टेस्ट, ट्रेस और ट्रीटमेंट – दो साल पहले देश के लिए जीवनरक्षक बने ये तीन शब्द एक बार फिर हमारे सुरक्षा कवच बनने जा रहे हैं। इसके साथ ही चेहरों से गायब हो चुके मास्क की भी अब वापसी हो रही है। देश में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा फिर मुख्यधारा की चर्चा में लौट आया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले एक सप्ताह में ही बूस्टर डोज लगवाने वालों की संख्या में 14 गुना का उछाल दर्ज हुआ है। तमाम कवायदें भले अलग-अलग तरह की हों, लेकिन इनके पीछे छिपी चिंता की वजह एक ही है – चीन में कोविड के बढ़ते मामलों के कारण दुनिया में मचा कोहराम।
दो साल पहले भी कोरोना वायरस ने चीन से ही अपनी वैश्विक यात्रा शुरू की थी। इस बार जीरो-कोविड पॉलिसी को खत्म करने के बाद से चीन के हालात तेजी से खराब हुए हैं। वहां ने दवा काम कर रही है, न दुआ। कई शहरों पर कोविड की ऐसी मार पड़ी है कि हर घर अस्पताल बन गया है और शवगृहों में लंबी वेटिंग है। आशंका है कि आने वाले दिनों में जब यहां नया पीक आएगा, तो मरने वालों का आंकड़ा लाखों में चला जाएगा। चीन में हाहाकार मचा रहा ओमिक्रॉन का नया वैरिएंट बीएफ.7 अपने पुराने किसी भी म्यूटेशन से घातक है और इससे पीड़ित एक मरीज 18 लोगों को संक्रमित कर रहा है।
केवल चीन ही नहीं, बीएफ.7 की दहशत जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका तक दिख रही है। ‘जापान टाइम्स’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जापान में 8वीं लहर आ चुकी है और ओमिक्रॉन वैरिएंट की वजह से बड़ी संख्या में हुई मौत के अलावा पिछले 8 महीने में 41 बच्चों ने भी अपनी जान गंवाई है। इनमें से ज्यादातर बच्चे एक से लेकर पांच साल की उम्र के थे। नए वैरिएंट का ये एक और कुरूप चेहरा है क्योंकि कोरोना वायरस के अब तक के म्यूटेशन से बच्चे कमोबेश सुरक्षित थे। नई लहर ने अमेरिका में भी संक्रमण की रफ्तार बढ़ा दी है। जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट बताती है कि महामारी की शुरुआत से लेकर अब तक अमेरिका में कोरोना संक्रमितों की संख्या 10 करोड़ के पार पहुंच चुकी है। इनमें से 70 फीसद से ज्यादा मामलों के लिए बीएफ.7 जैसे ओमिक्रॉन के नए-नए म्यूटेशन जिम्मेदार हैं।
दुनिया में दहशत फैला रहे कोरोना के इस नए वैरिएंट से लड़ने के लिए भारत में तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। अच्छी बात यह है कि पिछले अनुभव से सबक लेते हुए भारत इस बार समय रहते अलर्ट मोड में आ गया है। हालात से निपटने के लिए सरकार ने तीन बड़े फैसले लिए हैं – कोरोना के खिलाफ एक और सुरक्षा कवच के लिए नेजल वैक्सीन को मंजूरी, कोरोना से निपटने की क्षमता को जांचने के लिए 27 दिसंबर को अस्पतालों में मॉक ड्रिल और विदेशों से कोरोना की आमद रोकने के लिए एयरपोर्ट पर नए साल से लागू होने वाली नई एडवाइजरी। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों से आने वाले यात्रियों की एक निश्चित संख्या का रैंडम टेस्ट शुरू कर दिया गया है। इसके साथ ही राज्यों को भी टेस्ट बढ़ाने, हर सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग करवाने और कोविड के लिए जरूरी प्रोटोकॉल अपनाने के निर्देश दिए गए हैं। टेस्ट पर जोर देने का नतीजा ये निकला है कि देश में बीएफ.7 के चार मामले सामने आए हैं। ये चारों अब पूरी तरह ठीक होकर घर लौट गए हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ‘कोविड अभी खत्म नहीं हुआ है’ की सधी चेतावनी से देश को आगाह किया है। प्रधानमंत्री का ये बयान इस मायने में महत्वपूर्ण कहा जा सकता है कि देश में भले कोरोना को लेकर फिलहाल कोई आपात स्थिति नहीं हो, तैयारियों के मामले में भी हम पहले से कहीं बेहतर स्थिति में हों लेकिन जिस तरह थोड़ी-सी लापरवाही पुराने दौर को न्योता दे सकती है, उसी तरह थोड़ी-सी सावधानी देश को बड़े संकट से बचा भी सकती है। इस लिहाज से राज्यों को ऑक्सीजन सिलिंडर, पीएसए प्लांट, वेंटिलेटर समेत अस्पताल के स्टाफ और बुनियादी ढांचे का ऑडिट करने की प्रधानमंत्री की सलाह निश्चित ही कारगर साबित हो सकती है। भीड़-भाड़ वाली जगहों पर मास्क पहनकर हम-आप भी इस मुहिम को ताकत पहुंचा सकते हैं। ये समझदारी ही नहीं, देश के प्रति हमारी जिम्मेदारी भी है।
