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Karnataka: जानें क्या है MUDA? इस मामले में बुरे फंसे सीएम सिद्धारमैया, राज्यपाल ने मुकदमा चलाने की दी अनुमति

भाजपा के वरिष्ठ नेता शोभा करनलाजे ने हाल ही में कहा था कि जमीन के लेन-देन का मामला जब से शुरू हुआ तभी से सिद्धारमैया हमेशा अहम पदों पर रहे.

Siddaramaiah

फाइल फोटो-सोशल मीडिया

Karnataka: कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया MUDA मामले में बुरी तरह से फंस गए हैं. जहां एक ओर उनके खिलाफ भाजपा ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है तो वहीं दूसरी ओर राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने भी उनके खिलाफ MUDA (मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण या मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी) मामले के कथित भूमि घोटाले में मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है.

मालूम हो कि इसके लिए हाल ही में राज्यपाल ने कैबिनेट से राय मांगी थी. इसी के बाद गुरुवार को मंत्रिपरिषद की बैठक हुई, जिसमें राज्यपाल को कारण बताओ नोटिस वापस लेने की सलाह दी गई.

इसके अलावा मंत्रिपरिषद ने इसे बहुमत से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करार दिया. इस मामले में केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता शोभा करनलाजे तो पहले ही कह चुके हैं कि जमीन के लेन-देन का मामला जब से शुरू हुआ तभी से सिद्धारमैया हमेशा अहम पदों पर रहे, इस मामले में उनके परिवार पर लाभार्थी होने का आरोप है. ऐसे में उनकी इसमें भूमिका ना हो ऐसा हो ही नही सकता.

जानें क्या है MUDA मामला

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MUDA) ने साल 1992 में कुछ जमीन रिहायशी इलाके में विकसित करने के लिए किसानों से ली थी. इस भूमि को डेनोटिफाई कर कृषि भूमि से अलग किया गया था लेकिन 1998 में अधिगृहित भूमि का एक हिस्सा MUDA ने किसानों को डेनोटिफाई कर वापस कर दिया था. इस तरह से एक बार फिर से ये भूमि कृषि भूमि बन गई थी.

जानें क्या है MUDA भ्रष्टाचार मामला

मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MUDA) कर्नाटक में राज्य स्तर की एक विकास एजेंसी है. इसके तहत शहरी विकास को बढ़ावा देना और गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे का विकास करने का काम किया जाता है. इसी के साथ ही लोगों को कम कीमत पर आवास उपलब्ध कराए जाते हैं. MUDA शहरी विकास के दौरान अपनी जमीन खोने वाले लोगों के लिए एक योजना लेकर आई थी. 50:50 नाम की इस योजना में जमीन खोने वाले लोग विकसित भूमि के 50% के हकदार होते थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह योजना 2009 में पहली बार शुरू हुई थी जिसे 2020 में तत्कालीन भाजपा सरकार में बंद कर दिया था.

अब बता दें कि विवाद कहां है? बता दें कि ये आरोप है कि योजना के बंद होने के बाद भी MUDA ने 50:50 योजना के तहत जमीनों का अधिग्रहण और आवंटन जारी रखा. इसी मुद्दे से पूरा विवाद जुड़ा हुआ है. आरोप है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को इसके तहत लाभ पहुंचाया गया. मुख्यमंत्री की पत्नी की 3 एकड़ और 14 गुंटा भूमि MUDA द्वारा अधिग्रहित की गई.

ये भी आरोप

इसी के साथ ही ये भी आरोप है कि इसके बदले में एक महंगे इलाके में 14 साइटें आवंटित की गईं. इस मामले में मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मैसूर के बाहरी इलाके केसारे में यह जमीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुन स्वामी ने 2010 में उपहार स्वरूप दी थी. इस पर आरोप लगा है कि MUDA ने इस जमीन का अधिग्रहण किए बिना ही देवनूर तृतीय चरण की योजना विकसित कर दी.

इस मामले में ये भी बात सामने आई है कि मुआवजे के लिए मुख्यमंत्री की पार्वती ने आवेदन किया जिसके आधार पर, MUDA ने विजयनगर III और IV फेज में 14 साइटें आवंटित कर दी गईं. यह आवंटन राज्य सरकार की 50:50 अनुपात योजना के तहत कुल 38,284 वर्ग फीट का था. जिन 14 साइटों का आवंटन मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर हुआ उसी में घोटाले के आरोप लग रहे हैं. इस मामले में विपक्ष ने आरोप लगाते हुए कहा है कि पार्वती को MUDA द्वारा इन साइटों के आवंटन में अनियमितता बरती गई है.

सिद्धारमैया की क्या है भूमिका

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वर्ष 1998 में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन की सरकार में सिद्धारमैया बतौर डिप्टी सीएम नियुक्त थे. सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के भाई ने वर्ष 2004 में डेनोटिफाई 3 एकड़ 14 गुंटा ज़मीन के एक टुकड़े को खरीदा था. तो वहीं 2004-05 में कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन की सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम के तौर पर थे. इस दौरान जमीन के विवादित हिस्से को दोबारा डेनोटिफाई कर कृषि की भूमि से अलग कर दिया गया था लेकिन जब जमीन का मालिकाना हक़ लेने सिद्धरमैया का परिवार गया तो पता चला कि वहां लेआउट विकसित हो चुका था. इस तरह से इस मामले में MUDA के तहत केस शुरू हुआ था.

इसके बाद 2013 से 2018 के बीच सिद्धारमैया मुख्यमंत्री के तौर पर थे. इस दौरान उनके परिवार की ओर से जमीन की अर्जी को उन तक पहुंचाया गया लेकिन सीएम सिद्धारमैया ने इस अर्जी को आगे नहीं बढ़ाया क्योंकि उनका परिवार इसका लाभार्थी था. इसके बाद 2022 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के पास फिर ये फाइल पहुंची. उस वक्त सिद्धारमैया विपक्ष के नेता थे और सत्ता में भाजपा की सरकार थी. इस मामले में बोम्मई सरकार ने 50-50 स्कीम के तहत 14 प्लॉट्स मैसूर के विजयनगर इलाके में देने का निर्णय किया था.

जानें क्या बोले मुख्यमंत्री

बता दें कि इस मामले में सिद्धारमैया ने पहले ही कानूनी लड़ाई लड़ने की बात कही थी. फिलहाल इस पूरे मामले को लेकर सीएम सिद्धरमैया ने कहा है कि इसमें उनका कोई हाथ नहीं है. उन्होंने ये भी कहा कि अगर उनकी नियत में कोई खोट होता तो 2013 से 2018 के बीच मुख्यमंत्री रहते हुए वो अपनी पत्नी की फाइल पर कार्रवाई कर सकते थे.अगर कुछ गलत था और नियमों की अनदेखी हुईं थी तो बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार ने उनकी पत्नी को प्लॉट्स क्यों दिए?

-भारत एक्सप्रेस

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