Delhi Flood History: दिल्ली में बाढ़ आई है. निचले इलाके में रहने वाले लोग बेघर हो गए हैं. सीएम केजरीवल ने इस स्थिति के लिए भारी बारिश और हथिनीकुंड बैराज से अधिक मात्रा में छोड़े गए पानी को जिम्मेदार ठहराया है. पानी-पानी होने के बाद भी शहर में पीने के पानी की किल्लत है. आने वाले कुछ दिनों तक स्थिति ऐसा ही रहने का अनुमान है. लेकिन क्या राष्ट्रीय राजधानी में आई बाढ़ के लिए सिर्फ यमुना नदी को जिम्मेदार ठहराना सही है? बिल्कुल गलत, इसके अतिरिक्त अवरुद्ध नाले भी जिम्मेदार हैं जिसमें गाद जमी हुई है, जिसकी सफाई सालों से नहीं हुई है.
बता दें कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में धारा 144 लगा दी गई है. वहीं 16 हजार से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है. जगह-जगह राहत कैंप लगाए गए हैं. हालांकि दिल्ली में पहली बार बाढ़ नहीं आई है. इसका सालों पुराना इतिहास रहा है. जब देश पर बरतानिया हुकूमत का कब्जा था तब भी दिल्ली जलमग्न हुई थी. दिल्ली में बाढ़ प्रकृति की नहीं निश्चित रूप से अधिकारियों और उन लोगों की गैर-जिम्मेदारी है जो अमीर और गरीब के चक्कर में अंधे होकर मानव जीवन के प्रति असंवेदनशील हो गए हैं. आजादी के बाद दिल्ली में मुख्य रूप से चार बार बाढ़ आई है. इन भीषण बाढ़ में लाखों लोग प्रभावित हुए थे.
साल था 1977. साहिबी नदी से निकलने वाले पानी के कारण नजफगढ़ नाले में भारी बाढ़ आ गई. ढांसा और करकरौला के बीच 6 जगहों पर नाले का बांध टूट गया. नाले का पानी नजफगढ़ ब्लॉक के कई गांवों में पहुंच गया. जानकारी के मुताबिक, मकान ढहने से छह लोगों की जान चली गयी थी. नाव दुर्घटना में 14 लोगों की मौत हो गई थी. वहीं फसल क्षति का अनुमान एक करोड़ रुपये था.
साल 1978 में यमुना नदी में विनाशकारी बाढ़ आई. यमुना का पानी गांव तक पहुंच गया. 43 वर्ग किलोमीटर कृषि भूमि 2 मीटर पानी में डूब गई, जिससे खरीफ की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई थी. इसके अलावा, उत्तरी दिल्ली की मॉडल टाउन, मुखर्जी नगर, निरंकारी कॉलोनी में 3 से 4 मीटर तक पानी भर गया. हजारों लोग बेघर हुए. कई लोगों की मौत भी हुई.
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एक बार फिर 10 साल बाद 1988 में दिल्ली में फिर बाढ़ आई. ऐसा लगा कि यमुना दिल्ली को अपने में समा लेना चाहती हैं. राजधानी दिल्ली के तमाम जगहों पर पानी ही पानी दिखाई दे रही थी. मुखर्जी नगर, गीता कॉलोनी, शास्त्री पार्क, यमुना बाजार और लाल किला क्षेत्र जैसे कई गांवों और इलाकों में बाढ़ का पानी घुस गया. इस विनाशकारी बाढ़ में करीब 8 हजार परिवार प्रभावित हुए थे.
साल 1995 में यमुना नदी में एक बार फिर से बाढ़ आई. क्रॉस स्टेट एजेंसियों के बीच संवाद की कमी के कारण ओखला बैराज से धीमी गति से पानी छोड़ने से समस्या और बढ़ गई है. सौभाग्य से उस दौरान बारिश नहीं हो रही थी. पानी को तटबंधों के भीतर ही रोका जा सका. बहरहाल, नदी-तल के भीतर स्थित गांवों और बस्तियों में पानी ने इस कदर तबाही मचाई कि करीब 15 हजार परिवार बेघर हो गए. लोग लगभग दो महीने बाद अपने घर वापस पहुंच पाए थे.
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