Uniform Civil Code Details: लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर से यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर देश में चर्चा शुरू हो गई है. एक देश में एक समान कानून की मांग को पूरा करने पर जोर देते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने इसे लागू करने के संकेत दिए हैं.इस सिविल कोड के मुताबिक, देश के सभी धर्मो, समुदायों के लिए एक समान कानून बनाने की बात कही गई है. हालांकि, देश के कुछ हिस्सों में इसे लेकर काफी बवाल हुआ है. इसके लागू होते ही देश में मौजूदा अलग-अलग धर्मों के आधार पर बने कानून निरस्त हो जाएगा. और सबके लिए एक समान कानून लागू होगा. आखिर यह कानून क्या है चलिए हम आपको सामान्य भाषा में समझाते हैं.
समान नागरिक संहिता भारत में एक प्रस्ताव है जिसका उद्देश्य धर्मों, रीति-रिवाजों और परंपराओं पर आधारित व्यक्तिगत कानूनों को धर्म, जाति, पंथ, यौन और लिंग के बावजूद सभी के लिए एक समान कानून के साथ बदलना है.
हां, समान नागरिक संहिता का उल्लेख संविधान के भाग 4 में किया गया है, जिसमें कहा गया है कि राज्य “भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा”. संविधान निर्माताओं ने कल्पना की थी कि कानूनों का एक समान सेट होगा जो विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने के संबंध में हर धर्म के आदिम व्यक्तिगत कानूनों की जगह लेगा. यूसीसी राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों का हिस्सा है जो कानून की अदालत में लागू करने योग्य या न्यायसंगत नहीं है और देश के शासन के लिए मौलिक है.
सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न निर्णयों में यूसीसी को लागू करने का आह्वान किया है. 1985 के अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम फैसले में, जहां एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला ने अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता की मांग की, सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी या मुस्लिम पर्सनल लॉ को प्रचलन देने का फैसला करते हुए यूसीसी के कार्यान्वयन का आह्वान किया था. न्यायालय ने 1995 के सरला मुद्गल फैसले और पाउलो कॉटिन्हो बनाम मारिया लुइज़ा वेलेंटीना परेरा मामले (2019) में सरकार से यूसीसी को लागू करने के लिए भी कहा.
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2018 में, मोदी सरकार के अनुरोध पर विधि आयोग ने पारिवारिक कानून में सुधार पर 185 पेज का परामर्श पत्र प्रस्तुत किया. विधि आयोग ने कहा कि यूसीसी “इस स्तर पर न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय”, रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि किसी विशेष धर्म और उसके व्यक्तिगत कानूनों के भीतर भेदभावपूर्ण प्रथाओं, पूर्वाग्रहों और रूढ़िवादिता का अध्ययन और संशोधन किया जाना चाहिए.
समान नागरिक संहिता की बात करें तो गोवा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. गोवा नागरिक संहिता पुर्तगाली काल से लागू है और इसे समान नागरिक संहिता माना जाता है. 1867 में, पुर्तगाल ने एक पुर्तगाली नागरिक संहिता लागू की और 1869 में इसे पुर्तगाल के विदेशी प्रांतों (जिसमें गोवा भी शामिल था) तक बढ़ा दिया गया. हालांकि, ज़मीनी स्तर पर यह काफी जटिल है. उत्तराखंड सरकार ने पिछले साल 27 मई को राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने के अपने फैसले की घोषणा की थी. राज्य सरकार ने यूसीसी के कार्यान्वयन के लिए एक मसौदा प्रस्ताव तैयार करने के लिए देसाई के नेतृत्व में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पहले कह चुके हैं कि समिति इस साल 30 जून तक अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. इससे पहले, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य में समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन की आवश्यकता के बारे में बात की थी. उन्होंने कहा था कि सभी मुस्लिम महिलाओं को न्याय देने के लिए कानून का आना जरूरी है.
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