बिहार को अलग राज्य के रूप में पहचान दिलाने में बक्सर के सपूत डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा की अहम भूमिका रही है. बिहार के सृजन की कहानी भी बहुत दिलचस्प है. साल 1893 में डॉ. सिन्हा जब इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई पूरी कर वापस वतन लौट रहे थे. जहाज में एक अंग्रेज वकील ने उनसे परिचय पूछा, तब उन्होंने अपना नाम बताते हुए खुद को एक बिहारी बताया. वकील ने अचरज जताते हुए सवाल पूछ दिया- कौन सा बिहार, भारत में इस नाम के किसी प्रांत के बारे में तो उन्होंने नहीं सुना है. यही सवाल डॉ. सिन्हा को दिल में जा लगा और उन्होंने पृथक बिहार गढ़ने का निश्चय किया.
डॉ. सिन्हा का जन्म तत्कालीन शाहाबाद (भोजपुर, आरा) और वर्तमान बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत चौंगाईं प्रखंड अंतर्गत मुरार गांव में 10 नवंबर 1871 में हुआ. इनके पिता बख्शी शिव प्रसाद सिन्हा डुमरांव महाराज के मुख्य तहसीलदार थे. प्राथमिक शिक्षा गांव में लेने के बाद जिला स्कूल आरा से डॉ. सिन्हा ने मैट्रिक की परीक्षा पास की.
महज 18 वर्ष की उम्र में 26 दिसंबर 1889 को वे बैरिस्टर की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए. वहां से वापस आकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में 10 वर्ष तक प्रैक्टिस की. उन्होंने इंडियन पीपुल्स एवं हिंदुस्तान रिव्यू नामक समाचार पत्रों का कई वर्षों तक संपादन किया. इसी दौरान पत्रकारिता के माध्यम से उन्होंने पृथक बिहार की मुहिम छेड़ी. आजादी से पहले वे बिहार के कानून मंत्री व पटना विश्वविद्यालय में उप कुलपति के पद पर पर भी रहे.
सच्चिदानंद सिन्हा के गृह जिले के जाने-माने लेखक और अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद वर्मा कहते हैं कि तब बिहार बंगाल का हिस्सा हुआ करता था. इसके बावजूद, सांस्कृतिक रूप से पृथक होने के कारण डॉ. सिन्हा अपना परिचय हमेशा एक बिहारी के रूप में ही देते थे. बिहार को बंगाल से अलग करने की मुहिम को तेज करने के लिए उन्होंने ‘द बिहार टाइम्स’ के नाम से अंग्रेजी अखबार निकाला.
इसके पहले बिहार के पत्रकारों में बंगाली पत्रकारों की संख्या काफी अधिक थी. बंगाली पत्रकार बिहार के हितों की बात तो करते थे, लेकिन बिहार को अलग राज्य का दर्जा देने के खिलाफ थे. डॉ. सिन्हा के इनके प्रयास से गर्वनर जनरल लॉर्ड हार्डिंग ने 22 मार्च 1912 को दिल्ली दरबार में अलग बिहार एवं उड़ीसा प्रांत के गठन की घोषणा की. अपनी पत्नी राधिका सिन्हा की स्मृति में पटना का गौरव सिन्हा लाइब्रेरी आज भी आपके विशाल व्यक्तित्व को दर्शाता है.
(रंजन ऋतुराज के फेसबुक वॉल से साभार)
-भारत एक्सप्रेस
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