विश्लेषण

मानव शरीर में जहर घोलता माइक्रोप्लास्टिक

आज दुनिया अनेक समस्याओं एवं चुनौतियों से त्रस्त है. आज मानव एक तरफ जहाँ आये दिन प्राकृतिक समस्याओं से दो चार हो रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ मानव निर्मित समस्याएं हैं जिनसे आये दिन मानव समुदाय को जूझना पड़ रहा है. आज मानव प्रकृति पर विजय पाने की होड़ में नित नए आविष्कार कर रहा है और फिर वही आविष्कार मानव जीवन के लिए अभिशाप भी बनते जा रहे हैं. ऐसा ही एक आविष्कार प्लास्टिक है, जिसने आज समूचे मानव समुदाय के सामने अनगिनत समस्या एवं चुनौतियां खड़ी कर दी है. आज प्लास्टिक मानव समुदाय को अपना निवाला बनाने पर आतुर है.

आज से लगभग 160 वर्ष पूर्व इंग्लैंड के अलेक्जेंडर पार्कस ने मानव निर्मित प्लास्टिक पार्केसीन का अविष्कार किया था और तब शायद ही उन्होंने सोचा होगा कि एक दिन यही प्लास्टिक मानव समुदाय में घातक बीमारियों का कारण बन जाएगा. आज कैंसर, अस्थमा, हार्ट अटैक, मधुमेह, अंगों में सूजन, प्रजनन संबंधी विकार, भ्रूणों एवं बच्चों के तंत्रिका तंत्र संबंधी अनगिनत ऐसे विकार हैं जो प्लास्टिक जनित प्रदूषण और उसके सूक्ष्म कणों को शरीर के अंदर प्रवेश करने से हो रहे हैं.

प्लास्टिक के सूक्ष्म कण जिसे माइक्रोप्लास्टिक या नैनोप्लास्टिक कहते हैं. तमाम अध्ययनों में यह सामने आया है कि प्लास्टिक के सूक्ष्म कण खाने-पीने के उत्पादों में बड़े पैमाने पर पाए गए हैं. एक नए शोध में तो चौकाने वाला परिणाम सामने आया है. लगभग सभी खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक का स्तर अपेक्षा से कई गुणा अधिक पाया गया. उपभोक्ता रिपोर्ट की प्रयोगशाला के नए शोध के अनुसार 85 खाद्य पदार्थों में से 84 में माइक्रोप्लास्टिक के 5 मिली मीटर से लेकर 1 माइक्रो मीटर तक के सूक्ष्म कण पाए गए हैं. ये माइक्रो और नैनो कण मानव बाल के हजारवें हिस्से के बराबर छोटे होते हैं.

कई अध्ययनों में तीन लोकप्रीय बोतलबंद पानी के ब्रांड में पहले दर्ज किये गए आकड़ों की तुलना में दस से नब्बे गुणा अधिक माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए गए हैं. हाल ही में एक गैर सरकारी संगठन टॉक्सिक्स लिंक की नयी रिपोर्ट में यह सामने आया है कि देश के बड़े ब्रांड के नमक और चीनी में भी माइक्रोप्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाए गए हैं. संस्था ने बाजार से कई ब्रांड के नमूने लेकर जांच की है. डिब्बाबंद खाद्य सामग्री एवं पेय पदार्थों में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक के अंश पाए जा रहे हैं.

कुछ रिपोर्ट में यह समाने आया है कि भारत की हवा, प्राकृतिक श्रोतों एवं मिट्टी में माइक्रोप्लास्टिक के कण बड़े पैमाने पर पाए गए हैं. आज शायद ही ऐसी कोई खाद्य सामग्री है जिनमें प्लास्टिक के अंश न हो. पैकेट वाले दूध में ही नहीं बल्कि अब तो गाय-भैंस के थन से निकल रहे दूध में भी प्लास्टिक के सूक्ष्म अंश पाए गए हैं. खेतों में उपजने वाले फल एवं सब्जियों में भी प्लास्टिक का अंश पाया गया है. प्लास्टिक हवा, पानी और मिट्टी में बड़ी मात्रा में पहुंच चुका है और उसके माध्यम से फसलों और खास करके जड़ वाली सब्जियों जैसे गाजर, मूली, आलू में भी प्लास्टिक के माइक्रो और नैनो कण पाए गए हैं.

पटना आईआईटी के नए शोध में बारिश के पानी में भी माइक्रो प्लास्टिक के कण पाए गए हैं. ताजा पानी, नदियों एवं झीलों के साथ-साथ अब ग्लेसियर में भी प्लास्टिक के माइक्रो कण मिले हैं. दुनिया के सबसे स्वच्छ स्थान अंटार्कटिका में भी प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाए गए हैं. महज दो सौ वर्षों से भी कम समय में प्लास्टिक मानव निर्मित वस्तुओं में ही नहीं अब तो प्राकृतिक पदार्थों में भी प्लास्टिक के सूक्ष्म कण घुल गए हैं.

सर के बाल, लार, थूक, फेफरे, रक्त कोशिकाओं में प्लास्टिक के सूक्ष्म अंश पाए गए हैं. प्लास्टिक का कण जितना छोटा होता है उसके शारीर में प्रवेश करने की संभावना उतनी ही अधिक होती है. माइक्रोप्लास्टिक इंसानी शरीर में तीन रास्तों से होकर प्रवेश करता है. निगलने, श्वास लेने एवं त्वचा के माध्यम से. आज माइक्रोप्लास्टिक वातावरण के विभिन्न स्तरों से मानव शरीर में दाखिल हो कर मानव शारीर को दर्जनों घातक बिमारियों की जद में ले रहा है.

आज इस वैश्विक समस्या से निपटना किसी एक सरकार, संगठन या संस्थान के बस की बात नहीं है बल्कि समूचे मानव समुदाय को इसके लिए आगे आना होगा. हमें अपनी दैनंदिन आदतों को सुधारने के साथ-साथ परंपरागत व्यवस्थाओं की तरफ पुनः लौटना होगा. हमें डिब्बाबंद खाना, पानी, जूस, चाय एवं अन्य डिब्बाबंद पेय पदार्थों का सेवन बंद करना होगा जिनकी पैकिंग प्लास्टिक से निर्मित वस्तुओं में होती है.

हमें बाजार अपने साथ थैले लेकर जाने की आदत डालनी होगी. होटल और ढाबे पर प्लास्टिक, थर्मोंकोल के प्लेट, कप, चम्मच आदि की जगह धातु निर्मित वस्तुओं का उपयोग अपने दैनंदिन जीवन में करना होगा. साथ ही सरकार के स्तर पर समाज में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है. प्लास्टिक के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान एवं खतरों के बारे में समाज के सभी वर्गों को जागरुक करना होगा.

डॉ. अतुल वैभव, लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.

ये भी पढ़ें- नमक और चीनी में प्लास्टिक

-भारत एक्सप्रेस

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