डल झील के किनारे पर बैठकर यदि फिल्मों की बात न हो, तो कश्मीर में आने का मकसद पूरा नहीं होता. कश्मीर की कली से लेकर, शिकारा, मिशन कश्मीर, जब तक है जान और न जाने कितनी हिंदी सिनेमा, दक्षिण, बंगाली फिल्में कश्मीर में फिल्माई गईं. लेकिन कश्मीर को हर बार फिल्मों में बदलते हुए देखा गया.
चिनार पुस्तक महोत्सव में ‘फिल्मों में कश्मीर’ विषय पर बात करते हुए फिल्म निदेशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा कि मेरा कश्मीर से बहुत गहरा नाता है. फैजल रशीद और दानिश भट्ट के साथ मैंने काम किया है. आधुनिकता के चलते और दर्शकों की दिलचस्पी को देखते हुए फिल्मों में कश्मीर की सूरत बदली है.
”दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर और लेखक अनंत विजय भी चर्चा में शामिल थे. उन्होंने कश्मीर और फिल्म पर बात करते हुए कहा, ”कश्मीर हमारी फिल्मों के दिल में तब से बसा है, जब से फिल्में बनना शुरू हुई हैं. जब भी हम कुदरती खूबसूरती की बात करते हैं, तो सिर्फ और सिर्फ एक ही नाम याद आता है और वो है कश्मीर. लेकिन बदकिस्मती यह है कि हमने कश्मीर को सिर्फ एक बेकड्रॉप के रूप में इस्तेमाल किया. कभी भी कश्मीर के साहित्य, कला, संस्कृति, संगीत और खासकर युवाओं को लेकर कभी फिल्माया नहीं गया है.”
चिनार टॉक्स में आयोजित इस चर्चा में कश्मीर सरकार की नई फिल्म नीति पर भी बात हुई. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने युवाओं को फिल्मों में इस्तेमाल होने वाली फेस रिप्लेसमेंट और डिएजिंग जैसी आधुनिक तकनीकों के बारे में भी बताया.
राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद (एनसीपीयूएल) की तरफ ‘अफसाना ख्वानी’ कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया, जिसमें भारत और पाकिस्तान में जाने-माने साहित्यकार नूर शाह ने शिरकत की. युवाओं ने उनकी उर्दू अलफाज की तीन कहानियों का वाचन किया. उसके बाद मशहूर फिक्शन लेखक वहशी सैयद और नासिर जमीर ने जम्मू और कश्मीर की देहात संस्कृति को भारत की आजादी से जोड़ते हुए कहानियाँ सुनाईं.
बाल मनोविज्ञान को समझकर उनके लिए किस तरह की रचनात्मक गतिविधियाँ आयोजित की जाएँ, इन सबकी कोशिश भी चिनार पुस्तक महोत्सव में की जा रही है. मंगलवार को बाल साहित्यकार ऊषा छाबड़ा ने बच्चों को अभिनय करते एक कछुए कहानी सुनाई, ताकि कल्पना में वे कहानी के पात्रों और उसके भावों की अनुभूति कर सकें.
वेलनेस और कम्यूनिकेशन एक्सपर्ट भास्कर इंद्रकांति ने बच्चों को प्रश्न पूछने की कला के बारे में बताया. यह कार्यशाला बच्चों में आत्मविश्वास लाने और अपने आपको अभिव्यक्त करने के लिए रखी गई थी. एक सत्र में भोपाल से आई मनोवैज्ञानिक द्युतिमा शर्मा ने युवाओं को बताया कि किस तरह दूसरों की भावनाओं को महसूस किया जा सकता है और वे किस तरह सेल्फकेयर स्किल को अपना सकते हैं.
उन्होंने युवाओं को सहानुभूति और समानुभूति में अंतर समझाते हुए उन्हें क्रोध, चिंता आदि विभिन्न परिस्थितियों में अपने आपको संतुलित बनाए रखने के तरीके समझाए. उन्होंने बताया कि समानुभूति यानी एम्पैथी को जीवन में अपनाने से युवा एक—दूसरे के जज्बातों को समझ सकते हैंं.
चिनार पुस्तक महोत्सव में लगी फोटो प्रदर्शनियां बच्चों और युवाओं को खूब लुभा रही हैं. भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) ने यहाँ जम्मू, कश्मीर और लद्दाख की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती फोटो प्रदर्शनी लगाई है. करीब 70 पैनलों पर लगी इस फोटो प्रदर्शनी में जम्मू और कश्मीर के इतिहास, विरासत, सभ्यता, संस्कृति, परंपरा, कला, साहित्य, ज्ञान को बड़े ही अनोखे ढंग से दिखाया गया है.
