केरल और पश्चिम बंगाल के राज्यपालों पर विधेयक लंबित रखने का आरोप लगाने वाली केरल और पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्यपाल के सचिवों को नोटिस जारी कर 3 सप्ताह में जवाब देने को कहा है.
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि कई विधेयकों को राज्यपालों ने मंजूरी देने की जगह राष्ट्रपति के पास भेज दिया है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच मामले में सुनवाई कर रही है. केरल की ओर से पेश वरिष्ठ वकील और पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि वे विधेयकों को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजने के राज्यपाल के फैसले को चुनौती दे रहे है.
बता दें कि पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर आरोप लगाया है कि वो 8 विधेयकों को मंजूरी नहीं दे रहे है. पश्चिम बंगाल सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि विधानसभा में पारित विधेयकों को बगैर कोई कारण बताए मंजूरी देने से इनकार करना संविधान के आर्टिकल 200 के खिलाफ है.
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विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन), निजी विश्वविद्यालय कानून ( संशोधन) विधेयक, कृषि विश्वविद्यालय कानून, स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, आलिया विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक राज्यपाल के पास लंबित है. इन्होंने 2022 में विधानसभा में पास किया गया था. एक विधेयक 2023 का भी है. जिन विधेयकों को राजभवन में रोका गया है, उनमें से छह एक साल और 10 महीने से लंबित है, जबकि दो 8 महीने से लंबित है.
केरल सरकार ने राज्य विधानसभा से पारित चार विधेयकों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा स्वीकृति न दिए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इन विधेयकों में विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) (नंबर 2) विधेयक 2021, केरल सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक 2022, विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक 2022 और विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) (नंबर 3) विधेयक 2022 शामिल है.
याचिका में बगैर किसी कारण के विधेयकों को मंजूर न करने को असंवैधानिक कदम घोषित करने की मांग की गई है. केरल सरकार ने केंद्र सरकार, राष्ट्रपति के सचिव, राज्य के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और उनके अतिरिक्त सचिव को मामले में पार्टी बनाया है.
-भारत एक्सप्रेस
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