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“है नमन उनको कि जिसके सामने बौना हिमालय…”, इस स्वतंत्रता दिवस कुमार विश्वास के क्रांति गीतों से दे शहीदों को श्रद्धांजलि

प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज भी फहराते हैं और लाल किले पर भाषण देते हैं. इस परंपरा को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने शुरू की थी.

Kumar Vishwas Kranti Geet

कुमार विश्वास

Kumar Vishwas Kranti Geet: 15 अगस्त को भारत की आजादी के 76 साल पूरे हो जाएंगे. 15 अगस्त, 1947 को देश को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली. जैसा कि हम 76वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाने के लिए तैयार हैं, इस दिन के महत्व, हमारे राष्ट्र के इतिहास और हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को याद रखना महत्वपूर्ण है. ब्रिटिश साम्राज्य के चंगुल से देश को आजादी दिलाने के लिए हजारों-लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान दे दी. इस दिन देश के नागरिक राष्ट्रगान गाते हुए झंडे फहराते हैं और पूरे देश में सांस्कृतिक परेड होती हैं. प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज भी फहराते हैं और लाल किले पर भाषण देते हैं. इस परंपरा को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने शुरू की थी. इस स्वतंत्रा दिवस कुमार विश्वास की कांति कविताओं के जरिए श्रद्धांजलि अर्पित करें. अपने दोस्तों

कुमार विश्वास की देशभक्ति कविताएं

है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय

है नमन उनको कि जो देह को अमरत्व देकर
इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं

पिता जिनके रक्त ने उज्जवल किया कुलवंश माथा
मां वही जो दूध से इस देश की रज तौल आई
बहन जिसने सावनों में हर लिया पतझर स्वयं ही
हाथ ना उलझें कलाई से जो राखी खोल लाई
बेटियां जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रहीं थीं
पिता तुम पर गर्व है चुपचाप जाकर बोल आये
है नमन उस देहरी को जहां तुम खेले कन्हैया
घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय

हमने लौटाये सिकन्दर सर झुकाए मात खाए
हमसे भिड़ते हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है
नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी
उनके माथे पर हमारी ठोकरों का ही बयां है
सिंह के दांतों से गिनती सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला में क्या अजब है क्या नया है
जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है

है नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन
काल कौतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं
लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है
राखियों की प्रतीक्षा, सिन्दूरदानों की व्यथाओं

देशहित प्रतिबद्ध यौवन के सपन तुमको नमन है
बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे
पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है
है नमन उनको कि जिनको काल पाकर हुआ पावन
शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये हैं

कंचनी तन, चन्दनी मन, आह, आंसू, प्यार, सपने
राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है

है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये…

-साभार कविता कोश

 

होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो

दौलत ना अता करना मौला, शोहरत ना अता करना मौला
बस इतना अता करना चाहे, जन्नत ना अता करना मौला

शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो

बस एक सदा ही सुनें सदा बर्फ़ीली मस्त हवाओं में,
बस एक दुआ ही उठे सदा जलते-तपते सेहराओं में जीते-जी इसका मान रखें ,
मर कर मर्यादा याद रहे हम रहें कभी ना रहें मगर इसकी सज-धज आबाद रहे
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो

गीता का ज्ञान सुने ना सुनें, इस धरती का यशगान सुनें

हम सबद-कीर्तन सुन ना सकें भारत मां का जयगान सुनें

परवरदिगार, मैं तेरे द्वार
पर ले पुकार ये आया हूं चाहे अज़ान ना सुनें कान, पर जय-जय हिन्दुस्तान सुनें
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो

होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो

-साभार
पुस्तक- फिर मेरी याद



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