आईसीएचआर के अध्यक्ष प्रो. रघुवेंद्र तंवर के अनुसार, ”चिनार पुस्तक महोत्सव कश्मीर का पहला सबसे बड़ा, राष्ट्रीय साहित्यिक उत्सव है. नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले की तरह हर वर्ष इसका आकार बढ़ाया जाएगा, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया के साथ—साथ हम सबकी यह जिम्मेदारी है.”
प्रो. तंवर ने जम्मू, कश्मीर और लद्दाख की फोटो प्रदर्शनी पर बात करते हुए कहा कि बच्चे और युवा यहाँ के इतिहास को गहराई से जानने में रुचि ले रहे हैं. यहाँ उनके लिए तीन हजार वर्ष पुरानी सभ्यता और संस्कृति को भी दर्शाया गया है.
जम्मू कश्मीर और लद्दाख की सांस्कृतिक निरंतरता पर लगाई गई इस फोटो प्रदर्शनी में भारत और विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर के विकास की यात्रा को क्रमबद्ध किया गया है. पुस्तक मेले में पाठकों के लिए एक अनोखा अनुभव है. फाटो प्रदर्शनी में महाभारत में भारत की अवधारणा, प्राचीन ग्रंथों में कश्मीर, यहां का आरंभिक जीवन, सिंधु-सरस्वती सभ्यता, जम्मू-कश्मीर में बौद्ध धर्म का आगमन, संस्कृत का मूल उद्गम कश्मीर, यहां की पांडुलिपियों, लद्दाख के स्तूप और मठों, हिंदू धर्म और उनके साक्ष्य, मंदिर वास्तुकला, प्राचीन मंदिर, विद्वानों, पंडितों, राजवंशीय और कलाकारों का कश्मीर प्रवास और यहां मुगल बादशाहों की राजशाही को सिलसिलेवार तरीके से दर्शाया गया है.
पाठक अंग्रेजी हुकूमत के दौरान जम्मू-कश्मीर और 1947-48 में हुए युद्ध की अनुभूति भी इस फोटो प्रदर्शनी से कर पा रहे हैं. यहां 1947—48 युद्ध के नायकों, जिन्हें बाद में परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र से सम्मानित किया गया, उन शूरवीरों की कहानी भी यहाँ पाठक उनकी फोटो के साथ लिखी जानकारी पढ़कर जान रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर को 1947 से 1953 के मध्य कई बार राजनैतिक उथल-पुथल का सामना करना पड़ा. किस तरह भारत के राजनीतिक दलों का इस क्षेत्र में हस्तक्षेप रहा, इन सब जानकारियों को एक स्थान पर पाठकों के सामने सचित्र प्रदर्शित करने का प्रयास आईसीएचआर ने यहां किया है.
चिनार पुस्तक महोत्सव में बच्चों और युवाओं को राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय के बारे में भी बताया जा रहा है. यह अपनी तरह पहला ऐसा मोबाइल ऐप्लिकेशन है जिसमें अलग-अलग आयु वर्ग के बच्चों और युवाओं को पढ़ने के लिए नि:शुल्क ई-पुस्तकें पढ़ने के लिए मिलती हैं.
बच्चे और किशोर पंजीकरण की एक छोटी-सी प्रक्रिया अपनाकर देशभर के प्रकाशकों की पुस्तकें पढ़ने का आनंद एक ही मंच पर उठा सकते हैं. इस ऐप्लिकेशन की विशेषता है कि इसमें 23 भाषाओं में पुस्तकें उपलब्ध हैं. इसमें फिक्शन, नॉन फिक्शन, विज्ञान एवं तकनीकी, भारत के इतिहास, संस्कृति सहित व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ और भी कई समसामयिक विषयों की गैर शैक्षणिक पुस्तकें पीडीएफ फॉमेट, ई-पब, ऑडियो बुक्स के रूप में हैं.
बच्चे और किशोर पाठक अपनी आयु के अनुसार, अपनी पसंद के विषय की पुस्तकें कहीं भी, कभी भी और बिना किसी पंजीकरण शुल्क के पढ़ सकते हैं. ऐप में पुस्तकों को चार आयु वर्गों में रखा गया है- 3 से 8 वर्ष, 8 से 11 वर्ष, 11 से 14 वर्ष और 14 से अधिक आयु के पाठकों के लिए पुस्तकें.
केवल पुस्तकें पढ़ना ही नहीं, उन पुस्तकों के बारे में लेखक से बातें करना, उनके अनुभव जानना, कहानी—वाचन और अन्य रचनात्मक क्रियाकलापों की लाइव स्ट्रीमिंग के अवसर भी इस ऐप पर पाठकों को दिए गए हैं.
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-भारत एक्सप्रेस
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