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अपनों ने ठुकराया तब यूपी के नगर विकास विभाग के सहयोग से चल रही संस्था ने अपनाया

UP News: भारत में इस वक्त विश्व के मुकाबले में सबसे अधिक युवा हैं तो एक बात तो एकदम साफ है कि एक वक्त बाद सबसे अधिक बुजुर्ग भी हो सकते हैं। तकनीकी की बदौलत पूरा विश्व बहुत तेजी से बदल रहा है लेकिन क्या उसके साथ ही रिश्ते और भावनाएँ भी बदल जानी चाहिए?

पूरे विश्व में बहुत तेजी से आश्रय गृह और वृद्धा आश्रम खुल रहे हैं जो सामाजिक खोखलेपन को बयां करने के लिए पर्याप्त हैं. भारत एक्सप्रेस की टीम जब आबादी के मामले में सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक आश्रय गृह में जाकर जिस सच्चाई से रुबरू हुई है उस सच्चाई को जानकर आपकी आँखें नम हो सकती हैं.

इंसान को जन्म से लेकर मरण तक अपनों की आवश्यकता

इंसान जब जन्म लेता है तो उसे अपने जन्म से लेकर लालन पालन तक अपनों की आवश्यकता होती है लेकिन वही लालन पालन करने वाले हमारे अपने जब बुजुर्ग हो जाते हैं तो उन्हें भी हमारी उतनी ही जरुरत होती है जितनी हमें कभी बचपन में रही होती है. लेकिन इन सबके इतर लोग तेजी से बदलती दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की चाह में ना तो अपनों को समय दे पा रहे हैं और ना ही उनका ठीक से देखभाल कर पा रहे हैं.

शहरों के साथ गॉव भी मॉडर्नाइजेशन के दौर से गुजर रहे हैं और संयुक्त परिवार की परिभाषा भी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है. पहले जहां परिवार में कोई एक कमाता था और अन्य लोग घर के कामों को करते थे वहीं अब हर व्यक्ति कमा रहा है लेकिन घर का काम करने के लिए भी कोई नहीं रह गया है.

अब बोझ लगने लगे हैं बुजुर्ग

पहले लोग दूसरों के घरों में रहकर, दूसरों के सहारे अपना पूरा जीवन गुजार दिया करते थे. लोग रिश्तेदारियों में रहकर पढ़ाई कर लिया करते थे लेकिन अब अपने घर के बुजुर्ग ही बोझ लगने लगे हैं. पहले उम्र में बड़े लोगों के प्रति सम्मान और आदर का भाव था, समाज और लोकलाज का भय था लेकिन एआई और टेस्ला के इस युग में न तो किसी के प्रति किसी के मन में कोई सम्मान का भाव रह गया है और ना ही लोकलाज का भय रह गया है.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मुख्यमंत्री आवास से चंद कदम दूर आश्रय गृह में रह रहे बुजुर्गों के चेहरों पर निराशा और बेबसी स्थाई निवास बना चुकी है, इनके अपने तो हैं लेकिन फिर भी कोई अपना नहीं. जिन अपनों को पालने में इन्होंने अपनी जवानी खपाई थी वह अब इन बुजुर्गों के बुढ़ापे में उनके साथ नहीं। बुढ़ापे की लाठी वाली पंक्तियाँ इस आधुनिक दौर में दम तोड़ने लगी हैं.

आश्रय गृह में रह रहे बुजुर्ग आश्रय गृह के दरवाजे पर हर वक्त टकटकी लगाये बैठे रहते हैं कि शायद अब कोई उनका अपना आएगा और उनको वापस फिर उसी चौखट पर ले जाएगा जहां से उसकी पहचान रही है. भारत एक्सप्रेस से बात करते हुए उस आश्रय गृह में रहने वालों ने कहा कि घर है लेकिन फिर भी हम बेघर हैं. अब हमारा घर यही आश्रय गृह है जहां हमें सारी सुविधाएं मिलती हैं.

Divyendu Rai

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