विश्लेषण

सब इंस्पेक्टर से मुख्यमंत्री तक का सफर…बेटी को सियासत की विरासत सौंपने वाले सुशील शिंदे ने किया सक्रिय राजनीति से संन्यास का ऐलान

Sushil Kumar Shinde: महाराष्ट्र कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व सीएम सुशील शिंदे ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया है. उन्होंने कहा कि जहां भी कांग्रेस को मेरी जरूरत होगी मैं मौजूद रहूंगा. कांग्रेस नेता ने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मेरी बेटी प्रणीति शिंदे उनकी जगह लेंगी. सुशील कुमार शिंदे की बेटी, प्रणीति शिंदे, सोलापुर शहर केंद्रीय विधानसभा क्षेत्र से तीन बार की MLA हैं. सुशील शिंदे ने कहा, “मैं सार्वजनिक रूप से कह रहा हूं कि प्रणीति ताई लोकसभा चुनाव सोलापुर लोकसभा क्षेत्र से लड़ेंगी. मैं एक सेवानिवृत्त व्यक्ति की तरह हूं और जहां भी आवश्यक हो मदद करने की कोशिश कर रहा हूं.”

2014 से ही बेटी के लिए रास्ता तैयार कर रहे हैं शिंदे

बता दें कि 83 वर्षीय सुशील शिंदे ने 70 के दशक में राजनीति की शुरुआत की थी. शिंदे, 2014 के चुनावों के बाद अपनी बेटी के लिए रास्ता बनाने की योजना पर काम कर रहे थे. उन्होंने एक बार प्रचार के दौरान मतदाताओं से कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव है. वह 2014 की मोदी लहर में सोलापुर सीट हार गए. 2019 में भी वही हुआ. त्रिकोणीय लड़ाई में वह भारतीय जनता पार्टी के जयसिद्धेश्वर स्वामी से फिर से सीट हार गए.

सोलापुर लोकसभा सीट से तीन बार सांसद रहे शिंदे जनवरी 2003 और नवंबर 2004 के दौरान कुछ महीनों के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे. पद छोड़ते ही उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया और वह 2006 तक इस पद पर बने रहे. बाद में उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. वह मनमोहन सिंह सरकार में देश के ऊर्जा मंत्री थे. 2012 में उन्हें गृह मंत्रालय सौंपा गया था.

जब राजनीति के लिए छोड़ी पुलिस की नौकरी

बता दें कि शिंदे ने राजनीति में एक अलग पहचान बनाई है. सुशील शिंदे महाराष्ट्र के पहले दलित मुख्यमंत्री भी बने थे. कहा जाता है कि शुरुआत में शरद पवार से शिंदे बहुत प्रभावित थे. उन्होंने साल 1971 में पुलिस की नौकरी भी छोड़ दी. तीन साल तक राजनीतिक मेहनत करने के बाद सुशील 1974 में महाराष्ट्र विधानसभा पहुंच गए. उन्हें मंत्री पद भी मिला. शिंदे का राजनीतिक सफर परवान चढ़ता गया और वो लगातार 5 बार विधानसभा के लिए चुने गए.

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1999 के दौरान करियर में आया नया मोड़

इसके बाद साल 1992 में शिंदे राज्यसभा के लिए चुने गए. 1999 में शिंदे के राजनीतिक करियर में एक नया मोड़ आया. दरअसल, तब कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ रही थीं और उनके चुनाव प्रचार का जिम्मा शिंदे को सौंपा गया था. ऐसा माना जाता है कि शिंदे उसी दौरान सोनिया के करीब आए और तबसे गांधी परिवार के चहेते बन गये.

बताते चलें कि शिंदे के लिए अब समय आ चुका था सक्रिय राजनीति से निकल कर राजभवन में बैठने का. साल 2004 में केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार बनने के बाद भी उन्हें राज्यपाल बनाया गया. शिंदे आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बने. साल 2006 में शिंदे की एक बार फिर सक्रिय राजनीति में वापसी हुई और उन्हें मनमोहन मंत्रिमंडल में जगह मिली. ऊर्जा मंत्री के रूप में शिंदे का कामकाज साधारण ही माना जाता है.

सोनिया के बेहद करीबी शिंदे को कभी अति महत्वकांक्षी होते नहीं देखा गया. उनको लेकर यह आम धारणा है कि उन्होंने पार्टी के निर्देशों के ऊपर जाकर कभी अपनी महत्कांक्षाओं को हावी नहीं होने दिया. यही नहीं जब महाराष्ट्र में उनके और विलासराव देशमुख के बीच मुख्यमंत्री बनने की होड़ शुरू हुई तो पार्टी ने उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बना दिया, लेकिन उन्होंने एक शब्द बोले बगैर यह पद ले लिया. इसके बाद उन्हें कांग्रेस की सरकार में केंद्र प्रमुख पदों पर बुलाया गया था.

-भारत एक्सप्रेस

Rakesh Kumar

Sr. Sub-Editor

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