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Lok Sabha Election 2024: यूपी के Kairana में दिलचस्प होगी सियासी जंग, हिंदू परिवारों का पलायन बना था बड़ा मुद्दा

Lok Sabha Election 2024: विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की राजधानी दिल्ली से तकरीबन 103 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के शामली जिले का कैराना (Kairana) शहर अपने आप में बहुत-सा इतिहास समेटे हुए है. कैराना को प्राचीन काल में कर्णपुरी के नाम से जाना जाता था, जो बाद में बिगड़कर ‘किराना’ हुआ और फिर ‘कैराना’ में तब्दील हो गया. कैराना उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है और इसका निर्वाचन क्षेत्र 02 है.

कैराना का महावीर त्यागी से वास्ता

31 दिसंबर 1899 को मुरादाबाद में जन्मे स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता महावीर त्यागी 1951 में पहले लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र से चुनाव लड़े थे, जो बाद में कैराना लोकसभा बनी है. कैराना का इलाका उस वक्त देहरादून डिस्ट्रिक्ट कम बिजनौर डिस्ट्रिक्ट (नॉर्थ वेस्ट) कम सहारनपुर डिस्ट्रिक्ट (वेस्ट) नाम के लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता था और 1951 के पहले आम चुनाव में महावीर त्यागी ने एकतरफा चुनाव जीत सुनिश्चित की थी.

इसकी सबसे बड़ी वजह किसानों के बीच उनकी सक्रियता रही. 1921 में जब कांग्रेस असहयोग आंदोलन कर रही थी तो उस वक्त महावीर त्यागी बिजनौर में किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनका बोलबाला था. महावीर त्यागी ने आजादी के आंदोलन के दौरान इसी क्षेत्र में अपना खून-पसीना बहाया था. इसकी गवाही 1951 में उन्हें मिले मत देते हैं. इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार महावीर त्यागी को 63.73% जबकि भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार जेआर गोयल को मात्र 13.81% मत मिला था.

कैराना लोकसभा का सियासी इतिहास

कैराना लोकसभा सीट 1962 में अस्तित्व में आई थी. यहां अब तक 16 बार चुनाव हो चुके हैं. इस क्षेत्र के सबसे पहले सांसद 1962 में यशपाल सिंह बने थे, जो निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़े थे. चुनावों में जीत हार के आंकड़ों पर गौर करें तो 1991 के बाद जितने भी चुनाव हुए, उनमें से 2004 के चुनाव को छोड़कर बाकी सभी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मुकाबले में ही रही है. अब तक कैराना संसदीय क्षेत्र में तीन बार भाजपा, दो बार कांग्रेस और तीन बार राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने जीत दर्ज किया है. कैराना की जनता ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) को भी एक-एक बार जीत का स्वाद चखाया है. जनता दल और जनता पार्टी ने दो-दो बार कैराना में अपना परचम लहराया है और वर्तमान समय में इस सीट पर भाजपा का भगवा ध्वज लहरा रहा है.


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महिलाओं का रहा है प्रभाव

1980 में चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी पहली बार चुनावी मैदान में थीं और कैराना की जनता ने उनको अपना नेतृत्व करने के लिए चुना था. 1984 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने भी कैराना में अपनी किस्मत आजमाई थी. 2004 में कैराना ने रालोद से अनुराधा चौधरी को अपना सांसद चुना. उसके बाद 2009 में बसा की प्रत्याशी तबस्सुम हसन सांसद बनीं थीं. 2018 में हुए उपचुनाव में तबस्सुम फिर से सांसद निर्वाचित हुईं, इस चुनाव में पूर्व सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह भी प्रत्याशी रहीं. इस लोकसभा चुनाव में विपक्ष के इंडिया गठबंधन से इकरा हसन प्रत्याशी हैं.

कैराना का जातिगत समीकरण

कैराना लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभाएं – कैराना, शामली, थाना भवन, नुकुड और गंगोह – शामिल है. फिलहाल इन 5 में से 2 सीटों पर रालोद, 2 पर भाजपा और एक पर सपा के विधायक हैं. क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता तकरीबन 6.25 लाख और जाट मतदाता तकरीबन 1.90 लाख, दलित मतदाता 3 लाख 46 हजार, त्यागी 18 हजार, ब्राह्मण 39 हजार, क्षत्रिय 45 हजार, सैनी 1.25 लाख, बनिया 65 हजार, कश्यप 90 हजार और गुर्जर 1.40 लाख मतदाता हैं. ये मतदाता कैराना की सियासत को प्रभावित करते हैं.


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पलायन बना था मुद्दा

साल 2014-16 के दौरान कैराना और कांधला के हिंदू परिवारों का पलायन बड़ा मुद्दा बना था, जिसे कैराना पलायन के रूप में भी जाना जाता है. स्थानीय अपराधियों की दबंगई और वसूली की वजह से हिंदू परिवारों का पलायन हुआ है, जिसकी वजह से तत्कालीन सरकार की जमकर आलोचना हुई थी.

प्रदीप चौधरी का हसन परिवार से तीसरी बार होगा सामना

2024 के लोकसभा चुनाव में कैराना सीट पर भाजपा के प्रदीप चौधरी और हसन परिवार का तीसरी बार आमना-सामना होगा. 2012 में गंगोह विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में प्रदीप चौधरी चुनाव मैदान में थे, उन्होंने निर्दल प्रत्याशी नाहिद को हराकर जीत हासिल की थी. 2017 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए प्रदीप चौधरी ने गंगोह से विधानसभा का चुनाव जीता था. इस चुनाव में उन्होंने बसपा के नौमान मसूद को हराया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदीप चौधरी ने तबस्सुम हसन को 92 हजार वोट से हराकर विजय हासिल किया था. हालांकि, सहारनपुर जिले के भावसी निवासी बीएसएफ के रिटायर्ड जवान श्रीपाल राणा के कैराना से बसपा प्रत्याशी बनने के बाद एनडीए गठबंधन के लिए चुनौतियां बढ़ गईं हैं.

-भारत एक्सप्रेस

Divyendu Rai

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