दिल्ली की साकेत अदालत ने सोमवार (29 जुलाई) को दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) वीके सक्सेना द्वारा दायर आपराधिक मानहानि मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को सुनाई गई सजा को निलंबित कर दिया. अदालत ने मेधा पाटकर को भी 25,000 रुपये के जमानत बॉन्ड और इतनी ही राशि की स्योरिटी पर जमानत दे दी. अदालत ने दिल्ली के उपराज्यपाल को नोटिस जारी कर 4 सितंबर को मामले पर जवाब मांगा है.
हालांकि, पाटकर को अपील दायर करने के लिए समय देने हेतु सजा को 1 अगस्त तक निलंबित कर दिया गया.
कोर्ट 4 सितंबर को अगली सुनवाई करेगा. बता दें कि मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने मेधा पाटकर को 5 महीने की सजा और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था, जिसके खिलाफ मेधा पाटकर ने अपील दायर की है.
बीते 1 जुलाई को दिल्ली की एक अदालत ने मेधा पाटकर को पांच महीने की जेल की सजा सुनाने के साथ उन्हें वीके सक्सेना को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया. आदेश सुनाते हुए अदालत ने कहा था कि पाटकर की उम्र, बीमारी और जेल में रहने की अवधि को देखते हुए यह ‘कोई कड़ी सज़ा नहीं है.’ पाटकर को अदालत ने आईपीसी की धारा 500 के तहत दोषी ठहराया था.
उनके खिलाफ दिल्ली के वर्तमान उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने वर्ष 2001 में आपराधिक मानहानि का मुकदमा किया था. उस समय वे अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे. मेधा पाटकर को सजा देने के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान उपराज्यपाल वी.के सक्सेना के वकील ने उन्हें अधिकतम सजा देने की मांग की.
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वहीं दूसरी ओर पाटकर के वकील ने कहा कि उन्होंने समाज के लिए बहुत काम किया है. उन्हें कई अवार्ड मिले हैं. उनकी उम्र काफी हो गई है, लिहाजा अच्छे आचरण को देखते हुए उन्हें रिहा कर दिया जाए. सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ 25 नवंबर 2000 को अहमदाबाद की एक अदालत में मानहानि का शिकायत किया था और उसमें पाटकर की एक प्रेस नोट का हवाला दिया था.
प्रेस नोट ‘देशभक्त का असली चेहरा’ शीर्षक से था और उसमें कहा गया था कि हवाला लेन देन से दुखी वीके सक्सेना खुद मालेगांव आये. एनबीए की तारीफ की और 40 हजार रुपए का चेक दिया लेकिन चेक भुनाया नहीं जा सका और बाउंस हो गया. जांच करने पर बैंक ने बताया कि खाता मौजूद ही नही है. मेधा पाटकर ने यह भी कहा था कि सक्सेना कायर है, देशभक्त नहीं.
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि मेधा पाटकर की हरकतें जान-बूझकर और दुर्भाग्यपूर्ण थी, जिसका उद्देश्य सक्सेना की छवि को धूमिल करना था. इससे उनकी छवि और साख को काफी नुकसान पहुचा है. उनके लगाए गए आरोपी भी न केवल मानहानिकारक हैं, बल्कि नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए भी गढ़े हुए है. इसके अलावा अब आरोप है कि शिकायतकर्ता गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रखा रहा है. यह उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर सीधा हमला है.
-भारत एक्सप्रेस
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