देश

चेक बाउंस मामले में 18 साल बाद आया फैसला, महिला को बेगुनाही साबित करने के लिए अदालतों के काटने पड़े चक्कर

चेक बाउंस के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं और अदालतों में इस तरह के केस लगातार बढ़ने लगे हैं. इससे जुड़े ज्यादातर मामलों में समझौता नहीं होने पर अदालत द्वारा अभियुक्त को सजा दी जाती है. चेक बाउंस में बहुत कम केस ऐसे होते है जिनमे अभियुक्त बरी किये जाते है. लेकिन एक मामले में 18 साल तक चली कानूनी लड़ाई के बाद फैसला आया है.

एक महिला को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए 18 साल तक अलग-अलग अदालतों के चक्कर काटने पड़े. महिला ने पहले खुद को बेगुनाह साबित किया फिर बैंक को सबक सिखाने और मुआवजा पाने के लिए उपभोक्ता अदालत में कानूनी जंग लड़ी और महिला की जीत हुई.

डेढ़ दशक बाद कोर्ट ने बैंक को दोषी ठहराया और पीड़िता को मुआवजा देने का आदेश दिया. दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निपटारा आयोग की अध्यक्ष जस्टिस संगीता ढींगड़ा सहगल और न्यायिक सदस्य पिंकी की बेंच ने यह फैसला सुनाया है.

उपभोक्ता आयोग ने अपने फैसले में कहा है कि बैंक ने अपनी गलती के बावजूद महिला स्नेहलता कुमार को चेक बाउंस के मामले में फंसाया. इससे महिला को आर्थिक नुकसान तो हुआ ही साथ सामाजिक स्तर पर भी नुकसान हुआ.

आयोग ने कहा कि बैंक सीआरपीसी की धारा 138 का गलत इस्तेमाल किया है. उपभोक्ता आयोग ने बैंक को निर्देश दिया है कि महिला से वसूली गई 44 हजार 850 रुपये की रकम तीन किस्तों में 9 फीसदी ब्याज के साथ चुकाए.

आयोग ने साल 2006 से अब तक ब्याज सहित रकम को चुकाने के आदेश दिया है. महिला ने बैंक के खिलाफ 2008 में मुआवजा की मांग को लेकर याचिका दायर किया था. जिला उपभोक्ता अदालत ने बैंक को दोषी पाते हुए मुआवजा देने का आदेश दिया. लेकिन बैंक ने इस फैसले के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में याचिका दायर कर इसे चुनौती दी.

लंबी सुनवाई के बाद उपभोक्ता आयोग ने दिल्ली जिला उपभोक्ता आयोग के फैसले को बरकरार रखते हुए, मुआवजा देने का आदेश दिया. याचिकाकर्ता के वकील संजय शर्मा की माने तो उनका मुवक्किल एक निजी बैंक से लोन लिया था. इसकी 29 किस्तें बैंक को भरने के चलते बैंक ने शिकायतकर्ता को अपना मूल्यवान ग्राहक मानते हुए 2006 में दूसरा लोन देने की पेशकश की.

महिला ने बैंक के ऑफर को स्वीकार करते हुए 4 लाख रुपए का लोन ले लिया. महिला ने सभी औपचारिकताएं पूरी कर दी. बैंक ने किस्त काटना शुरू कर दिया, लेकिन लोन की मूल राशि 3 लाख 45 हजार रुपये डिमांड ड्राफ्ट महिला को नही दिया. जिसके बाद यह मामला जिला उपभोक्ता आयोग पहुंचा, और शिकायतकर्ता को जीत मिली. अब शिकायतकर्ता को 18 साल बाद ब्याज सहित रुपया मिलेगा.

बता दें कि चेक बाउंस के मामले में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत अधिकतम 2 साल तक कि सजा का प्रावधान है. हालांकि सामान्यतः अदालत 6 महीने या फिर 1 साल तक के कारावास की सजा सुनाती है. इसके साथ ही अभियुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 के अंतर्गत परिवादी को प्रतिकर दिए जाने का निर्देश भी दिया जाता है. प्रतिकर की यह रकम चेक राशि की दो गुनी हो सकती है.

ये भी पढ़ें- दिल्ली में बिल्डर शैली थापर और उनके बेटे पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज, महिला से 38 करोड़ रुपये की ठगी का आरोप

-भारत एक्सप्रेस

गोपाल कृष्ण

Recent Posts

दिल्ली हाईकोर्ट ने DDA को महिला और नाबालिग बेटों को 11 लाख का मुआवजा देने का निर्देश, लापरवाही के लिए ठहराया जिम्मेदार

वर्ष 1986-88 के दौरान झिलमिल कॉलोनी में 816 फ्लैटों के बहुमंजिला परिसर में एक फ्लैट…

2 minutes ago

शराबबंदी का मतलब है अधिकारियों के लिए मोटी कमाई, जानिए पटना हाईकोर्ट ने आखिर ऐसा क्यों कहा

बिहार सरकार के शराबबंदी कानून पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए पटना उच्च न्यायालय ने कहा…

6 minutes ago

भारत-पाक मैच को लेकर केंद्र सरकार की जो नीति है, हम उसका पालन करेंगे: राजीव शुक्ला

Champions Trophy: चैंपियंस ट्रॉफी के लिए भारत ने पाकिस्तान दौरे के लिए साफ इंकार कर…

11 minutes ago

PoK नहीं जाएगी Champions Trophy, जानें Pakistan Cricket Board की हरकत पर किसने जताई आपत्ति

आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी को इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) ने दुबई से इस्लामाबाद भेज दिया है.…

48 minutes ago

CM नीतीश ने PM मोदी को फिर दिया भरोसा, कहा- ‘हमलोग कभी इधर-उधर नहीं जाएंगे’

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एकबार फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भरोसा दिलाया…

1 hour ago

Uttar Pradesh: उपचुनाव रैली में बोले सीएम योगी, सपा में गुंडों का विकास होता था, हमने प्रदेश से माफियाओं का अंत कर दिया

सीएम योगी ने रैली में कहा, सपा कार्यकाल में सिर्फ सैफई परिवार और बड़े-बड़े माफिया…

1 hour ago