2024 के लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election 2024) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) सबसे बड़ी पार्टी बनकर जरूर उभरी है, लेकिन वह साल 2019 के अपने प्रदर्शन को दोहराने में नाकाम साबित हुई है. भाजपा को इस चुनाव में बड़ा झटका लगा, क्योंकि वह 240 सीटों के साथ बहुमत से चूक गई. बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है.
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में भी पार्टी को वो सफलता नहीं मिल पाई, जिसकी उम्मीद की जा रही थी. यहां समाजवादी पार्टी (SP) 37 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी तो भाजपा 33 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही.
भाजपा के इस प्रदर्शन में सबसे अधिक चर्चा फैजाबाद (Faizabad) लोकसभा सीट की हो रही है, जहां पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. इस लोकसभा क्षेत्र के तहत अयोध्या (Ayodhya) शहर भी आता है, जहां बीते जनवरी महीने में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने बहुप्रतीक्षित राम मंदिर का शुभारंभ किया था.
ऐसी उम्मीद थी कि राम मंदिर (Ram Mandir) के निर्माण और शुभारंभ का असर लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिलेगा, लेकिन यूपी में उसकी सीटें लगभग आधी रह गईं. फैजाबाद में बाजी सपा के नेता वरिष्ठ विधायक अवधेश प्रसाद ने मारी, जो गैर-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से जीतने वाले दलित समुदाय के एकमात्र उम्मीदवार थे. उन्होंने भाजपा के दो बार के सांसद लल्लू सिंह को 54,567 मतों से हराया.
79 वर्षीय अवधेश प्रसाद वर्तमान में अयोध्या जिले की मिल्कीपुर सीट से विधायक हैं. आइए उनके राजनीतिक सफर के बारे में जानते हैं.
अवधेश प्रसाद 9 बार विधायक रह चुके हैं और अब पहली बार सांसद बने हैं. पासी समुदाय से आने वाले अवधेश प्रसाद सपा के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और 1974 से लगातार पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के साथ थे.
उनका जन्म 31 मार्च 1945 को अयोध्या के सुरवारी गांव के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था. 21 साल की उम्र में ही सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने वाले अवधेश प्रसाद ने लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएलबी किया और कानपुर के डीएवी कॉलेज से एमए की डिग्री ली है. 1968 में वकालत शुरू करने के साथ ही वह राजनीतिक में भी सक्रिय हो गए थे.
वह पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को अपना ‘राजनीतिक पिता’ मानते हैं और उनके नेतृत्व वाले भारतीय क्रांति दल में शामिल होने के बाद 1974 में अयोध्या जिले के सोहावल से अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा था.
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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आपातकाल के दौरान प्रसाद ने आपातकाल विरोधी संघर्ष समिति के फैजाबाद जिले के सह-संयोजक के रूप में काम किया था. इस दौरान उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था. जेल में रहते हुए उनकी मां का निधन हो गया और वह उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पैरोल पाने में भी विफल रहे थे.
आपातकाल के बाद उन्होंने पूर्णकालिक राजनीतिज्ञ बनने के लिए वकालत छोड़ दी. 1981 में मां की तरह ही वह पिता के भी अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके थे. उस वक्त वह लोक दल और जनता पार्टी में महासचिव थे तथा लोकसभा उपचुनाव के लिए अमेठी में वोटों की गिनती कर रहे थे. तब राजीव गांधी पहली बार चुनाव लड़ रहे थे, उपचुनाव में उन्होंने लोक दल के शरद यादव को मात दी थी.
अवधेश प्रसाद को चौधरी चरण सिंह से सख्त निर्देश थे कि वे मतगणना कक्ष से बाहर न निकलें. यह ईवीएम से पहले का समय था और सात दिनों तक मतगणना के दौरान प्रसाद पिता के निधन की खबर सुनने के बावजूद अमेठी में डटे रहे थे.
जनता पार्टी के बिखराव के बाद अवधेश प्रसाद, मुलायम सिंह यादव के साथ जुड़ गए. 1992 में जब सपा की स्थापना हुई तो वह इसके संस्थापक सदस्यों में से एक थे. अवधेश प्रसाद को पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और केंद्रीय संसदीय बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया गया था. बाद में उन्हें सपा के राष्ट्रीय महासचिव के पद पर पदोन्नत किया गया, जिस पद पर वे अपना चौथा कार्यकाल पूरा कर रहे हैं.
हालांकि इस संसदीय चुनाव में उन्होंने पहली बार जीत हासिल की है. इससे पहले जब उन्होंने 1996 में अकबरपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, तो उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. यह सीट पहले फैजाबाद जिले में हुआ करती थी.
अवधेश प्रसाद को हालांकि विधानसभा चुनावों में अधिक सफलता मिली. उन्हें अब तक के 9 मुकाबलों में से केवल दो बार हार का सामना करना पड़ा है. 1991 में वे सोहावल से जनता पार्टी और 2017 में मिल्कीपुर से सपा के उम्मीदवार थे, जब उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
वह 1977, 1985, 1989, 1993, 1996, 2002 और 2007 में तत्कालीन सोहावल (एससी) निर्वाचन क्षेत्र से और 2012 और 2022 में मिल्कीपुर (एससी) से 9 बार विधायक विधायक चुने जा चुके हैं. वह उत्तर प्रदेश सरकार में छह बार मंत्री बने हैं और उनमें से चार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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