हिंदी सिनेमा (Hindi Cinema) के दिग्गज कलाकार अनुपम खेर (Anupam Kher) का आज 7 मार्च को जन्मदिन है. फिल्मी दुनिया में उनकी शुरुआत काफी दिलचस्प रही है. उनके लिए यहां कदम रखना बहुत आसान नहीं रहा था. ऐसी खबरें हैं कि बॉम्बे (अब मुंबई) में एक अभिनेता के रूप में अपने संघर्ष के दिनों में वह तकरीबन एक महीने तक रेलवे प्लेटफॉर्म पर सोए थे.
हालांकि शुरुआती फिल्मों में ही सफलता मिलने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज चार दशक से अधिक के करिअर में उन्होंने तमाम ऐसी फिल्मों में काम किया है, जो सिनेमा के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं.
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता अनुपम खेर ने साल 1982 में ‘आगमन’ नाम की फिल्म से उन्होंने हिंदी सिनेमा में कदम रखा था. इसका निर्देशन मुजफ्फर अली ने किया था. यह गन्ना बागान मालिकों द्वारा किए जा रहे शोषण के बारे में थी, लेकिन फिल्म कब आई और कब चली गई, पता भी नहीं चला. इसीलिए अनुपम को किसी ने उस वक्त नोटिस भी नहीं किया.
दो साल बाद 1984 में आई फिल्म ‘सारांश’ के जरिये उन्होंने पहचान मिली थी, जो उनकी दूसरी ही फिल्म थी, लेकिन इसने उनके करिअर के ग्राफ को बहुत ही ऊंचाई पर पहुंचा दिया था. अनुपम को जब यह फिल्म मिली थी, तब वह सिर्फ 28 साल के थे, लेकिन इस फिल्म में उन्होंने 60 साल के बूढ़े पिता की भूमिका निभाई थी.
यह मुंबई में रहने वाले एक बुजुर्ग महाराष्ट्रीयन जोड़े के बारे में थी, जो अपने इकलौते बेटे को खोने का गम झेल रहे होते हैं. उनके बेटे को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में डकैती की एक घटना के दौरान मार दिया जाता है. यह घटना पिता बने अनुपम के हौसलों को बुरी तरह से तोड़ देती है.
फिल्म ‘सारांश’ को बॉक्स ऑफिस पर मध्यम सफलता मिली थी, हालांकि खेर के अभिनय ने उन्हें व्यापक प्रशंसा दिलाई. बुजुर्ग पिता के किरदार के लिए उन्होंने कई पुरस्कार जीते, जिसमें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी शामिल था.
इस फिल्म के जरिये मिली तारीफ के बाद अनुपम खेर ने एक हफ्ते में ही 57 फिल्में साइन की थीं.
एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बात की पुष्टि भी की थी. उन्होंने कहा था, ‘सारांश के बाद मैंने एक हफ्ते के भीतर 57 फिल्में साइन की थीं. लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं अपने करिअर के उस पड़ाव पर एक बुजुर्ग व्यक्ति की भूमिका निभाने के लिए क्यों सहमत हुआ, लेकिन मैं इसे दोबारा करूंगा. उस फिल्म ने मुझे एक अभिनेता के रूप में स्थापित किया.’
खेर ने कहा था कि उन्होंने कम उम्र में ही अपने बाल खो दिए थे और इसलिए उन्होंने 28 की उम्र में 65 वर्षीय व्यक्ति का रोल कर लिया था.
फिल्म ‘सारांश’ साइन करने से पहले ही अनुपम खेर के करिअर ने एक भयानक मोड़ ले लिया था, यह ऐसा मोड़ था कि वह अभिनय के अलावा हमेशा के लिए मुंबई छोड़ने की कगार पर पहुंच गए थे. हुआ यूं कि फिल्म को साइन करने के बाद उनका इसके निर्देशक महेश भट्ट के साथ झगड़ा हो गया था.
बात कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई थी. यहां तक कि उन्होंने भट्ट को श्राप भी दे दिया था. हालांकि यही उनके लिए प्लस पॉइंट साबित हो गया है. झगड़े के बाद महेश उनके जुनून से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें इसके लिए दोबारा कास्ट करने का फैसला कर लिया.
अनुपम ने उन दिनों को याद करते हुए कहा था कि उनके पास एक दुखी व्यक्ति की भूमिका निभाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर कोई अनुभव नहीं था, हालांकि उस स्तर पर वह अस्वीकृति और अपमान से परिचित हो गए थे.
उन्होंने बताया था, ‘महेश उस समय एक यात्रा से गुजर रहे थे. वह अर्थ (फिल्म) बना चुके थे और आगे इसे (सारांश) बनाना चाहते थे. और क्योंकि मुझे शूटिंग से 10 दिन पहले फिल्म से बाहर निकालकर मेरी जगह संजीव कुमार को ले लिया गया, इसलिए मैंने प्रतिशोध की भावना से यह काम (श्राप देना) किया था.’