कोरोना के बढ़ते कदम से दुनिया एक और वजह से सहमी हुई है। कोई भी नई लहर जैसे-तैसे पटरी पर लौट रही वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक बार फिर गर्त में डाल सकती है। इस पूरे सप्ताह भारतीय बाजार इसी आशंका में डूबे दिखाई दिए। पिछले 7 दिनों में निवेशकों का करीब 19 लाख करोड़ रुपया डूब गया है। अकेले शुक्रवार यानी 23 दिसंबर को ही बाजार 1.7 फीसद तक गिरे जिससे निवेशकों को 8.26 लाख करोड़ रुपए का चूना लग गया।
नए संकट में चीन की हालत तो ‘इधर कुआं, उधर खाई’ वाली हो गई है। आर्थिक सुधार पर ध्यान दे या कोरोना नियंत्रण को वरीयता दे। जीरो कोविड पॉलिसी लागू रखकर वो आर्थिक मोर्चे पर खामियाजा भुगत चुका है, अब जब उसने जीरो कोविड पॉलिसी में छूट दी है, तो कोरोना कोहराम मचा रहा है। चीन के लिए हासिल ये है कि एक तरफ मौत का ग्राफ तेजी से ऊपर चढ़ रहा है, तो दूसरी तरफ आर्थिक विकास दर गिरकर पांच दशकों के न्यूनतम स्तर 2.8 से 3.2 प्रतिशत तक जाती दिख रही है। चीन में जब जीरो कोविड पॉलिसी को हटाने-बनाए रखने की बहस तेज थी, तब अपने एक पुराने लेख में मैंने इस स्थिति की ओर इशारा किया था।
लेकिन भारत की चिंता केवल इतनी भर नहीं है। देश में हम कोरोना पर लगाम लगाने में सफल हो भी गए, लेकिन चीन, जापान, अमेरिका, ताइवान जैसे देशों में हालत नहीं संभले तो हम भी उसके असर से नहीं बच पाएंगे। कोरोना पर काबू पाने के लिए अगर इन देशों ने कड़ी पाबंदियां फिर अमल में आईं, तो हमारे देश की सप्लाई चेन बाधित होगी। नतीजा ये होगा कि हमारे यहां महंगाई में और आग लगेगी क्योंकि फार्मा, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे कई क्षेत्रों में हम घरेलू मांग पूरी करने के लिए काफी हद तक इन देशों पर आश्रित हैं।
इस कड़वी सच्चाई के बीच कुछ कोरी गलत धारणाएं भी एक बार फिर जोर पकड़ रही हैं। मांसाहार और कोरोना का कनेक्शन फिर जोड़ा जा रहा है। पहले भी जब कोरोना वायरस की शुरुआत चीन से हुई थी, तब वुहान का वो मार्केट चर्चा में आया था जहां सभी तरह के मीट बेचे और खरीदे जाते थे। तबऐसे कई दावे सामने आए थे, जिनमें कहा गया था कि कोरोना वायरस फैलने की वजह चमगादड़ का मांस था। वै
बहरहाल इस समय इस धारणा को तोड़ने से ज्यादा महत्वपूर्ण कोरोना के मायाजाल को तोड़ना है। एक दिलचस्प खुलासा ये है कि जो बीएफ.7 वैरिएंट इस बार खौफ का पर्याय बनकर सामने आया है, वो भारत में सितंबर में ही आ गया था। इसने चार मरीजों को संक्रमित किया जो अब पूरी तरह स्वस्थ हैं। तब रोज औसतन 5 से 7 हजार लोग संक्रमित हो रहे थे। ये संख्या अब घटकर 100 से 200 के बीच रह गई है। इसका मतलब ये लगाया जा सकता है कि मौत या संक्रमण फैलाने के मामले में बीएफ.7 भारत में फिलहाल खतरे की वजह नहीं बन पाया है। इसकी एक वजह देश की 95 फीसद आबादी में पैदा हुई हर्ड इम्युनिटी हो सकती है, जो सख्त जीरो कोविड पॉलिसी के कारण घरों में कैद चीन के निवासियों में विकसित नहीं हो पाई। कोविड टीकों की दो खुराक ने भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया है। बावजूद इसके चूंकि वायरस म्यूटेट कर रहा है, इसलिए अभी सावधान रहना ही सबसे अच्छा समाधान दिखता है। क्रिसमस और नए साल का जश्न जरूर मनाएं लेकिन मास्क, सैनिटाइजर एवं सोशल डिस्टेंसिंग रखकर और .. जरा संभलकर।
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