चंद्रयान-3 ( Chandrayan-3) के अलावा दुनिया के कई देश मिशन मून (Mission Moon) के तहत अपने खोज जारी रखे हुए हैं. रूस ने भी 47 साल बाद अपना अंतरिक्ष यान चंद्रमा के लिए रवाना किया है. आलम ये है कि चंद्रमा के ऑर्बिट में ट्रैफिक बढ़ गया है. लेकिन, सवाल ये उठता है कि चंद्रमा पर क्या जीवन संभव है? अगर नहीं है तो फिर दुनिया के सारे देश इतने पैसे क्यों खर्च कर रहे हैं? इसके लिए हम पहले विस्तार से जानते हैं कि क्या वाकई में चंद्रमा पर जीवन संभव है अथवा नहीं?
अभी तक के तमाम अनुसंधान और खोज के आधार पर कहा जा सकता है कि चांद पर जीवन बिल्कुल भी संभव नहीं है. यहां पर धरती की तरह वायुमंडल का नहीं होना, रेडिएशन और तापमान जैसी बुनियादी वजहें ऐसी हैं जो जीवन की संभावना को खारिज करती हैं.
चंद्रमा पर धरती जैसा वायुमंडल बिल्कुल नहीं है. यहां का वातावरण बेहद ही क्रूर और विषम है. इसके चलते जीवन की कल्पना बिल्कुल भी नहीं की जा सकती. पर्यावरण और पानी का नामो निशान तक नहीं है. मौसम ऐसा कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते. चांद की सतह पर रात के समय तापमान बेहद सर्द यानी चिल्ड होता है. जबकि, दिन का तापमान काफी गर्म होता है. दिन में चंद्रमा पर जब सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं तो यहां तापमान लगभग 127 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. जबकि, रात के वक्त -173 (माइनस में) डिग्री सेल्सियस रहता है. जब पानी 100 डिग्री सेल्सियस पर खौलने लगता है, तो सोचिए 127 डिग्री सेल्सियस के तापमान में मानव का क्या होगा. वहीं, माइनस 30 डिग्री वाले ग्लेशियर में लोगों की कुल्फी जम जाती है. चंद्रमा पर तो तपमान माइनस में 173 डिग्री सेल्सियस है.
चंद्रमा पर पानी का नामो-निशान तक नहीं है. हालांकि, विज्ञानियों ने कुछ ऐसी जगहों पर पानी की संभावना बताई है, जो दक्षिणी ध्रुव के निचले हिस्से में बर्फ की शक्ल में अदृश्य हालात में हो सकते हैं. मगर अभी इसका वैज्ञानिक तौर पर परीक्षण और पुष्टि होना बाकी है. लेकिन, सिर्फ बर्फ या पानी की बूंद मिलने से ही जीवन संभव नहीं है. क्योंकि, पानी के साथ-साथ संपूर्ण इको-सिस्टम का होना भी बेहद जरूरी होता है. इसके लिए नीचे का पैराग्राफ पढ़ना बेहद जरूरी है. थोड़ा वैज्ञानिक बुद्धि के साथ नीचले पैराग्राफ का रुख करें.
चांद पर वायुमंडल का अभाव है. जिस तरह से पृथ्वी को वायुमंडल एक कवच प्रदान करता है. वैसा सिस्टम चंद्रमा पर बिल्कुल भी नहीं है. हमारे यहां एक मजबूत पारिस्थितिकी यानी इकोसिस्टम (Ecosystem) है जबकि चांद पर ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. आप जानते हैं कि धरती पर भी कई प्रकार की कॉस्मिक रेडिएशन होते रहते हैं. इनमें से अधिकांश काफी खतरनाक होते हैं. लेकिन, पृथ्वी का वायुमंडल इनसे हमें बचा लेता है. लेकिन, चंद्रमा पर कॉस्मिक रेडिएशन काफी मात्रा में होते रहते हैं. एक प्रकार से ये रेडिएशन धरती के तमाम अनुसंधान केंद्रों के लिए एक चुनौती भी हैं. इसके अलावा सूरज की भी अल्ट्रावॉयलेट किरणें भी डायरेक्ट चांद की सतह पर पड़ती हैं.
निर्वात और न्यूट्रिएंट्स
चांद पर निर्वात की स्थिति है. निर्वात मतलब वैक्यूम (Vacuum). स्कूल में आपने सांइस की बुक में वैक्यूम के बारे में विस्तार से पढ़ा होगा. निर्वात की स्थिति में ऊर्जा और शक्ति दोनों क्षीण हो जाती हैं. लिहाजा, किसी भी तरह की वनस्पति या इंसानी ग्रोथ का यहां सवाल ही नहीं पैदा होता.
इंसान मूल रूप से एक जिज्ञासा से भरपुर प्राणी है. तमाम जीवों में इसके सर्वश्रेष्ठ बनने की वजह भी इसकी जिज्ञासा और अनुसंधान की शक्ति रही है. अपने मूल स्वभाव के कारण इंसान चंद्रमा को भी उसी कौतूहल से देखता रहा है. चूंकि, चांद धरती के सबसे करीब है. लिहाजा, इसकी मौजूदगी का धरती के लिए मतलब और इसका इतिहास जानने की जिद अर्से से रही है.
खगोलीय दुनिया को समझने की दिशा में चांद एक बहुत बड़ा माइल-स्टोन साबित होता रहा है. चांद पर अध्ययन वैज्ञानिकों के लिए काफी मूल्यवान है. इसकी सतह, संरचना, भूविज्ञान और इतिहास का अध्ययन करके वैज्ञानिक पूरे सौर मंडल के शुरुआती इतिहास की जानकारी हासिल की जा सकती है. कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि चांद में मौजूद मूल्यवान संसाधनों की संभावना हो सकती है, जैसे कि ध्रुवों के पास स्थित स्थायी अंधकार में बर्फ और ईंधन का भंडार हो सकता है.
वैज्ञानिक खोज के अलावा राष्ट्रों के बीच प्रतिस्पर्धा और चांद पर पहुंचकर अपना झंडा गाड़ने की जिद भी इसके एक्सप्लोरेशन की एक बड़ी वजह है. राष्ट्र चांद फतह करने को एक राष्ट्रीय मर्यादा और सम्मान से जोड़कर देखते हैं. 20वीं सदी के में महने अंतरिक्ष की दौड़ देखी. हमने देखा कि कैसे संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने अंतरिक्ष की खोज और तकनीक को लेकर भयंकर प्रतिस्पर्धाएं रखीं. यह प्रतिस्पर्धा आज भी कायम है. बहरहाल, इसमें अब चीन, भारत और जापान जैसे देशों ने भी छलांग लगा दी है.
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