ग्लोबल वार्मिंग से दिन प्रतिदिन वैश्विक तापमान में चिंताजनक बढ़ोतरी हो रही है. वैश्विक औसत समुद्री सतह का तापमान भी रिकॉर्ड ऊंचाइयों पर है. पृथ्वी के करीब 71% भाग पर महासागर और 29% भाग पर जमीन है. विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, साल 1900 के बाद वैश्विक समुद्र स्तर 15 सेंटीमीटर से अधिक बढ़ गया है और महासागरों ने 90% से अधिक गर्मी शोषित की है.
कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) के जारी नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि मई 2024 में वैश्विक औसत तापमान, 1991 से 2020 के बीच औसत तापमान से 0.65 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है. वहीं जून, 2023 से मई, 2024 के बीच पिछले 12 महीने में औद्योगिक काल से पहले (1850-1900) के औसत तापमान से तुलना करें तो यह 1.63 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है. जब तापमान बढ़ता है तो महासागरों का जलस्तर भी बढ़ने लगता है. कार्बन शोषित करने की क्षमता कम होने लगती है.
हर साल 8 जून को विश्व महासागर दिवस मनाया जाता है. इसके पीछे कारण है कि समुद्री संसाधनों के संरक्षण के विषय में लोगों को जागरूक किया जाए. पृथ्वी पर महासागर बेहद अहम हैं. पृथ्वी के अन्य प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र मसलन आर्द्रभूमि और जंगल आदि की तरह महासागर भी कार्बन सिंक के रूप में काम करते हैं.
पर्यावरणीय संतुलन में महासागरों के महत्व और उनके संसाधनों के बारे में लोगों को जागरूक करना जरूरी है, क्योंकि महासागर वैश्विक जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय संतुलन बनाते हैं. ग्रीन हाउस गैसों से उत्पन्न अधिकांश कमी को संग्रहित कर लेते हैं. वैश्विक आर्थिक संवर्धन में विशेष भूमिका निभाते हैं. महासागरों की इस खासियत के कारण इनका संरक्षण बहुत ही जरूरी हो गया है.
साल 1992 में कनाडा सरकार ने ब्राजील के रियो डी जनेरियो में आयोजित वैश्विक शिखर सम्मेलन में महासागरों को संरक्षित करने की प्रस्तावना रखी थी, जिसे काफी समर्थन मिला था. फिर 2008 में ओशन इंटरनेशनल सेंटर फॉर डेवलपमेंट और ओसियंस इंस्टिट्यूट ऑफ कनाडा ने संयुक्त राष्ट्र में 8 जून को विश्व महासागर दिवस मनाने की प्रस्ताव रखा जिससे कि महासागर संसाधनों के संरक्षण के प्रति जागरूकता कर स्थायी समाधान किया जाए.
इसके बाद 2009 से यह विश्व महासागर दिवस मनाया जाने लगा. 2008 में ही पहली बार एक एक्शन थीम भी लॉन्च की गई थी. इसके बाद से लगातार हर वर्ष एक थीम लॉन्च की जाती है, जिससे कि महासागरों को एक निश्चित दिशा देते हुए संरक्षित करने को जागरूकता पैदा कर सकें. 2024 में भी संरक्षण के लिए थीम ‘नई गहराइयों को जगाओ’ दी गई है.
महासागरों का जलस्तर बढ़ता है तो तटीय आबादी के अस्तित्व को अत्यंत खतरा पैदा हो जाता है. महत्वपूर्ण है कि दुनिया की 40% से ज्यादा या 3.1 बिलियन से अधिक आबादी करीब 150 तटीय और द्वीपीय देश में महासागरों के 100 किलोमीटर के दायरे में रहती है.
यह आबादी अपनी जीविका के लिए महासागरों पर भी निर्भर है. महासागरों की उथल पुथल से सभी तरफ चरम मौसमी घटनाएं हो रही है. अम्लीय हो रहे समुद्र के कारण समुद्र तट पर प्रवाल भित्तियां नष्ट हो रही हैं, फूड चेन सिस्टम बिगड़ रहा है पर्यटन और अर्थव्यवस्थाएं खतरे में पड़ रहे हैं. यही नहीं इनका तल बढ़ने से द्विपीय विकासशील देशों पर बहुत बड़ा संकट है.
महासागर खतरे में हैं, इसके पीछे ग्लोबल वार्मिंग तो एक कारण ही है, जबकि अत्यधिक मछलियों का दोहन, समुद्र में गहराई तक खनन समुद्र तटों पर अंधाधुंध विकास, अनियंत्रित प्रदूषण और प्लास्टिक अपशिष्ट जैसी समस्याएं महासागरों के परिस्थिति तंत्र को बिगाड़ रही हैं.
महासागरों के संरक्षण के लिए जहां विश्व के सभी देशों के की सरकार अपने सतत विकास कार्यक्रमों के द्वारा संरक्षित करने को प्रतिबद्ध हैं, वहीं महासागरों के किनारे रहने वाले निवासियों के भी दायित्व हैं कि वे महासागरों के तटों पर कचरा न फैलाएं, साफ सुथरा रखें. प्लास्टिक उत्पादों को ना डालें और दोहन करने से पहले परिस्थिति तंत्र को संतुलित रखने में अपना योगदान दें.
-भारत एक्सप्रेस
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