों पर उठाकर मीलों चले. पहले उन्होंने पहाड़ी की तराई में जंगल से घिरे एक गांव में शरण ली. उसके बाद जंगल के रास्ते पैदल चलते हुए गया शहर और वहां से बनारस पहुंचे. इसके बाद उन्होंने भूमिगत रहते हुए समाजवादी साथियों के साथ मिलकर नेपाल पहुंचकर आजाद दस्ते का गठन किया और आंदोलन को गति दी.

नारायण ने अपने विद्रोही विचारों और पहलों के माध्यम से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत में गांधी की गिरफ्तारी के बाद राष्ट्रवादी आंदोलन में लंबे समय से चली आ रही कमी को भरने की कोशिश की. इसके तुरंत बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी के लिए उन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था.

नारायण का भागना भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक किंवदंती बन गया और इसने कई अन्य लोगों को भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया. उनका जन्म बिहार के सारण (छपरा) जिला के सिताब दियारा में 11 अक्टूबर 1902 को जन्म हुआ था. उन्होंने उच्च शिक्षा अमेरिका जाकर कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में ली और भारत लौटने पर आजादी की आंदोलन में कूद पड़े थे.

(समाचार एजेंसी आईएएनएस से इनपुट के साथ)

-भारत एक्सप्रेस

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