प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विदेशी दौरे हमेशा से सुर्खियों में रहते आए हैं और इस लिहाज से जापान, पापुआ न्यू गिनी और ऑस्ट्रेलिया का उनका हालिया दौरा भी अपवाद नहीं रहा। लेकिन तीन देशों का ये दौरा पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में भारत की महत्वपूर्ण कूटनीतिक पैठ बनाने के साथ ही एक और अभूतपूर्व घटनाक्रम के लिए भी याद रखा जाएगा। वैसे तो इसे पिछले कुछ वर्षों से चले आ रहे एक सिलसिले का विस्तार भी कहा जा सकता है लेकिन इस दौरे पर उसकी जिस तरह अभिव्यक्ति हुई है, उसने भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस यात्रा के दौरान पीएम मोदी की आधिकारिक व्यस्तताओं में जो बात अलग थी, वो है उनके नेतृत्व में दुनिया में बनी भारत की नई साख को वैश्विक मंचों से मिली मुखर स्वीकृति। इसका पहला संकेत तब मिला जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हिरोशिमा में जी-7 की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक लोकप्रियता को सलाम करते हुए कहा कि अब उन्हें भी प्रधानमंत्री का ऑटोग्राफ ले लेना चाहिए। ऐसी खबरें भी हैं कि कुछ अमेरिकी सांसदों ने प्रधानमंत्री मोदी से अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करने का अनुरोध किया है। इसके बाद पापुआ न्यू गिनी में वहां के प्रधानमंत्री का प्रधानमंत्री मोदी के आशीर्वाद के लिए उनके पैरों में झुकना और फिर ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज का उन्हें बॉस कहकर संबोधित करना इस बात का संकेत है कि कैसे मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया में एक बहुत ही मजबूत शक्ति के रूप में उभर रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में दुनिया में भारत को लेकर बदल रहे नजरिये के कई आयाम हैं। 2014 के निर्णायक जनादेश के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने कई विकास देखे हैं जो देश की स्वतंत्र और मजबूत राष्ट्र की वर्तमान छवि को दर्शाते हैं। आज का भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के साथ ही प्रौद्योगिकी और प्रतिभा का अद्भुत संगम है। व्यापार, ऑटोमोबाइल निर्माण, मोबाइल निर्माण, स्टार्टअप आंदोलन और रक्षा निर्यात के एक बड़े केन्द्र के रूप में उभरने के साथ ही भारत इन सभी क्षेत्रों में दुनिया को अपना सामर्थ्य दिखा रहा है।
बाहरी दुनिया को अपनी उपलब्धियों से चकाचौंध कर रहे भारत के शेष विश्व से संबंध भी नई मजबूती से रोशन हो रहे हैं। मोदी राज में भारत अमेरिका या रूस पर आश्रित नहीं बल्कि एक ही समय में इन दोनों महाशक्तियों की जरूरत बन गया है। 15 महीने से रूस से चल रही लड़ाई को रोकने के लिए दुनिया की हर चौखट से खाली हाथ लौटा यूक्रेन भी आज भारत से ही उम्मीद जोड़ रहा है। जी-7 में यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की ने प्रधानमंत्री मोदी से शांति समझौता इसी विश्वास पर साझा किया कि भारत का समर्थन मिलने से दुनिया भर के देशों में इस प्रस्ताव की मान्यता बढ़ जाएगी। यूक्रेन-रूस युद्ध छिड़ने के बाद, जब दुनिया के नेता पक्ष लेने में व्यस्त थे, पीएम मोदी ने ही दोनों देशों के नेताओं से बात की और स्पष्ट रूप से कहा कि यह ‘युद्ध का युग’ नहीं है, जिसे सभी वैश्विक नेताओं ने व्यापक रूप से स्वीकार किया था। भारत इसी तरह इजरायल-फिलिस्तीन और ईरान-सऊदी अरब के साथ भी जुड़ता है क्योंकि आज की हमारी विदेश नीति का मार्गदर्शक सिद्धांत ‘इंडिया फर्स्ट’ है जहां बाकी दुनिया का हित साधने से पहले देश और उसके नागरिकों के हितों की रक्षा की जाती है। केवल भारत में रहने वाले भारतीय ही नहीं, बल्कि प्रवासी भारतीयों और उनके योगदान को भी पिछले एक दशक में यथोचित श्रेय और सम्मान मिला है। जब भी मैं अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, डेनमार्क, प्रशांत द्वीप समूह या दुबई में रहने वाले अपने परिचित भारतीयों से बात करता हूं तो वे मुझे अपने जीवन में आए बदलाव के साथ ही ये बताना नहीं भूलते कि कैसे अब वहां उन्हें सम्मान की दृष्टि से भी देखा जाने लगा है। सिडनी के स्टेडियम कुडोस बैंक एरिना में प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रम में 20,000 प्रवासी भारतीयों की मौजूदगी को एक तरह से भारत के बढ़ते सम्मान पर प्रवासी समुदाय के गौरवान्वित होने की प्रतिध्वनि भी कहा जा सकता है।
