ब्रिटिश काउंसिल और एलायंस फ्रैंकेइस की तर्ज पर 2004 में शुरू किया गया कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट्स प्रोग्राम विवादों में घिर गया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह कई ब्रिटिश नियमों और विनियमों का उल्लंघन करके ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में अवैध रूप से काम कर रहा है.
एक गैर-लाभकारी थिंक टैंक एशियन इंस्टीट्यूट फॉर चाइना और आईओआर स्टडीज के मुताबिक, AICIS में लिखते हुए मुरलीधर नायर कहा कि चीन का विदेश में कन्फ्यूशियस संस्थान स्थापित करने का प्राथमिक उद्देश्य चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के हितों को आगे बढ़ाना न कि चीनी संस्कृति और मंदारिन भाषा को बढ़ावा देना है.
हाल ही में यूके-चाइना ट्रांसपेरेंसी (यूकेसीटी) द्वारा की गई स्टडी में, जिसका शीर्षक है – “क्या कन्फ्यूशियस संस्थान कानूनी हैं?”, नायर ने इन संस्थानों में काम करने वाले चीनी कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रियाओं आदि का विश्लेषण किया.
लेखकों के शब्दों में “कन्फ्यूशियस संस्थान का उद्देश्य चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के हितों को उच्च शिक्षा, और समाज में अधिक व्यापक रूप से आगे बढ़ाना है.” एआईसीआईएस के मुताबिक, इस विश्लेषण ने चीन के हित को भी उजागर किया, जिसमें “मंदारिन की टीचिंग, वैज्ञानिक सहयोग को बढ़ावा देना, राजनीतिक और व्यावसायिक नेटवर्किंग प्रचार और गतिविधियों को आकार देने का इरादा है कि कैसे चीन और सीपीसी को अकादमिक रूप से देखा और अध्ययन किया जाता है.
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इसमें यह भी बताया गया है कि इन संस्थानों में भेदभावपूर्ण तरीके से कर्मचारियों की भर्ती होती है जो कि यूके के कानून के मुताबिक अवैध है. ब्रिटेन में ‘सीपीसी अनुशासन’ को लागू करने की क्षमता के आधार पर कर्मचारियों की भर्ती की जा रही है. नायर ने कहा कि यह भी पता चला कि कन्फ्यूशियस संस्थानों में प्लेसमेंट के लिए एक समान पद्धति का उपयोग करते हुए भागीदार चीनी संस्थाओं/विश्वविद्यालयों द्वारा अपनाई गई स्टाफ भर्ती प्रक्रिया अत्यधिक भेदभावपूर्ण थी जो यूके के कानून के तहत अवैध है. इसमें राजनीतिक, आयु-आधारित, लिंग के आधार पर, धार्मिक और जातिवादी प्रकार के भेदभावपूर्ण तरीके से भर्तियां की जाती हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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