शव यात्रा के दौरान ‘राम नाम सत्य है’ क्यों बोलते हैं? यहां जाने इसका महत्त्व
Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या में भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बन कर तैयार होने वाला है और 22 जनवरी को रामलला भी अपने जन्मस्थान पर यानी गर्भ गृह में विराजमान हो जाएंगे. इसको लेकर तैयारी जोरों पर है, लेकिन इन सबके बीच लोगों के मन में ये सवाल जरूर खड़ा हो रहा है कि आखिर जहां पर रामलला आज विराजमान हैं, वहां उनका चबूतरा किसने बनवाया होगा और क्या स्थितियां रही होंगी उस वक्त. तो इन सवालों का जवाब उन कारसेवकों ने दिया है जो उस वक्त रामलला के जन्म स्थान पर मौजूद थे और राम मंदिर आंदोलन में शामिल थे.
सोशल मीडिया पर वायरल खबरों के मुताबिक, भगवान राम जिस चबूतरे पर विराजमान थे, उस चबूतरे को ग्वालियर के कार सेवकों द्वारा अपने हाथों से बनाया गया था. मीडिया से बात करते हुए उन कारसेवकों ने उस समय की बातें ताजा की है, जब लोगों के मन में केवल राम की लगन लगी थी. मीडिया से बात करते हुए रामलला का चबूतरा बनाने वाले कारीगर केशव बताते हैं कि, हम लोग उस समय बस मन में राम की धुन लिए, 1992 में यहां से अयोध्या के लिए निकल गए थे. वह कहते हैं कि उस समय देश में बहुत ही अलग माहौल था. लगता था कि अब शायद ही बच पाएंगे, क्योंकि रोजाना नई-नई खबरें सुनने को मिल रही थी. वह बोले कि हम जहां रहते थे, वो छोटी सी जगह थी. खाने पीने का कोई ठिकाना नहीं था. कुछ था तो वो है राम के प्रति लगन.
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केशव के सहयोगी विनोद उस समय की यादें ताजा करते हुए बताते हैं कि, हम लोगों को विवादित ढांचे के पास चबूतरा बनाना था तो हम लोग अपने अंगोछे में रेत लेकर आते थे, जिससे राजेंद्र कुशवाहा तत्काल मसाला तैयार करते थे. केशव भाई साहब ने अपने हाथों से बिना किसी औजार के रामलला का चबूतरा बनाया था, जहां आज भगवान राम का भव्य मंदिर बन रहा है. इस दौरान सभी कारसेवक बीती बातों को याद कर भावुक दिखे और उनके मन में राम मंदिर को लेकर खुशी भी दिखाई दी. तो वहीं आंखों में आ गए आंसुओं को पोछते हुए विनोद कहते हैं कि, काश हम भी उस समय अगर किसी मलबे के नीचे दब गए होते तो आज हमें भी मंदिर के किसी कोने में जगह मिल जाती.
बता दें कि भारत में करोडों रामभक्तों का सपना 22 जनवरी को पूरा होने जा रहा है, जब रामलला अपने जन्म स्थान पर विराजमान होंगे. 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा भव्य मंदिर में होने जा रही है. इसको लेकर ग्वालियर के कार सेवकों सहित पूरे देश में उत्साह का माहौल है. 1992 में हुई घटनाओं की याद को ताजा करते हुए कार सेवक कहते हैं कि, उस समय हमें सिर्फ सीटी का इंतजार होता था. सीटी की आवाज से हम सब एक हो जाते थे. उन्होंने कहा कि जब भी हम अयोध्या पहुंचेंगे. उस चबूतरे को देखकर ना जाने कितनी ही यादें ताजा हो जाएंगी.
बता दें कि 6 दिसंबर 1992 को बड़ी संख्या में कार सेवक अयोध्या पहुंचे थे अचानक विवादित ढांचे (बाबरी मस्जिद) की तरफ दौड़ते आए थे और कटीले तारों में झाड़ियां की परवाह किए बिना गुंबद की तरफ बढ़ते चले गए थे और तमाम कार सेवक गुम्बद पर चढ़ गए थे. कारसेवकों में उत्साह इतना प्रबल था कि, कोई भी उनको रोकने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. अचानक किसी दिशा से रस्सी आई. इसके सहारे चढ़कर गुंबद के शिखर पर पहुंच गए और गुंबद को ढहाना शुरू कर दिया. इस आंदोलन में भिंड के कुछ कार सेवक भी नीचे दब गए थे, जिनकी मौत हो गई थी. ढांचा गिराने के बाद कारसेवकों ने तेजी से मिट्टी की सफाई कर रेत और सीमेंट से बिना औजारों के रामलला का चबूतरा बना दिया था और वहां रामलला की मूर्ति भी स्थापित कर दी थी. इस दौरान पूरी प्रदेश राम की जयघोष से गूंज रहा था. जो कारसेवक इस आंदोलन में जीवित बच गए थे, वे जब घर लौटे तो सभी जाति धर्म के लोगों ने उनका सम्मान भी किया था.
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