एक महिला बिना स्कूली शिक्षा के उत्कृष्ट साहित्यकार बन जाती हैं. उनकी प्रतिभा देश-विदेश के दायरे से इतर हर तरफ फैल जाती है. यहां तक कि उनकी 113वीं जयंती पर साल 2022 में दुनिया के सबसे बड़े इंटरनेट सर्च इंजन गूगल (Google) ने उनके लिए एक डूडल समर्पित किया था. आप हैरान न हों, ये कारनामा करने वाली या यूं कहें, ऐसी शख्सियत सिर्फ बालमणि अम्मा (Balamani Amma) ही हो सकती हैं.
बालमणि अम्मा को उनके चाहने वाले प्यार से ‘दादी’ कहते हैं, जो उनके लिए पूरी तरह उचित है. 29 सितंबर 2004 को दुनिया को अलविदा कहने वाली इस साहित्यकार ने अपने पीछे लेखन की समृद्ध विरासत को छोड़ा, जो उनके चाहने वालों के बीच हमेशा लोकप्रिय रहेंगी. नालापत बालमणि अम्मा को ‘मलयालम साहित्य की दादी’ भी कहा जाता है.
बालमणि अम्मा हिंदी की प्रसिद्ध साहित्यकार महादेवी वर्मा की समकालीन थीं. 20वीं सदी की एक प्रसिद्ध साहित्यकार के रूप में उन्होंने 500 से ज्यादा कविताएं लिखीं. उनका जन्म एक रुढ़िवादी परिवार में हुआ था, जहां लड़कियों को स्कूल भेजना अनुचित माना जाता था, लेकिन उनके लिए घर में पढ़ाई की व्यवस्था की गई.
उन्होंने घर में पढ़ाई करते हुए मलयालम और संस्कृत भाषा सीखी. उनके मामा एन. नारायण मेनन एक कवि और दार्शनिक भी थे. उनसे ही उन्होंने साहित्य रचने की प्रेरणा ली. उनके घर में कवि और विद्वान आते थे और साहित्यिक चर्चाओं का दौर चलता था. इस माहौल ने उनकी सोच और चिंतन को काफी हद तक प्रभावित किया.
बालमणि अम्मा की शादी 19 साल की उम्र में हुई और वह पति के साथ कोलकाता (तब कलकत्ता) आ गईं. यहां रहते हुए उनके विचार काफी प्रभावित हुए और उनके अंदर का साहित्यकार छटपटाने लगा. पति उनकी काबिलियत को भांप चुके थे और उन्हें लिखने के लिए प्रोत्साहित किया. इसके बाद उन्होंने अपनी पहली रचना लिखी. उनके पति व्यापक रूप से प्रसारित मलयालम दैनिक ‘मातृभूमि’ के प्रबंध संपादक वीएम नायर (VM Nair) थे.
बालमणि अम्मा की पहली कविता ‘कोप्पुकाई’ वर्ष 1930 में प्रकाशित हुई थी, जब वह सिर्फ 21 वर्ष की थीं. उन्होंने कविताओं के 20 से अधिक संकलन प्रकाशित किए. साथ ही अनुवाद जैसे अन्य कार्य भी किए. उन्होंने मलयालम कवियों की कई पीढ़ियों को प्रेरित किया. उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में अम्मा (1934), मुथस्सी (1962) और मझुविंते कथा (1966) शामिल हैं.
बालमणि अम्मा को ‘कलकत्ते की काली कुटिया’ नाम की कविता से काफी लोकप्रियता मिली. उनकी कविता ‘मातृचुंबन’ ने भी साहित्य जगत में खूब लोकप्रियता बटोरी. उनके जीवन पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों और व्यक्तित्व का भी काफी प्रभाव पड़ा. यहां तक कि उन्होंने खादी के वस्त्र भी पहने थे. उनकी बेटी कमला दास (Kamala Das) एक प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं. दास की आत्मकथा, ‘My Story’ 1976 में प्रकाशित हुई थी.
इसी बीच बालमणि अम्मा ने ‘गौरैया’ शीर्षक से एक कविता लिखी, इसे काफी लोकप्रियता मिली. यहां तक कि इस कविता को केरल की पाठ्य-पुस्तकों में भी शामिल किया गया. इसके अलावा उन्होंने एक स्त्री के विभिन्न पक्षों को भी कविता के विषय के रूप में शामिल किया, इसमें गर्भधारण, प्रसव, और शिशु के लालन-पालन से जुड़े प्रसंग हैं.
बालमणि अम्मा ने आध्यात्मिकता में भी खुद को समर्पित किया, जिसने उनके लेखन कौशल को एक नई ऊंचाई मिली. उनकी चर्चित कृति ‘निवेद्यम’ साहित्य जगत में एक मील का पत्थर साबित हुई. यह उनकी 1959 से 1986 तक लिखी कविताओं के संग्रह है. जब कवि एनएन मेनन का निधन हुआ तो उन्होंने एक संग्रह ‘लोकांठरांगलील’ की रचना की. उनकी कविताएं दार्शनिक और मानवता से ओत-प्रोत हैं.
उन्हें 1987 में सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया था. इसके अलावा भी उन्हें साहित्य अकादमी और सरस्वती सम्मान जैसे सम्मानों से नवाजा गया. केरल के त्रिशूर से ताल्लुक रखने वाली बालमणि अम्मा का जन्म 19 जुलाई 1909 को हुआ था. वर्ष 2009 में सरकार ने ‘दादी बालमणि अम्मा’ की जयंती को जन्म शताब्दी के रूप में मनाया था.
(समाचार एजेंसी आईएएनएस से इनपुट के साथ)
-भारत एक्सप्रेस
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