बीपीओ में काम करने वाली 22 वर्षीय महिला के बलात्कार और हत्या के दो दोषियों को फांसी की सजा को उम्रकैद करने के मुंबई हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है. मुंबई हाई कोर्ट ने फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था. जिसके खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने अपील दायर की थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है.
जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने सुनाया यह फैसला. मुंबई हाई कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि अगर दया याचिकाओं और सजा पर अमल से अत्यावश्यक तरीके से निपटा जाता तो देरी टाली जा सकती थी. कोर्ट ने कहा था कि हम पाते हैं कि दया याचिकाओं को निपटाने में राज्य और केंद्र सरकार द्वारा अनुचित अस्पष्ट देरी हुई है. कोर्ट ने कहा था कि सरकार या राज्य के किसी अंग द्वारा देरी दोषियों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ होगा.
साल 2007 में विप्रो कंपनी के बीपीओ में काम करने वाली पीड़िता की पुरुषोत्तम बोराटे और प्रदीप कोकाटे नाम के शख्स ने रेप के बाद हत्या कर दी थी. वारदात के कुछ दिन बाद ही दोनों को गिरफ्तार कर लिया था. दोनों को पुणे सेशन कोर्ट ने मार्च 2012 में फांसी की सजा सुनाई थी. जिसके बाद मामला हाई कोर्ट पहुचा और हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था. जिसके खिलाफ दोनों दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. कोर्ट ने दोनों की याचिका को खारिज करते हुए 2015 में फांसी की सजा को बरकरार रखा था. जिसके बाद दोषियों ने फिर बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दया याचिका में देरी को आधार बनाकर राहत की मांग की, जिस पर सुनवाई के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था, जिसके खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.
-भारत एक्सप्रेस
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