आज पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत को एक ऐसे देश के रूप में देखा जाता है जो केवल अपनों के लिए ही नहीं, बल्कि वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को सजीव करते हुए सभी की परवाह करता है। चाहे कोविड-19 महामारी के दौरान 100 से अधिक देशों में मेड-इन-इंडिया टीके भेजना हो या आपदा में फंसे लोगों की जान बचाना हो, दुनिया भारत को बार-बार, हर बार एक देखभाल करने वाले राष्ट्र के रूप में और प्रधानमंत्री मोदी को एक देखभाल करने वाले नेता के रूप में देखती है।
इस सबके बीच भारत की बढ़ती आर्थिक प्रमुखता खासी प्रभावशाली है। भारत धीरे-धीरे लेकिन मजबूती के साथ चीन को निवेश के वैश्विक केन्द्र की गद्दी से प्रतिस्थापित कर रहा है। मौजूदा सरकार की विभिन्न आर्थिक पहल की बदौलत, ‘मेक इन इंडिया’, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में सुधार और बुनियादी ढांचे में हुआ तेज विकास इस लक्ष्य की सिद्धि में महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है। कोरोना काल में जब दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं गोते लगा रही थीं तब भी अर्थव्यवस्था में सबसे तेज ग्रोथ करने वाले राष्ट्र का तमगा भारत के हिस्से ही आया।
एक महत्वपूर्ण आवाज के रूप में विश्व स्तर पर भारत की उपस्थिति इस तथ्य से भी रेखांकित होती है कि भारत एक ही समय में जी-20 और शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता संभाल रहा है। भारत ने आधिकारिक तौर पर 16 सितंबर को शंघाई सहयोग संगठन और 1 दिसंबर को जी-20 की रोटेशनल अध्यक्षता संभाली है। एक तरफ जी-20 विश्व व्यापार का 75 फीसद से अधिक और दुनिया की दो-तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, वहीं एससीओ वैश्विक जीडीपी का 30 फीसद और दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। दोनों मंचों पर अध्यक्षता भारत को वैश्विक विषयों पर चर्चाओं को अपनी पसंद की दिशा में ले जाने का आधिकार देती है। इस पैमाने पर यह रूस-यूक्रेन संघर्ष में शांति की मध्यस्थता का सबसे अच्छा अवसर भी प्रदान करती है जिसमें सफलता मिलने पर वैश्विक मंच पर भारत की साख और मजबूत हो सकती है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत का रास्ता भी साफ हो सकता है। वैसे भी बीते कुछ वर्षों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में हमारे दावे के लिए समर्थन बढ़ा ही है जो इस बात को रेखांकित करता है कि कैसे हमारी बढ़ती भूमिका के कारण दुनिया हमें एक प्रमुख सहयोगी के रूप में देखती है।
आजाद भारत के इतिहास में किसी भी समय की तुलना में भारत का कूटनीतिक और आर्थिक कद इस तेजी से पहले कभी नहीं बढ़ा। सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी ही बदलाव के एकमात्र उत्प्रेरक हैं? इस पर नजरिया भिन्न हो सकता है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में यह बात जरूर जाती है कि भारत के अमृत काल की अवधारणा को जिस तरह वह विश्व स्तर पर लेकर गए हैं, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। शायद इसी विचार में दुनिया में भारत के बढ़ते दबदबे का सार भी है।
-भारत एक्सप्रेस
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