Hindenburg Report Vs SEBI Chairperson: अमेरिकी वित्तीय शोध कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च की नई रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों का भारतीय जांच एजेंसी SEBI की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने जवाब दिया है. उन्होंने एक विस्तृत बयान जारी कर खुद को पाक साफ बताया.
दंपति ने अपने बयान में कहा, “10 अगस्त 2024 को हिंडनबर्ग द्वारा हमारे खिलाफ लगाए गए आरोपों के संदर्भ में और पूर्ण पारदर्शिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के अनुरूप हम एक विस्तृत बयान जारी कर रहे हैं. जैसा कि SEBI के खिलाफ कुछ आरोप लगाए गए हैं, जिनका उत्तर संस्था स्वतंत्र रूप से देगी. हम अपनी व्यक्तिगत क्षमता में अपने से संबंधित मसलों पर जवाब देना चाहेंगे.”
1. माधबी आईआईएम अहमदाबाद की पूर्व छात्रा हैं और बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं, मुख्य रूप से आईसीआईसीआई समूह में उनका दो दशकों से ज्यादा लंबा कॉर्पोरेट करियर रहा है.
2. धवल बुच आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्र हैं और उनका भारत में हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड में और फिर यूनिलीवर में वैश्विक स्तर पर अपनी वरिष्ठ प्रबंधन टीम के हिस्से के रूप में 35 साल का कॉर्पोरेट करियर रहा है. इस लंबी अवधि के दौरान, माधबी और धवल ने अपने वेतन, बोनस और स्टॉक विकल्पों के माध्यम से अपनी बचत अर्जित की है. अब उनके सरकारी वेतन का संदर्भ देते हुए उनके निवेश के बारे में लगाए गए आरोप दुर्भावनापूर्ण और प्रायोजित हैं.
3. 2010 से 2019 तक, धवल लंदन और सिंगापुर में रहते थे और यूनिलीवर के साथ काम करते थे.
4. 2011 से मार्च 2017 तक, माधबी सिंगापुर में रही थीं और वे भी काम करती थी, शुरू में एक निजी इक्विटी फर्म के कर्मचारी के रूप में और बाद में एक सलाहकार के रूप में.
5. हिंडनबर्ग रिपोर्ट में जिस फंड का जिक्र किया गया है, उसमें निवेश 2015 में किया गया था, जब वे दोनों सिंगापुर में रहने वाले निजी नागरिक थे और यह माधबी के सेबी में पूर्णकालिक सदस्य के तौर पर शामिल होने से करीब 2 साल पहले हुआ.
6. इस फंड में निवेश करने का फैसला इसलिए किया गया क्योंकि मुख्य निवेश अधिकारी, अनिल आहूजा, धवल के बचपन के दोस्त हैं, जो स्कूल और आईआईटी दिल्ली से हैं और सिटीबैंक, जेपी मॉर्गन और 3आई ग्रुप पीएलसी के पूर्व कर्मचारी होने के नाते कई दशकों का मजबूत निवेश करियर था. जब 2018 में आहूजा ने फंड के सीआईओ के रूप में अपना पद छोड़ा, तो हमने उस फंड में निवेश को भुनाया.
7. जैसा कि आहूजा ने पुष्टि की है, किसी भी समय उन्होंने अडानी समूह की किसी भी कंपनी के किसी भी बॉन्ड, इक्विटी या डेरिवेटिव में निवेश नहीं किया.
8. 2019 में धवल की नियुक्ति, ब्लैकस्टोन प्राइवेट इक्विटी के वरिष्ठ सलाहकार के रूप में, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन में उनकी गहन विशेषज्ञता के कारण हुई थी. इस प्रकार उनकी नियुक्ति, माधबी की सेबी अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति से पहले की है. यह नियुक्ति तब से पब्लिक डोमेन में है. धवल कभी भी ब्लैकस्टोन के रियल एस्टेट पक्ष से जुड़े नहीं रहे हैं.
9. उनकी नियुक्ति के बाद, ब्लैकस्टोन ग्रुप को तुरंत सेबी के साथ बनाए गए माधबी की अस्वीकृति सूची में जोड़ दिया गया.
10. पिछले दो वर्षों में, सेबी ने पूरे मार्केट इको सिस्टम में 300 से अधिक सर्कुलर (सेबी के विकासात्मक अधिदेश के अनुरूप “व्यापार करने में आसानी” पहल सहित) जारी किए हैं. सेबी के सभी नियम व्यापक सार्वजनिक परामर्श के बाद इसके बोर्ड (न कि इसके अध्यक्ष द्वारा) द्वारा अनुमोदित किए जाते हैं. यह आरोप कि REIT उद्योग से संबंधित इनमें से कुछ मामले किसी विशिष्ट के पक्ष में थे, दुर्भावनापूर्ण और प्रायोजित हैं.
11. सिंगापुर में रहने के दौरान माधबी द्वारा स्थापित दो कंसल्टिंग कंपनियाँ, एक भारत में और एक सिंगापुर में, सेबी में उनकी नियुक्ति के तत्काल बाद निष्क्रिय हो गईं. ये कंपनियाँ (और उनमें उनकी शेयरधारिता) सेबी को उनके खुलासे का स्पष्ट रूप से हिस्सा थीं.
12. 2019 में यूनिलीवर से रिटायर होने के बाद, धवल बुच ने उपरोक्त कंपनियों के माध्यम से अपनी खुद की कंसल्टेंसी प्रैक्टिस शुरू की. सप्लाई चेन में धवल की गहरी विशेषज्ञता ने उन्हें भारतीय उद्योग में प्रमुख ग्राहकों के साथ काम करने की राह दिखाई. इस प्रकार, इन कंपनियों में अर्जित आय को माधबी के वर्तमान सरकारी वेतन से जोड़ना दुर्भावनापूर्ण है.
13. जब सिंगापुर यूनिट की शेयरधारिता धवल के पास चली गई, तो इसका खुलासा एक बार फिर सेबी के अलावा सिंगापुर के अधिकारियों और भारतीय कर अधिकारियों के सामने भी किया गया.
14. सेबी के पास अपने अधिकारियों पर लागू आचार संहिता के अनुसार प्रकटीकरण (disclosure) और अस्वीकृति (recusal) मानदंडों के लिए मजबूत संस्थागत तंत्र हैं. तदनुसार, सभी प्रकटीकरण (disclosure) और अस्वीकृति (recusal) का पूरी लगन से पालन किया गया है.
15. हिंडनबर्ग को भारत में विभिन्न उल्लंघनों के लिए ‘कारण बताओ’ नोटिस दिया गया है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ‘कारण बताओ’ नोटिस का जवाब देने के बजाय, उन्होंने सेबी की विश्वसनीयता पर हमला करने और सेबी चेयरपर्सन के चरित्र हनन का प्रयास करने का विकल्प चुना.
— भारत एक्सप्रेस
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