वे विस्तार से कहते हैं, ‘मैं छह महीने से उस बूढ़े व्यक्ति की भूमिका निभाने के लिए प्रैक्टिस और तैयारी कर रहा था. धोती-कुर्ता पहनकर निकलता था, बूढ़ों को देखता था, छड़ी का इस्तेमाल करता था. हम 1 जनवरी को शूटिंग शुरू करने वाले थे और 20 दिसंबर को मेरे दोस्त ने मुझे बताया कि उसने राजश्री प्रोडक्शंस में एक अफवाह सुनी है कि मैं अब वह फिल्म नहीं कर रहा हूं.’
इसके बाद उन्होंने महेश भट्ट को फोन किया, जिन्होंने उन्हें बताया कि स्टूडियो को कोई नया कलाकार नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें एक स्थापित अभिनेता चाहिए.
अनुपम ने कहा कि यह जानकार उन्हें ठगा हुआ महसूस हुआ और नाराजगी में उन्होंने हमेशा के लिए मुंबई छोड़ने के लिए अपना सामान पैक कर लिया, लेकिन जाने से पहले उन्होंने महेश भट्ट से आखिरी बार मिलने का फैसला किया.
महेश के घर पहुंचने के बाद अनुपम ने उनके कमरे की खिड़की से वह गाड़ी दिखाई, जिसमें उन्होंने अपना सामान पैक कर रखा हुआ था. इस दौरान गुस्से में आकर उन्होंने महेश को धोखबाज तक कह दिया था और यह भी कह दिया था, ‘एक ब्राह्मण व्यक्ति होने के नाते मैं आपको श्राप दे रहा हूं.’
बहरहाल ताजा अपडेट ये है कि आज 7 मार्च को अपने 69वें जन्मदिन के अवसर पर अनुपम ने एक फिल्म बनाने की घोषणा की है, जिसका नाम ‘तन्वी: द ग्रेट’ है.
अनुपम इस फिल्म के साथ 22 साल बाद निर्देशन की दुनिया में कदम रखने जा रहे हैं. सोशल साइट इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट में उन्होंने इस बात की जानकारी दी है. इस वीडियो में वह अपनी मां के साथ नजर आ रहे हैं और उन्हें फिल्म की स्क्रिप्ट दिखाते हुए उनका आशीर्वाद मांग रहे हैं.
इस पोस्ट के साथ उन्होंने लिखा, ‘आज अपने जन्मदिन पर मैं गर्व से उस फिल्म के नाम की घोषणा कर रहा हूं जिसे मैंने निर्देशित करने का फैसला किया है. कुछ कहानियां अपना रास्ता खोज लेती हैं और आपको इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए मजबूर कर देती हैं!
उन्होंने आगे लिखा, ‘इसकी शुरुआत करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि मैं अपनी मां के मंदिर में जाकर उनका आशीर्वाद लूं और मेरे पिता की तस्वीर भी मुझे आशीर्वाद दे. पिछले तीन वर्षों से जुनून, साहस, मासूमियत और जॉय की इस संगीतमय कहानी पर काम कर रहा हूं.’
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता अनुपम ने बताया कि वह कल (8 मार्च) महाशिवरात्रि पर फिल्म की शूटिंग शुरू करेंगे. उन्होंने खुद को प्यार, शुभकामनाएं और आशीर्वाद देने की अपील की है. ‘तन्वी: द ग्रेट’ फिल्म का निर्माण अनुपम खेर स्टूडियो के बैनर तले किया जाएगा. इसके अलावा वह ‘विजय 69’ नाम की भी फिल्म कर रहे हैं.
अनुपम ने अपने 4 दशक से अधिक के करिअर में कई भाषाओं में तकरीबन 500 से अधिक फिल्मों में अभिनय का जलवा बिखेरा है. बतौर निर्देशक अनुपम की यह दूसरी फिल्म हैं. 22 साल पहले उन्होंने ‘ओम जय जगदीश’ फिल्म को निर्देशन किया था, जो साल 2002 में रिलीज हुई थी.
इस फिल्म में वहीदा रहमान, अनिल कपूर, फरदीन खान, अभिषेक बच्चन, महिमा चौधरी, उर्मिला मातोंडकर और तारा शर्मा आदि प्रमुख भूमिका में थे. यह तीन भाइयों की कहानी थी. हालांकि बॉक्स ऑफिस पर यह बुरी तरह फ्लॉप साबित हुई थी.
अनुपम खेर का जन्म हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में 7 मार्च 1955 को एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था. उनके पिता पुष्कर नाथ खेर वन विभाग में क्लर्क थे और उनकी मां दुलारी खेर एक गृहिणी थीं.
शिमला के ही डीएवी स्कूल में उनकी शिक्षा हुई. यहीं पर उन्होंने अर्थशास्त्र का अध्ययन किया. इसके बाद चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय में भारतीय थियेटर का अध्ययन करने के लिए परंपरागत पढ़ाई छोड़ दी. 1978 में उन्होंने नई दिल्ली स्थित नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) से स्नातक की उपाधि हासिल की थी.
-भारत एक्सप्रेस
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