भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी. आर. गवई.
52nd Chief Justice of India: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई (बी. आर. गवई) को अपना उत्तराधिकारी नामित किया है. जस्टिस गवई 14 मई 2025 को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हें पद की शपथ दिलाएंगी. वर्तमान CJI संजीव खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर दिए प्रोफाइल के मुताबिक- जस्टिस गवई 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में प्रमोट हुए थे. उनके रिटायरमेंट की तारीख 23 नवंबर 2025 है. कानूनविदों के अनुसार, चूंकि CJI संजीव खन्ना के बाद वरिष्ठता सूची में जस्टिस गवई का नाम आता है. इसलिए जस्टिस खन्ना ने उनका नाम आगे बढ़ाया.
जस्टिस बी. आर. गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ. उन्होंने 16 मार्च 1985 को वकालत शुरू की थी. वे 12 नवंबर 2005 को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश नियुक्त हुए और सुप्रीम कोर्ट में कई संवैधानिक पीठों का हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं.
जस्टिस बी. आर. गवई उन पांच न्यायाधीशों की पीठ में शामिल थे, जिसने सर्वसम्मति से केंद्र सरकार के 2019 के अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को बरकरार रखा था. यह निर्णय जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को समाप्त करने से जुड़ा था.
वह उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने राजनीतिक फंडिंग के लिए इस्तेमाल की जा रही चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया. इसके अलावा, 2016 की नोटबंदी को लेकर केंद्र सरकार के फैसले को भी उन्होंने 4:1 बहुमत वाले निर्णय में वैध ठहराया.
एक और महत्वपूर्ण फैसले में, जस्टिस गवई सात सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने 6:1 के बहुमत से यह निर्णय दिया कि राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों के भीतर अति-पिछड़ों के लिए उप-वर्गीकरण कर सकती हैं.
जस्टिस बी. आर. गवई ने पिछले वर्ष 19 अक्टूबर को अहमदाबाद, गुजरात में न्यायिक अधिकारियों के वार्षिक सम्मेलन में महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था कि अगर जनता का न्यायपालिका से भरोसा उठ गया, तो वे भीड़ के न्याय और भ्रष्ट तरीकों की ओर रुख कर सकते हैं, जिससे कानून-व्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा.
जस्टिस गवई ने जोर देकर कहा था कि एक जज का पद पर रहते हुए किसी राजनेता या नौकरशाह की सार्वजनिक प्रशंसा करना, भले ही वह शिष्टाचार के दायरे में न हो, न्यायपालिका की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगा सकता है. ऐसे व्यवहार से लोगों का भरोसा पूरी न्याय व्यवस्था से डगमगा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई जज चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा देता है, तो यह कदम भी जनता की नजर में न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता की धारणा को प्रभावित कर सकता है.
जस्टिस गवई के अनुसार, न्यायिक नैतिकता और व्यक्तिगत ईमानदारी ही न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता के दो प्रमुख आधार स्तंभ हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर लोगों को अदालतों से न्याय नहीं मिला, या उनका विश्वास डगमगाया, तो वे वैकल्पिक और अवैध रास्तों-जैसे भीड़ का न्याय या भ्रष्टाचार की ओर मुड़ सकते हैं, जो समाज में अराजकता फैला सकता है.
उनकी इस चेतावनी को न केवल न्यायिक प्रणाली के लिए एक मार्गदर्शन के रूप में देखा गया, बल्कि यह एक गंभीर सामाजिक चेतावनी भी है कि न्यायपालिका में विश्वास बनाए रखना कितना आवश्यक है.
जस्टिस बी. आर. गवई का अब तक का कार्यकाल न्यायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है, और उनके CJI बनने से देश की न्यायपालिका को नई दिशा मिलेगी.
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