UP Politics: लोकसभा चुनाव आने वाले हैं. ऐसे में यूपी में जीत हासिल करने के लिए हर राजनीतिक दल बसपा की ओर नजर गड़ाए है. माना जाता है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर जाता है. लोकसभा की अधिक सीटें यूपी में होने के कारण हर राजनीतिक दल अधिक से अधिक सीटें यूपी से ही निकाल लेना चाहता है. ऐसे में भाजपा सरकार को सत्ता से हटाने के लिए विपक्षी दल ऐड़ी चोटी की जोर लगा रहे हैं और गठबंधन की गांठ में बंधकर आगे बढ़ रहे हैं. इसी के साथ यूपी में जीत दर्ज करने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती का भी साथ चाहते हैं. इसको लेकर तमाम कयास लगाए गए. कहा जा रहा है कि, अगर इंडिया गठबंधन के साथ मायावती नहीं आती हैं तो इस गठबंधन को यूपी में खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है. तो वहीं कांग्रेस और सपा ने भी बहुत प्रयास किया कि मायावती को गठबंधन में साथ लाया जाए. इसके लिए तमाम प्रयास किए गए, लेकिन बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने सभी के प्रयासों पर पानी फेर दिया और अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी.
इसी के साथ उन्होंने ये भी कहा कि, जब भी उन्होंने गठबंधन किया उनको धोखा ही मिला. तो दूसरी ओर सपा और कांग्रेस की सांसें अब थमी हुई हैं. तो दूसरी ओर अकेले दम पर लोक सभा चुनाव का फैसला कर चुकी मायावती लगातार रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है. फिलहाल बिहार में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने के बाद उन्होंने कांशीराम को भी भारत रत्न दिए जाने की मांग कर दी है. माना जा रहा है कि इससे मायावती ने दलित कार्ड खेल दिया है और लगातार तेज गति से आगे बढ़ती जा रही हैं तो वहीं कांग्रेस और सपा की धड़कने तेज हो गई हैं, क्योंकि गठबंधन की स्थिति न बन पाने की वजह से जानकार मान रहे हैं कि, श्रावस्ती, लालगंज, नगीना, जौनपुर, सहारनपुर, अमरोहा, गाज़ीपुर, बिजनौर, घोसी और अमरोहा सीट पर 2019 में बसपा ने जीत हासिल की थी तो इन सीटों पर बसपा फिर से मजबूती के साथ उतर सकती है. इसी के साथ ही संभल, रामपुर, आजमगढ़, बांदा, मछलीशहर और फतेहपुर सीट सहित कई प्रमुख सीटों पर बसपा मजबूत बनकर उभर सकता है. माना जा रहा है कि दलितों के साथ ही मुस्लिम वोट बैंक पर भी बसपा की अच्छी खासी पकड़ है. तो वहीं कांशीराम को भारत रत्न देने की मांग कर मायावती ने नया पासा फेंक दिया है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर मायावती प्रदेश के तमाम सीटों पर वापस नहीं आती है तो भी कांग्रेस और सपा का नुकसान तो कर दी देंगी.
तो दूसरी ओर मायावती लगातार कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों के साथ लोकसभा चुनाव को लेकर बैठकें कर रही हैं और सभी को जरूरी निर्देश दे रही हैं. इसी के साथ ही मायावती ने अपने कार्यकर्ताओं को आगाह कर दिया है कि गठबंधन की बात कोई नहीं करेगा. बता दें कि इंडिया गठबंधन से चर्चा के बीच सपा के तमाम पदाधिकारी भी ये चाह रहे थे कि बसपा इंडिया गठबंधन में शामिल हो जाए, लेकिन बसपा ने जितनी बार दूसरे दलों से गठबंधन किया, उतनी बार धोखा ही खाया है. बसपा सुप्रीमो ने शनिवार को यूपी और उत्तराखंड के पदाधिकारियों के साथ बैठक करके चुनावी तैयारियों की समीक्षा की. इस मौके पर उन्होंने गठबंधन न करने की बात को एक बार फिर से दोहराया. वह कहती हैं कि, गठबंधन के कड़वे अनुभवों के चलते कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है, पार्टी का मिशन भी कमजोर होता है.
बता दें कि एक समय यूपी की राजनीति में मायावती का प्रभुत्व रहा है, लेकिन चुनाव दर चुनाव मायावती ने यूपी में अपनी जमीन खोई है. तो वहीं अब अपने भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद लगातार मायावती सक्रिया दिखाई दे रही हैं और लोकसभा चुनाव की कमान खुद ही सम्भाल रखी है. उन्होंने बेहतर परिणाम लाने की बड़ी जिम्मेदारी कार्यकर्ताओं को सौंपी है. इसी के साथ कार्यकर्ताओं को सलाह दी है कि, वे किसी भी तरह की अफवाह में न पड़ें. इसी के साथ ही उन्होंने बसपा कार्यकर्ताओं से संगठित होकर काम करने और विपक्षी दलों के साम, दाम, दंड, भेद आदि हथकंडों से दूर रहने को कहा. पदाधिकारियों को हर दिन सेक्टर व बूथ स्तर पर छोटी-छोटी कैडर की मीटिंग के निर्देश दिए. यह मीटिंग प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में भी होगी और प्रत्येक जातियों को जोड़ने का काम किया जाएगा.
इधर देखा जा रहा है कि मायावती लगातार भाजपा सरकार पर भी निशाना साध रही हैं. उन्होंने हाल ही में बयान दिया था कि, देश में कमरतोड़ महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी से करीब 81 करोड़ जनता बेहाल है. मौजूदा सरकार ने इन्हें सरकारी अनाज के भरोसे छोड़ दिया है. इनके स्थायी रोजी-रोटी की कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है. देश के करोड़ों किसानों, मजदूरों, गरीबों और मेहनतकश लोगों का हित प्रभावित हो रहा है. इन तमाम मुद्दों को लेकर उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को जनता के बीच जाने का निर्देश दिया है. इसी के साथ ही बसपा सुप्रीमो ने कहा कि जिस तरह से पहले राजनीति का अपराधीकरण हुआ और इसके बाद अपराध का राजनीतिकरण किया गया. अब उसी तरह धर्म का भी राजनीतिकरण किया जा रहा है.
मायावती ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने के बाद बसपा संस्थापक कांशीराम को भारत रत्न देने की मांग उठाकर यूपी लोकसभा चुनाव के पहले बड़ा दलित कार्ड खेल दिया है. इस सम्बंध में मायावती ने कई ट्वीट किए हैं और कहा है कि, “कर्पूरी ठाकुर ने देश में अति-पिछड़ों को उनके संवैधानिक हक के लिए आजीवन कड़ा संघर्ष किया. उन्हें सामाजिक न्याय और समानता का जीवन दिलाने के लिए संघर्ष किया. जननायक कर्पूरी ठाकुर को उनकी 100वीं जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित करती हूं.” इसी के साथ ही आगे लिखा कि, “बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर जी को देर से ही सही अब भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित करने के मोदी सरकार के फैसले का स्वागत है. देश के इस सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए उनके परिवार व सभी अनुयाइयों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देती हूं. दलितों और उपेक्षितों को आत्मसम्मान के साथ जीने और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए बीएसपी के जन्मदाता और संस्थापक मान्यवर कांशीराम जी का योगदान ऐतिहासिक व अविस्मरणीय है. उन्हें भी करोड़ों लोगों की इच्छा के अनुसार भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया जाना चाहिए.”
-भारत एक्सप्रेस
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