चुनाव प्रबंधन समिति, संकल्प पत्र समिति जैसी अहम समितियों में वंसुधरा का न होना स्पष्ट संकेत देता है कि राजस्थान में वंसुधरा राजे अब बीजेपी का चेहरा शायद न रहें. एक पूरी पीढ़ी ने गहलोत और वंसुधरा को ही राजस्थान के सीएम के तौर पर देखा है. रिवाज भी एक बार बीजेपी एक बार कांग्रेस का रहा है. बीजेपी जहां रिवाज कायम रखने की जद्दोजेहद में जुटी है तो गहलोत अपनी योजनाओं के सहारे सरकार रिपीट होने का दावा कर रहे हैं. पायलट और उनके बीच के मन मुटाव को भी फिलहाल कांग्रेस थामने में कामयाब हुई है. बीजेपी के सामने चेहरे की चुनौती है लेकिन पीएम मोदी के तूफानी दौरों ने पहले ही जता दिया कि उन्हीं के चेहरे पर बीजेपी राजस्थान का चुनाव लड़ने जा रही है. ये बात सिर्फ आगामी विधानसभा चुनाव की नहीं है बल्कि अगले साल की शुरूआत में होने वाले लोकसभा चुनाव की भी है. 2019 के चुनाव में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत में राजस्थान के शानदार प्रदर्शन का भी योगदान था. ऐसे में इस प्रदर्शन को लोकसभा चुनाव में दोहराना इस बार बड़ी चुनौती होगी, लिहाजा अभी से ही पीएम मोदी के चेहरे को राजस्थान में सामने रखा जा रहा है.
ये तो पहले से ही तय माना जा रहा है कि वसुंधरा का चेहरा अब बीजेपी को उतना प्रभावी नहीं लगता जितना पहले कभी था. इसकी वजह पिछली हार ही नहीं है बल्कि सत्ताधारी दल के खिलाफ बीते 5 सालों में राज्य बीजेपी के संगठन का अप्रभावी रहना भी है. हांलाकि सतीश पूनिया से लेकर अन्य कई बड़े चेहरों के साथ वंसुधरा की पटरी न बैठ पाना पहले भी चर्चा का विषय रहा है. ऐसे में अकेल वो इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराई जा सकतीं. हाल में चाहे गृह मंत्री की रैलियां हों या प्रधानमंत्री के कार्यक्रम वंसुधरा को सम्मान तो दिया गया लेकिन कहीं भी ये इशारा नहीं मिला कि वही चेहरा होंगी. इस सम्मान की वजह भी स्पष्ट है कि उनका अपने क्षेत्र में तो कम से कम अब भी दबदबा देखने को मिला है.
बीजेपी ने इस साल के आखिर में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव प्रबंधन समिति और संकल्प पत्र कमेटी का गठन किया. इन दोनों समितियो वसुंधरा राजे का नाम नहीं है. पार्टी ने इस पर अपना स्पष्टीकरण भी दिया कि सभी को जिम्मेदारियां दी जाएंगी. हांलाकि राजनैतिक हलकों में इसे वसुंधरा के लिए एक स्पष्ट संकेत के तौर पर देखा जा रहा है. बात साफ है वसुंधरा इस दौड़ में अब पीछे छूटती दिखाई दे रही हैं. केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी इस मामले पर अपना बयान दिया. उनका कहना है कि ”वसुंधरा राजे हमारी वरिष्ठ नेता हैं. हम हमेशा से उन्हें कई कार्यक्रमों में शामिल करते रहे हैं और आगे भी करेंगे. मीडिया की खबरों के मुताबिक राजे की भूमिका के बारे में पूछे गए सवाल पर प्रदेश प्रभारी अरूण सिंह ने कहा कि बाकी सभी वरिष्ठ नेता प्रचार करेंगे.
प्रदेश संकल्प पत्र समिति’ का संयोजक केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को बनाया गया है. इस समिति में राज्यसभा सदस्य घनश्याम तिवाड़ी, किरोड़ी लाल मीणा, राष्ट्रीय मंत्री अल्का सिंह गुर्जर, पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राव राजेंद्र सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया, पूर्व मंत्री प्रभु लाल सैनी और राखी राठौड़ को सह संयोजक बनाया गया है. प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष नारायण पंचारिया को बनाया गया है. इसमें पार्टी के पूर्व प्रदेश महामंत्री ओंकार सिंह लखावत, पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राज्यवर्धन सिंह राठौड़, प्रदेश महामंत्री भजनलाल, प्रदेश महामंत्री दामोदर अग्रवाल, पूर्व सूचना आयुक्त सीएम मीणा और कन्हैया लाल बैरवाल को सह संयोजक की जिम्मेदारी दी गई है.
गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे केंद्र के बड़े मंत्री लंबे समय से राजस्थान में सक्रिय दिख रहे हैं. वसुंधरा पहले पार्टी के पोस्टर्स से भी गायब हो गईं थीं. बाद में उनकी वापसी हुई क्योंकि पार्टी के लिए एक चेहरे के तौर पर अब भी वो एक असर रखती हैं. इस बार सीएम फेस न रखने की रणनीति कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने अपनाई है. स्पष्ट है आपसी घमासान को थामें रखना दोनों ही दलों की प्राथमिकता है. ऐसे में बीजेपी के लिए अब तस्वीर साफ है कि किसी कीमत पर वसुंधरा के चेहरे पर तो ये चुनाव नहीं होने जा रहा. अलबत्ता कांग्रेस ने गहलोत को सीएम रखते हुए चुनाव में उतरने के फैसले के साथ उनका महत्व बता दिया. बड़ी वजह स्थानीय योजनाओं और केंद्र की योजनाओं के राजस्थान में किए जा रहे प्रचार प्रसार को भी माना गया. कांग्रेस का मानना है कि इन योजनाओं का कांग्रेस के लिए सकारात्मक परिणाम आ सकता है. बीजेपी भी केंद्र की योजना का इसी तरह लाभ चुनाव में लेने का प्रयास करेगी. कुल मिलाकर राजस्थान के सियासी रण में आगामी चुनाव बहुत दिलचस्प नतीजे लेकर आ सकता है.
-भारत एक्सप्रेस
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