लाइफस्टाइल

नॉर्मल डिलीवरी की जगह लेता सी-सेक्शन, आखिर क्यों महिलाओं की पसंद?

C-section Deliveries: मां बनना एक स्त्री के लिए नियामत से मिला वो वरदान है जो उसे संपूर्ण बनाता है. मां बनना एक स्त्री के लिए सौभाग्य की बात होती है. ये उसके जीवन का सबसे प्यारा और सुकून भरा लम्हा होता है. नौ महीने तक बच्चे को अपने कोख में रखकर वो ना सिर्फ उसे महसूस करती है,  बल्कि अपने अंदर उसकी हर छोटी- बड़ी हरकत और उसके पनपने से लेकर शिशु बनने तक के बदलाव की भी साक्षी बनती है.

क्रिटिकल होने लगी डिलीवरी

जब एक महिला प्रेग्नेंट होती है तो पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ जाती है. बच्चा अभी आया नहीं कि उसके नाम से लेकर फ्यूचर तक की प्लेनिंग होने लगती है. सब मां और बच्चे की सकुशलता के लिए छोटी से छोटी बातों का इतना ख्याल रखते हैं कि अचानक से फीमेल खुद को भी स्पेशल समझने लगती है. ये खुशी उस वक्त थोड़ा परेशान होने लगती है जब महिला की डिलीवरी की बारी आती है. दरअसल आजकल महिलाओं की डिलीवरी पहले की अपेक्षा क्रिटिकल होने लगी है. ज्यादातर महिलाएं सी-सेक्शन का सहारा लेना पसंद करने लगी हैं. सिजेरियन सेक्शन में गर्भवती महिलाओं के पेट के निचले हिस्से और गर्भाशय में चीरा लगाकर बच्चे को जन्म दिलाया जाता है. इसके अचानक प्रचलन में आने के भी कई कारण हैं.

खत्म होता पेशेन्स

अब लोगों में पेशेन्स नहीं है. लोग जल्दी-जल्दी सब करना चाहते हैं. हालात ये कि अब कई बार कपल खुद सिजेरियन डिलीवरी करने के लिए डॉक्टर से कहते हैं. वहीं अक्सर ऐसा भी होता है कि गर्भवती महिलाएं डिलीवरी पेन को सहन नहीं कर पाती. ऐसे में परिजन डॉक्टर से सी-सेक्शन अपनाने की गुहार लगाते हैं. नतीजन डॉक्टर को उनकी बात माननी पड़ती है.

स्पेशल वक्त पर डिलीवरी

बदलते वक्त के साथ इंसान की सोच और क्रिएटिविटी भी तेजी से चेंज हो रही है. अब बच्चों की प्लेनिंग भी कपल ऐसे करते हैं कि वो उनके किसी स्पेशल डे या स्पेशल वक्त पर जन्मे. इसके लिए भी बहुत से लोग नॉर्मल डिलीवरी का वेट करने की जगह सिजेरियन कराना पसंद करते हैं.

उम्र ने बढ़ाई समस्या

पुराने दौर में शादी एक खास उम्र के दौरान कर दी जाती थी. जिससे शादीशुदा जोड़े के पास बच्चों के बारे में प्लेनिंग करने का काफी वक्त होता था. आज के दौर में शादी की कोई खास उम्र नहीं.  30-35 या इससे भी ज्यादा उम्र में लोग शादी के बंधन में बंधते हैं. जिससे महिलाओं को बच्चे कंसीव करने से लेकर डिलीवरी तक में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. अगर कभी बात बिगड़ने लगे तो सहारा ज्यादातर सिर्फ सी-सेक्शन का ही बचता है.

जीरो एक्टिवनेस

पहले जहां गर्भवती महिलाएं एक्टिव रहती थी. वहीं अब देखने में आता है कि उनकी एक्टिवनेस पहले की तुलना में कम हो गई है. जिसका सीधा असर उनकी डिलीवरी पर पड़ता है. कामकाजी महिलाओं का तो ज्यादातर समय लैपटॉप पर काम करते हुए बैठकर ही बितता है.

खानपान ने बिगाड़ी आदत

सिजेरियन डिलीवरी बढ़ने का खानपान भी एक महत्वपूर्ण कराण है. दरअसल प्रेगनेंट महिलाएं हेल्थी खाना खाने की जगह जंक फूड और चटपटे और तेलीय खाने का ज्यादा सेवन करने लगी हैं. पहले जहां घर के बढ़े- बूढ़े उन्हें सलाह देते रहते थे. वहीं अब एकल परिवार होने से सब डॉक्टर की सलाह पर डिपेंड रहने लगे हैं.

मोटापा और एक्सरसाइज

योगा और एक्सरसाइज करना जितना एक आम इंसान के लिए जरूरी है. उतना ही प्रेगनेंट महिलाओं के लिए भी इम्पोटेंट है. मोटी महिलाओं के गर्भवती होने पर ये और भी जरूरी हो जाता है. इनसे दूरी बनाना सी-सेक्शन के करीब ले जाता है.

ये भी पढ़ें: बालों को समय से पहले सफेद होने से कैसे रोकें: जानें घरेलू नुस्खे और उपाय

सी-सेक्शन को रिस्क

जो मां और बच्चे दोनों को प्रभावित करते हैं. जैसे सिजेरियन के वक्त बच्चे को पीलिया होने का खतरा ज्यादा बढ़ सकता है. वहीं मां और बच्चे को एलर्जी और इंफेक्शन होने का भी डर रहता है. बात खर्च की करें तो जहां नॉर्मल डिलीवरी सस्ते में हो जाती है. वहीं सिजेरियन बेहद खर्चीली पद्धति है. वहीं सिजेरियन डिलीवरी के बाद महिलाओं को रिकवर करने में वक्त लगता है. साथ ही मां को फीडिंग कराने में भी समस्या आ सकती है.

-भारत एक्सप्रेस

रेनू शिरीष शर्मा

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